Friday - 8 November 2024 - 3:03 PM

बड़ा सवाल : अगर सत्ता पर काबिज हो गया तालिबान तो कौन होगा नेता

अफगानिस्तान के बड़े शहरों में शुमार कंधार, गजनी और हेरात पर भी अब तालिबानी का कब्जा हो गया है। इतना ही नहीं तालिबान ने अब अफगानिस्तान के लोगार इलाके पर कब्जा कर लिया है. अब यहां से काबुल सिर्फ 90 किमी. दूर ही है…

जुबिली स्पेशल डेस्क

नई दिल्ली। अमेरिका की सेना का अफगानिस्तान छोडऩा अब इस देश को भारी पड़ता नजर आ रहा है। दरअसल यहां पर अब अफगानिस्तान पर पूरी तरह से तालिबान का कब्जा होता नजर आ रहा है।

हालांकि अफगानी सेना तालिबान से लोहा जरूर ले रही है लेकिन अब वो हर जगह मैदान छोड़ती नजर आ रही है। इसका नतीजा यह रहा है कि तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में कंधार और हेरात सहित कई मुख्य शहरों पर अपना कब्जा कर लिया है और देश के कई बड़े हिस्सों पर उसका कब्जा होता नजर आ रहा है।

तालिबान के बढ़ते दबदबे के बीच अशरफ गनी सरकार की तरफ से तालिबान को सत्ता साझा करने का फार्मूला भी दिया था लेकिन उस प्रस्ताव को ठुकराते हुए तालिबान ने अफगानिस्तान के प्रांतों पर बम गिराना शुरू कर दिया है। जानकारी मिल रही है कि शन्ति का नया फार्मूला तैयार करने में जुटा है लेकिन कहा जा रहा है कि इस प्रस्ताव में राष्ट्र्रपति अशरफ गनी की सरकार की पूरी तरह से जाना होगा।

अगर वहां पर तालिबान सरकार बनाती है तो वहां पर उसका कौन होगा नेता इसको लेकर कयासों का दौर जारी है। अगर इस वक्त तालिबान के नेता की बात की जाए तो हैबतुल्ला अखुनजादा के हाथों में इस समय पूरा संगठन है और वहीं इस समय कमान संभाला हुआ है।

कहा तो यह भी जाता है कि संगठन के राजनीतिक, धार्मिक, सैन्य मामलों पर हैबतुल्ला की जोरदार पकड़ है और उसकी बात आखिरी होती है। बता दें कि साल 2016 में तालिबान के नेता अख्तर मंसूर के अमेरिकी एयर स्ट्राइक में मौत हो गई थी।

इसके बाद से हैबतुल्ला तालिबान के पूरे संगठन को देख रहा है। अगर किसी और नाम की बात की जाये तो अब्दुल गनी बरादर तालिबान के राजनीतिक मामलों का नेता है।

अब्दुल गनी बरादर दुनिया के अन्य देशों से बातचीत कर रहे हैं जबकि तालिबान के सैन्य मामले संगठन के संस्थापक मुल्ला उमर का लड़का याकूब के हाथों में है। ऐसे में देखा जाये अगर तालिबान सत्ता पर काबिज होता है तो उसके ये तीन चेहरे काफी अहम साबित हो सकते हैं।

ऐसे में हालात में वहां पर तालिबान सत्ता पर काबिज हो सकता है। उधर भारत, जर्मनी, कतर, तुर्की और कई अन्य देशों ने साफ कर दिया है कि वे अफगानिस्तान में ऐसी किसी भी सरकार को मान्यता नहीं देंगे जिसे सैन्य बल के माध्यम से थोपा जाता है। दोहा में अफगानिस्तान को लेकर दो अलग-अलग बैठक हुई है।

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इसके बाद एक बयान जारी करके कहा है कि हिस्सा लेने वाले देश इस बात से सहमत थे कि अफगान शांति प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत है क्योंकि यह ‘काफी जरूरी’ मामला है।

इन देशों का यह बयान काफी अहम माना जा रहा है जब तालिबान तेजी से अफगानिस्तान में अपनी जड़े मजबूत करता नजर आ रहा है। न्यूज एजेंसी की माने तो इसने कहा कि हिस्सा लेने वाले देशों ने तालिबान और अफगान सरकार से अपील की कि विश्वास बनाएं और राजनीतिक समाधान तक पहुंचने का प्रयास करें और जल्द से जल्द संघर्षविराम हो।

कतर के विदेश मंत्रालय ने क्या कहा

कतर के विदेश मंत्रालय ने बताया कि पहली बैठक में चीन, उज्बेकिस्तान, अमेरिका, पाकिस्तान, ब्रिटेन, कतर, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ ने भाग लिया जबकि 12 अगस्त को हुई दूसरी बैठक में जर्मनी, भारत, नॉर्वे, कतर, तजाकिस्तान, तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने भाग लिया है।

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