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भ्रष्टाचार के इस बड़े मामले में क्यों सुस्ती दिखा रहा है सीएम ऑफिस

अली रज़ा

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का गठन होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार पर सख्ती दिखाते हुए कई बड़े फैसले लेकर यह दिखाने की कोशिश की गई थी कि भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को बख्शा नहीं जाएगा और ताबड़तोड़ कई अधिकारियों पर गाज भी गिरी थी। लेकिन भ्रष्टाचार का एक ऐसा मामला भी है जिसमें सब कुछ साफ होने के बाद भी कार्यवाही नहीं हो रही है।
24 अप्रैल 2019 को मुख्यमंत्री कार्यालय में भ्रष्टाचार मामले की शिकायत लखनऊ सिविल कोर्ट के अधिवक्ता ने की थी जिसको 03 मई 2019 को मुख्यमंत्री कार्यालय ने जांच के लिए प्रमुख सचिव सहकारिता को अग्रसारित कर दिया है।

मामला उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के प्रबंध निदेशक से जुड़ा है जिसमें तत्कालीन प्रबंध निदेशक को मनमाने फैसले लेने और लाखों रुपये के घोटालों को अंजाम देने और न्यायालय के आदेशों को दरकिनार कर 99 कर्मचारियों की नियुक्तियां करने के आरोपों में विशेष अदालत ने पांच साल के कारावास की सजा सुनाई थी। अब उसी बैंक के वर्तमान प्रबंध निदेशक केपी सिंह पर भी भ्रष्टाचार एंव मनमानी के कई गंभीर अरोप लगे हैं।

शिकायती पत्र में गम्भीर आरोप

मुख्यमंत्री को दिए गए शिकायती पत्र में लखनऊ सिविल कोर्ट के अधिवक्ता अनुज कुमार अवस्थी ने उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के प्रबंध निदेशक केपी सिंह पर आरोप लगाया है कि 29 जून 2017 से बैंक के प्रबंध निदेशक का दायित्व निभा रहे केपी सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुये अब तक के कार्यकाल में बैंक को लगभग 100 करोड़ रुपये की क्षति पहुंचा चुके है। घूस के रूप में करोड़ों रुपये का धन अर्जित किया है।

शिकायत में कहा गया है कि इनकी मनमानी और भ्रष्ट कार्यशैली से संस्थान बंद होने की कगार पर पहुंच गया है। आगरा में लगभग 100 करोड़ की अघोषित संपत्ति के मालिक केपी सिंह ने आगरा के सिकंदरा क्षेत्र में 40 कमरों का होटल भी बनवा लिया है। शिकायती पत्र में लिखा है, सहकारिता विभाग के भ्रष्ट अधिकारी केपी सिंह जिन्होंने प्रबंध निदेशक उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक, प्रबंध निदेशक पीसीयू, अपर निबंधक एवं अपर आयुक्त प्रशासनिक सहकारिता रहते हुये कम से कम 15 करोड़ की वित्तीय अनियमितता की है। इस संबंध में पुष्पेन्द्र कुमार, सुनील, राजदत्त पाण्डेय,सहकार भारती उत्तर प्रदेश, आरके सिंह, अरविन्द कुमार सिंह, राकेश कुमार सिंह आदि ने पूर्व में कई शिकायतें कर जांच कराने की मांग की। लेकिन इन शिकायतों पर केपी सिंह की पहुंच भारी पड़ी और यह शिकायतें रद्दी के टोकरे में डाल दी गई।

 

बिना स्वीकृत पद के ही बना दिये नये पद

शिकायतकर्ता ने अपने पत्र में लिखा है कि केपी सिंह ने मार्च 2019 में क्षेत्रीय कार्यालय खोलने का आदेश दिया, जबकि निबंधक ने अप्रैल 2019 में बैंक में स्वीकृत पदों का जो विवरण जारी किया, उसमें क्षेत्रीय प्रबंधक का पद स्वीकृत नहीं है। केपी सिंह ने बिना स्वीकृत पद के ही क्षेत्रीय प्रबंधक बना दिये। क्षेत्रीय प्रबंधक पद उत्तर प्रदेश सहकारी संस्थागत सेवा मण्डल से भी अनुमोदित नहीं है। क्षेत्रीय कार्यालय खोलने के लिये क्षेत्रीय प्रबंधक के टीए-डीए आदि के रूप में करोड़ों रुपये खर्च किये जा रहे है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि जिस पद की स्वीकृति ही नहीं है, उस पद के अनुरूप कार्यालय खोलना और खर्च करने के कारण बैंक को आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है।

मनमाने तबादलों का भी आरोप

उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक के 36 शाखा प्रबंधकों को प्रखण्ड कार्यालयों पर स्थानांतरण किया गया, जबकि शाखाओं पर शाखा प्रबंधकों की अत्यंत कमी है। प्रखण्ड कार्यालयों में 36 शाखा प्रबंधकों का स्थानांतरण करने के कारण लगभग 15 लाख रुपये प्रति माह की बर्बादी हो रही है।

निलंबन के बाद किया बहाल

आरोप है कि एमडी केपी सिंह ने लगभग 50 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार के आरोप में उत्तर प्रदेश शासन के निर्देश पर लखीमपुर खीरी के कर्जमाफी दुरुपयोग के प्रकरण में विभिन्न पदों पर कार्यरत 29 कर्मचारियों, अधिकारियों को निलंबित किया। सभी को गबन का आरोप पत्र अलग-अलग दिया गया। प्रतिवाद का उत्तर एकदम अलग था। बहाली के लिये अलग-अलग कारण बताओ नोटिस दी गई और करोड़ों रुपये का सुविधा लेकर लेकर बहाली का अलग-अलग आदेश कर दिया। इससे संस्था को लगभग 50 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

शिकायत होने के एक महीने बीत चुके हैं जिसके दौरान लोकसभा का चुनाव पूरे देश सहित प्रदेश में हो रहा था लेकिन अब चुनाव बीत चुका है नतीजे आ चुके हैं देखना यह है कि अब प्रकरण में स्थित कब साफ होगी ?

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