आवेश तिवारी
वह 20 साल की उम्र तक हकलाता था, फिर उसने शीशे के सामने कविताएं पढ़नी शुरू की उसका हकलाना बंद हो गया। उसके हिस्से बचपन से ही गहरी उदासी और अवसाद आया लेकिन उसने कभी हार न मानी।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक मुल्क के राष्ट्रपति पद का शपथ लेने आज जब वो अपने शहर से निकला तो भीड़ के बीच अपने 46 साल के युवा बेटे को याद कर रो पड़ा, जिसको कैंसर खा गया था। उसका बचपन गरीबी में जरूर बीता लेकिन वो नदी से मगरमच्छ पकड़ कर लाने जैसा कोई अजूबा नही करता था। हां, वो बिडेन हैं।
बिडेन की कहानी उन लोगो की कहानी में से एक है जो लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और आम आदमी के सम्मान से कभी समझौता नही करते। 29 साल की छोटी उम्र में सीनेटर बनने वाला वह पहला व्यक्ति था। इधर 1972 में उन्होंने चुनाव जीता एक सप्ताह बाद ही एक दुर्घटना में बिडेन की पहली पत्नी और एक साल की बेटी की मौत हो गई दो बच्चे बुरी तरह से घायल हो गए। उन्होंने कहा मैं इस्तीफा दे देता हूँ लोगों ने कहा नही हार नही माननी है। बिडेन ने कहा ठीक है।
कुछ समय बाद किसी ने पूछा कि उस ड्राइवर को सजा क्यों नही दिलाते जिसने आपकी पत्नी की गाड़ी को टक्कर मारी थी? बिडेन ने कहा मैंने उसे माफ कर दिया है। इस बात पर यकीन करना मुश्किल है मगर सच है 36 साल तकः अपने बेटे को देखने वो रोजाना वाशिंगटन से देलवारे की लगभग दो घण्टे की यात्रा किया करते थे मगर उस बेटे को भी कैंसर ने छीन लिया।
बिडेन 1988 में ही सम्भवतः अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाते मगर बेहतर हुआ कि नही बने। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी उन्हें वापस लेनी पड़ी और अगले ही वर्ष उनकी एक नही कई ब्रेन सर्जरी हुई। खाड़ी युद्ध का पुरजोर विरोध करने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा लेकिन वो इसके लिए तैयार थे। 2008 में एक बार फिर वो राष्ट्रपति पद की दौड़ में थे लेकिन न तो पैसा था न ही भीड़। उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी।
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उस वक्त ओबामा ने कहा उपराष्ट्रपति बन जाइये तो बाइडेन ने इनकार कर दिया। लेकिन खूब मनाने के बाद फिर से तैयार हो गए। उपराष्ट्रपति बने तो कुछ साल बाद जवान बेटा खो दिया। डेमोक्रेट्स 2016 में ही बिडेन को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना चाहते थे मगर उन्होंने पेंसिल्वेनिया में पढ़ाना पसन्द किया। दुखों से निकला आदमी दर्द की पहचान कर लेता है बिडेन उन्ही में से हैं।
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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं । यह लेख उनकी फेसबुक वॉल से लिया गया है)