Monday - 28 October 2024 - 11:28 AM

सवालों के घेरे में भीमा-कोरेगांव मामला

जुबिली न्यूज डेस्क

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में पिछले दो सालों से रोना विल्सन और 15 दूसरे एक्टिविस्ट जेल में बंद हैं। जेल में बंद इन एक्टिविस्ट ने दावा किया है कि जिन सबूतों के आधार पर उन्हें हिरासत में लिया गया वह कंप्यूटर में धोखे से डाले गए।

दरअसल इस दावे के पीछे एक अमेरिकी कंपनी द्वारा की गई जांच है। इस जांच का नतीजा अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट में छापे गए हैं।

यह जानकारी सामने आने के बाद से रोना विल्सन के वकीलों ने बॉम्बे हाई कोर्ट में अर्जी देकर उनकी रिहाई की मांग की है। इसके साथ ही इस पूरे मामले की नए सिरे से जांच की भी मांग की है।

रोना के वकीलों ने अपनी याचिका में अमेरिकी डिजिटल फॉरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसल्टिंग की एक रिपोर्ट का हवाला भी दिया है।

इस अमेरिकी कंपनी ने रोना विल्सन के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की एक कॉपी का निरीक्षण किया था। निरीक्षण के बाद कंपनी ने दावा किया है कि विल्सन की गिरफ्तारी के करीब 22 महीने पहले उनके कंप्यूटर में एक मैलवेयर भेज कर कंप्यूटर को हैक कर लिया गया था। उसके बाद धीरे धीरे उनके कंप्यूटर में कम से कम 10 दस्तावेज “प्लांट” किए गए।

मतलब यह सब विल्सन की जानकारी के बिना उनके कंप्यूटर में छिपा दिए गए। हालांकि कंपनी की रिपोर्ट में मैलवेयर भेजने वाले के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

विल्सन को हिरासत में लिए जाने के बाद एनआईए ने उनका कंप्यूटर जब्त कर लिया था, लेकिन उच्चतम अदालत के आदेश पर

एनआईए को उस कंप्यूटर के हार्ड डिस्क की एक कॉपी वकीलों को देनी पड़ी थी।

एनआईए ने दावा किया था कि कंप्यूटर से एक चिट्ठी बरामद हुई थी जिसमें पीएम मोदी की हत्या करने की साजिश के बारे में लिखा हुआ था।

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भीमा-कोरेगांव मामले में लेखक और ऐक्टिविस्ट वरवरा राव भी जेल में कैद हैं।

विल्सन के वकीलों ने एनआईए द्वारा दी गई हार्ड डिस्क की उस कॉपी को अमेरिका के बार एसोसिएशन को भेजा था और उनसे उसकी फॉरेंसिक जांच करवाने की गुजारिश की थी।

वकीलों की कोशिशों का नतीजा है आर्सेनल के रिपोर्ट। फिलहाल अब वकीलों ने हाई कोर्ट से अपील की है कि रोना विल्सन को रिहा किया जाए। उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट को रद्द किया जाए।

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इसके साथ ही यह मांग भी की गई है कि इस पूरे मामले की नए सिरे से जांच के लिए एक विशेष टीम गठित की जाए जिसमें डिजिटल फॉरेंसिक के जानकार हों और जिसकी अध्यक्षता उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के कोई सेवानिवृत्त जज करें।

वहीं इस मामले में एनआईए ने वॉशिंगटन पोस्ट अखबार से कहा है कि उसने भी विल्सन के कंप्यूटर की फॉरेंसिक जांच करवाई थी मगर उसमें किसी भी मैलवेयर के होने की बात सामने नहीं आई थी।

एनआईए ने यह भी कहा है कि डिजिटल सबूतों के अलावा जो आरोपी ऐक्टिविस्ट हैं उनके खिलाफ पर्याप्त मौखिक सबूत और दस्तावेज भी हैं।

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