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देशभक्ति के संदर्भ में गांधी दर्शन को प्रासंगिक मानते हैं भागवत

कृष्णमोहन झा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत हमेशा ही अपनी इस बात पर अडिग रहे हैं कि भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाला हर व्यक्ति हिंदू है और हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है जो एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।

संघ प्रमुख ने समय समय पर विभिन्न मंचों से दिए अपने भाषणों में हिंदुत्व की जो व्याख्या की है उसने हिंदुत्व की अवधारणा के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

वे कट्टर हिंदुत्व अथवा साफ्ट हिंदुत्व जैसे शब्दों के प्रयोग को उचित नहीं मानते। भागवत हिंदुत्व को एक ऐसी जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किए जाने के पक्षधर हैं जो जोडना सिखाती है। वे कहते हैं कि पूजा पद्धतियां अलग अलग होने के बावजूद भारत में रहने वाले 130 करोड़ लोग हिंदू हैं। यह विवाद का विषय नहीं है और इस पर कोई विवाद की गुंजाइश नहीं है।

लगभग दो वर्ष पूर्व नई दिल्ली में संघ द्वारा आयोजित ‘भविष्य का भारत’ कार्यक्रम में भागवत ने हिंदुत्व के संबंध में महात्मा गांधी के विचारों को उद्धृत करते हुए कहा था कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है।

नववर्ष के पहले दिन नई दिल्ली में ‘मेकिंग आफ ए हिंदू पेट्रियाट’ शीर्षक पुस्तक के विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने महात्मा गांधी के विचारों का तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए कहा जो भी हिन्दुस्तान में रहता है वह देशभक्त होगा ही।

भागवत ने कहा कि हो सकता है कि वह सोया हुआ हिंदू हो । ऐसे हिन्दू को जागृत करने की आवश्यकता है। सरसंघचालक ने जे.के.बजाज और डी.श्रीनिवास द्वारा लिखित उक्त पुस्तक की विषयवस्तु की सराहना करते हुए कहा कि यह पुस्तक अपने आप में एक शोध ग्रंथ है जिसमें महात्मा गांधी के जीवन दर्शन का सारगर्भित विश्लेष्ण प्रस्तुत किया गया है। महात्मा गांधी की विचारधारा को समझने के लिए यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है।

सरसंघचालक ने कहा कि सिर्फ मतभेद के आधार पर किसी को देश विरोधी मान लेना उचित नहीं होगा। अगर कुछ लोगों का हमारे साथ मतभेद है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनके मन में देश के प्रति प्रेम नहीं है। मात्र मतभेद होने से किसी को देश विरोधी नहीं कहा जा सकता।

सरसंघचालक ने कहा कि हमें गांधी जी के इस कथन पर गौर करना चाहिए कि’ मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है।’ उसका देशभक्त होना उसकी प्रकृति में है। महात्मा गांधी हमेशा कहा करते थे कि ‘मेरा धर्म सब धर्मों का धर्म है’। उनका कहना था कि जिस धर्म में सभी धर्मों को साथ लेकर चलने की सामर्थ्य हो वही उनका धर्म है।

गांधीजी के स्वराज की परिकल्पना का उल्लेख करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि उन्होंने स्वधर्म को समझने के लिए स्वधर्म को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया था।उनका स्पष्ट कहना था कि स्वधर्म को समझें बिना स्वराज को नहीं समझा जा सकता।

गौरतलब है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने जिस पुस्तक का विमोचन किया उसके लेखक द्वय अपनी कृति में गांधी जी के स्वराज की पृष्ठभूमि में उनकी देशभक्ति की विस्तार से चर्चा की गई है।

संघ प्रमुख ने स्वधर्म और देशभक्ति के संबंध में गांधीजी के विचारों को विचारणीय और अनुकरणीय बताते हुए कहा कि गांधी जी हमेशा कहते थे कि”मैं अपने स्वधर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और आपको भी अपने स्वधर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनने के लिए बाध्य करूंगा।”

संघ प्रमुख ने गांधीजी के कथनों का उदाहरण देते हुए कहा कि स्वधर्म से ही व्यक्ति के मन में देश भक्ति का भाव जागृत  होता है। भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेकर, इसे अपना मानकर यहां की माटी की पूजा करने वाले हर भारतीय की प्रकृति में देशभक्ति है।

इसे किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता। संघ प्रमुख ने कहा कि समाज में निर्भयता का वातावरण होना चाहिए। भय से सौदे बाजी तो हो सकती है परंतु एकात्मता नहीं आ सकती।

इसलिए समाज में ऐसा माहौल नहीं होना चाहिए कि किसी को अपने अस्तित्व के लिए खतरा महसूस हो। एक लीक पर चलने वाले लोगों को दूसरी लीक का अनुसरण करने वालों का सम्मान करना चाहिए। संघ प्रमुख ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में गांधीजी के दर्शन की सूक्ष्म विवेचना प्रस्तुत करते हुए उन्हें एक ऐसा आदर्श महापुरुष बताया जिन्होंने जो कुछ भी कहा उसके उदाहरण वे खुद बने।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा कि यह महात्मा गांधी के दर्शन को समझने के लिए “मेकिंग आफ ए हिंदू पेट्रियाट” ग्रंथ बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। लेखक ने महात्मा गांधी के दर्शन का गहराई से अध्ययन करने के बाद यह पुस्तक लिखी है और गांधी जी के भाषणों, लेखों,पत्रों आदि का इसमें समावेश कर इसे एक प्रामाणिक शोध ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया है।

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इस तरह इस पुस्तक में लेखक ने जो कुछ भी लिखा है उसके साक्षी स्वयं गांधी जी बन गए हैं। श्री भागवत ने अपने विद्वतापूर्ण उद्बोधन में गांधीजी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा .हेडगेवार के संबंधों का उल्लेख करते हुए महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्रसंगों की चर्चा भी की और कहा कि उनके विचार आज भी पहले जैसे ही प्रासंगिक प्रतीत होते हैं ।

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