कृष्णमोहन झा
अमेरिका में पराजित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए आखिरकार बेमन से व्हाइट हाउस खाली कर दिया। उनके सामने इसके अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं था परंतु अगर उन्होंने नवंबर में संपन्न राष्ट्रपति चुनावों में पूरी गरिमा और विनम्रता के साथ अपनी पराजय स्वीकार कर ली होती तो अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास व्हाइट हाउस से उन्हें भी वैसी ही सम्मान जनक विदाई मिल सकती थी जैसी कि सभी निवर्तमान राष्ट्रपतियों को अतीत में मिलती रही है।
अमेरिका में प्रचलित परंपरा के अनुसार नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की व्हाइट हाउस में पहले निवर्तमान राष्ट्रपति द्वारा अगवानी की जाती थी फिर शपथग्रहण समारोह संपन्न होने के पश्चात नवनिर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति को विदाई देने हेतु व्हाइट हाउस के बाहर तक आते थे
परंतु पराजित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उस शालीन परंपरा का निर्वाह न करते हुए बेआबरू होकर व्हाइट हाउस छोड़ने का रास्ता चुन लिया जो केवल उनकी पराजय से उपजी कुंठा का परिचायक था। ट्रंप तो शपथग्रहण के लिए जो बाइडेन के व्हाइट हाउस पहुंचने के पहले ही वहां से चले गए।
अमेरिका के इतिहास में डोनाल्ड ट्रंप पहले ऐसे निवर्तमान राष्ट्रपति बन गए जिन्होंने नवनिर्वाचित राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने की शालीनता प्रदर्शित नहीं की। उन्हें विदा करने के लिए व्हाइट हाउस के केवल उतने अधिकारी मौजूद थे जिनके लिए प्रोटोकाल के तहत वहां अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना एक मजबूरी थी।
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका सेना द्वारा निवर्तमान राष्ट्रपतियों को परंपरा गत रूप से दी जाने वाली विदाई के पात्र भी नहीं बन सके । चुनाव में पराजित होने के बाद ट्रंप के समर्थकों की हरकतों से अमेरिका को जिस तरह दुनिया के सामने शर्मसार होना पड़ा उसका भी ट्रंप को कोई अफसोस नहीं था।
जाते जाते ट्रंप से यह अपेक्षा की जा रही थी कि वे अपने अमर्यादित व्यवहार के लिए अमेरिकी जनता से क्षमायाचना कर थोड़ा बहुत पश्चाताप करेंगे परंतु विदाई का जो रास्ता उन्होंने चुना, वह सबको अचरज में डाल दिया साथ में वे यह दावा भी कर गए कि ‘ मैं ज्यादा दिन दूर नहीं रहूंगा,हम नए स्वरूप में जल्दी ही वापसी करेंगे।’
अमेरिका में अब आशंका व्यक्त की जा रही है कि डोनाल्ड ट्रंप नए राष्ट्रपति के लिए मुश्किलें खड़ी करने से बाज नहीं आएंगे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन को जो अमेरिका उन्होंने सौंपा है वहां उन्होंने अपने चार वर्षों के कार्यकाल में न केवल सामाजिक विभाजन के बीज बो दिए हैं बल्कि अपने विवादास्पद फैसलों से विश्व बिरादरी में अमेरिका के लिए वे मुश्किलें भी खड़ी कर चुके हैं।
ट्रंप के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह रही कि वे अपने फैसलों पर कभी स्थिर नहीं रहे। उनकी शिगूफे बाजी की आदत से जब तब उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगते रहे। गौरतलब है कि एक बार उन्होंने यहां तक कह दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीर मुद्दे पर उनके सामने भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने का प्रस्ताव रखा है।
ट्रंप के इस बयान का भारत की ओर से तत्काल खंडन कर दिया गया परंतु इससे यह भी साबित हो गया कि ट्रंप शिगूफे बाजी में कितनी दिलचस्पी लेते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के यदिकई फैसले सवालों के घेरे में आए जैसे उन्होंने जलवायु समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन से अपने देश को अलग कर लिया।
ईरान के साथ संधि तोड़ दी। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं को हटाने का फैसला तालिबान से समझौते की नीति अपनाई । जो बाइडेन को जो अमेरिका उन्होंने सौंपा है उसमें अश्वेत आबादी को भेदभाव का शिकार बनाया जाता रहा है। कोरोना और बेरोजगारी के संकट से निपटने में डोनाल्ड ट्रंप की असफलता ने उन्हें कार्यकाल के चौथे वर्ष में अलोकप्रिय बना दिया।
अमेरिका राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के पश्चात् जो बाइडेन ने जो विचार व्यक्त किए हैं उनसे यह संकेत मिल रहे हैं कि अतीत की कड़वाहट को भुला कर नई शुरुआत करने की इच्छा शक्ति उनके अंदर मौजूद है।वे ट्रंप के साथ टकराव की नीति पर चलने के पक्षधर नहीं हैं। जो बाइडेन ने कहा है कि वे पूरे देश के राष्ट्रपति हैं।
यह जीत एक प्रत्याशी की नहीं है यह पूरे लोकतंत्र की जीत है। जो बाइडेन के पहले भाषण के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अनेक मसलों पर वे पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों को बढ़ाने से परहेज़ करेंगे। जो बाइडेन यद्यपि 78 साल के उम्रदराज राष्ट्रपति हैं परंतु उनके भाषण से ऐसा प्रतिध्वनित होता है कि वे यथास्थितिवादी नहीं हैं।
अमेरिका की नई उपराष्ट्रपति कमला हैरिस उनसे लगभग बीस वर्ष छोटी हैं।जो बाइडेन ने अपनी टीम में युवाओं को भी शामिल किया है। अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने स्पष्ट कर दिया है कि देश में अश्वेत आबादी को हेय दृष्टि से नहीं देखा जाएगा। उनके कार्यकाल में अश्वेत आबादी को भी वही सम्मान प्रदान किया जाएगा जो श्वेत आबादी को मिलता आया है।
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जो बाइडेन ने अपने भाषण में जिस तरह भारतवंशी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का उल्लेख करते हुए कहा कि वे अमेरिका में बदलाव का ताजा उदाहरण हैं उससे यह संकेत मिल था है कि जो बाइडेन ने देश में नए युग की शुरुआत करने की इच्छा के साथ राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली है और यह उम्मीद की जा सकती है कि उनके कार्यकाल भारत- अमेरिका संबंधों को और मजबूती मिलेगी।
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता के भारत के दावे को वे कितना समर्थन प्रदान करते हैं यह हमारे लिए सबसे बड़ी उत्सुकता का विषय होगा।