Friday - 25 October 2024 - 10:27 PM

डंके की चोट पर : क्योंकि दांव पर उसकी नहीं प्रधानमंत्री की साख है

शबाहत हुसैन विजेता

हेमवती नन्दन बहुगुणा कांग्रेस के नेता थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. बाद में वह चौधरी चरण सिंह से प्रभावित होकर लोकदल में शामिल हो गए. उत्तर प्रदेश विधानसभा के ठीक सामने जहाँ अब भारतीय जनता पार्टी का दफ्तर है, वहां बहुगुणा जी का सरकारी आवास था. पूर्व मुख्यमंत्री के नाते वह आजीवन उसी मकान में रहे.

मुख्यमंत्री रहने के बावजूद वह साधारण तरीके से रहते थे. सुरक्षा के तामझाम से कोसों दूर थे. बाल रवीन्द्रालय में हुई एक बैठक में वह शामिल होने आये. यह बैठक नगर निकाय चुनाव के मद्देनज़र बुलाई गई थी. इस बैठक में वह नेता आमंत्रित थे जो सभासद प्रत्याशी के तौर पर चिन्हित किये गए थे.

बैठक में एक नेता ने कहा कि अगर बहुगुणा जी एक बार हमारे क्षेत्रों में आ जाएं तो हमारा जीतना आसान हो जाएगा. बहुगुणा जी उस भाषण के बीच में ही खड़े हो गए और बोले कि जो लोग अपने बल पर सभासद भी नहीं बन सकते उन्हें राजनीति छोड़ देनी चाहिए. उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया कि किसी सभासद प्रत्याशी के पक्ष में वह प्रचार करने जायेंगे.

बत्तीस-तैंतीस साल पहले का वह दौर सभासद चुनाव के लिहाज़ से भी बहुत मुश्किल दौर था. आज के मुकाबले तब खर्च भी ज्यादा था. पोस्टर, बैनर से सड़कें पट जाया करती थीं. बड़ी संख्या में प्रचार वाहन सड़कों पर दौड़ते थे. प्रत्याशी इस चुनाव के लिए ऐसे मेहनत करते थे जैसे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हों.

 

 

वक्त बदलने के साथ चुनाव आयोग ने प्रचार के रास्ते में तमाम दीवारें खड़ी कर दी हैं. वाल रायटिंग पर पूरी तरह से रोक लग चुकी है. किसी की दीवार पर पोस्टर भी चस्पा नहीं किया जा सकता. ज़ाहिर है कि इससे खर्च में कमी आयी है.

सभासद चुनाव में अब राजनीतिक दल किस्मत आजमाने लगे हैं. बड़े नेता प्रचार के लिए जाने लगे हैं. लेकिन हैदराबाद में हो रहे निकाय चुनाव में तो हालत यह है कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ताकत भी झोंकी जा रही है.

नगर निकाय चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों को जिताने में देश भर के बड़े नेताओं की ताकत झोंकने का मकसद अब जनता भी समझने लगी है. दरअसल नगर निकाय चुनाव को अब विधानसभा चुनाव का पूर्वाभ्यास भी माना जाने लगा है. दूसरी बात यह है कि नगर निकायों के पास नगर विकास का पूरा ज़िम्मा आ गया है. इसमें बड़ा बजट पास किया जाने लगा है.

नगर के विकास का ज़िम्मा नगर निकाय का होता है. नगर निकाय का प्रतिनिधि और क्षेत्र का विधायक जब एक ही पार्टी का होता है तो विकास की रफ़्तार बढ़ जाती है. विधायक भी तभी कुछ ख़ास कर पाता है जब वह सत्ता पक्ष का विधायक हो.

नगर निकाय का प्रतिनिधि, क्षेत्र का विधायक और सूबे का मुखिया एक ही पार्टी का हो तभी क्षेत्र के लोग विकास का ख़्वाब देख सकते हैं.

पुराने दौर में सभासद किसी भी पार्टी का हो लेकिन वह विकास के संसाधन जुटा ही लेता था. वह निर्दलीय सभासद हो या किसी पार्टी का लेकिन क्षेत्रीय विधायक का सहयोग उसे मिल ही जाता था.

यही वजह है कि हेमवती नन्दन बहुगुणा ने सभासद प्रत्याशियों का प्रचार करने से इनकार कर दिया था लेकिन वक्त के साथ आज हम उस मुकाम पर आ गए जब सभासद प्रत्याशी के पोस्टर पर प्रधानमंत्री की तस्वीर छपने लगी है. यह सियासत के लोगों पर है कि वह यह तय करें कि यह विकास है या फिर गिरावट.

यह पहली बार हो रहा है कि विधानसभा चुनाव प्रधानमन्त्री के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं. लोकसभा चुनाव प्रधानमन्त्री के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं. सभासद चुनाव भी प्रधानमन्त्री के चेहरे पर लड़े जा रहे हैं.

नगर निकाय से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव में चेहरा अगर प्रधानमन्त्री का ही दांव पर है तो यह कौन सी राजनीति की तरफ देश मुड़ रहा है. यह संभल जाने का वक्त है. आने वाले 20 साल में सियासत ऐसी करवट भी बैठ सकती है जब सीवर चोक होने पर प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगने लगें. सड़कें गंदी होने पर प्रधानमन्त्री पर सवाल उठने लगें.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद में जिस तरीके से प्रचार किया उससे लगा जैसे कि वह ओवैसी के मुकाबले खड़े हों. नगर निकाय चुनाव में भी मुकाबले पर ओवैसी, विधानसभा चुनाव में भी मुकाबले पर ओवैसी और लोकसभा चुनाव में भी मुकाबले पर ओवैसी. बीजेपी की इस तैयारी पर ओवैसी ने भी तंज़ कर ही दिया कि निकाय चुनाव में बीजेपी को सिर्फ ट्रम्प को बुलाना बाकी रह गया है.

हैदराबाद नगर निकाय चुनाव पॉवर के खिलाफ पॉवर का चुनाव बन रहा है. तेलंगाना में बीजेपी को अभी तो अपने पैर जमाने की शुरुआत करनी है. खड़े होने की जगह बन जाए तभी तो यह तय हो पायेगा कि मुकाबला करना किस्से है. तेलंगाना ओवैसी का गृह प्रदेश है लेकिन उनकी पार्टी नंबर वन पार्टी नहीं है.

चुनावी मुकाबले में नम्बर वन पार्टी के साथ मुकाबला किया जाता है. मतलब साफ़ है कि जिन नेताओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को आमंत्रित किया उन्होंने उन्हें यह जानकारी ही नहीं दी कि मुकाबला किस्से करना है.

हैदराबाद में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद को भाग्यनगर बनाने का वादा भी कर लिया. नगर निकाय चुनाव जीतकर योगी हैदराबाद का नाम बदल देंगे, क्या यह हास्यास्पद नहीं है. ऐसे गलत वादों के ज़रिये क्या नगर निकाय चुनाव को भी वोटों के ध्रुवीकरण की तरफ मोड़ने की तरफ जा रही है बीजेपी.

जिम्मेदारियां बांटने से काम आसान हो जाता है लेकिन मौजूदा सियासत में एक ही आदमी को केन्द्र में रखकर रास्ते तय किये जा रहे हैं. हेमवती नन्दन बहुगुणा ने सभासदों के प्रचार से इनकार कर जो लकीर खींची थी वह छोटे पद की दौड़ के लिए तैयार व्यक्ति को मज़बूत करने की पहल थी लेकिन यह पहल तो मजबूर बनाने की है. यह पहल तो पिछलग्गू बनाने की है.

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : मोहब्बत ऐसे क़ानून को मानने से इनकार करती है

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : लव – जेहाद – राम नाम सत्य

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : कमलनाथ के आइटम से क्यों कुम्हलाने लगा कमल

यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : सियासत का कंगना और जंगलराज की घंटी

प्रधानमंत्री के चेहरे पर चुनाव जीतने वाला सभासद विकास की गंगा बहायेगा सोचना भी बेइमानी होगा क्योंकि दांव पर उसकी नहीं प्रधानमंत्री की साख है.

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com