कृष्णमोहन झा
देश की अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती ने केंद्र सरकार को कितना चिंतित कर रखा है, इसका अंदाजा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा की जाने वाली उन घोषणाओं से लगाया जा सकता है, जिनके जरिए सरकार को अर्थव्यवस्था की चिंताजनक सुस्ती के दूर होने की पूरी उम्मीद है।
केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा पिछले माह से यह भरसक कोशिश की जा रही है कि अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती मंदी का रूप न ले सकें। सरकार के इन उपायों में रिजर्व बैंक भी शामिल हो गया है। रिजर्व बैंक ने विगत दिनों रेपो रेट में एक बार फिर कटौती की घोषणा की, जिससे वह पिछले 10 वर्षों में अपने न्यूनतम स्तर 5.15 प्रतिशत पर आ पहुंची है।
गौरतलब है कि रेपो रेट रिजर्व बैंक की वह ब्याज दर है, जिस पर व अन्य बैंकों को अल्प अवधि के लिए धन उपलब्ध कराता है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष के दौरान विकास दर के लक्ष्य को 6.9% से घटाकर 6% कर दिया है।
रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में की गई कमी करने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि बैंक उपभोक्ताओं को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराने में समर्थ हो सके। रेपो रेट में कमी का फायदा उपभोक्ताओं को तत्काल पहुंचाने के इरादे से रिजर्व बैंक पहले ही बैंकों को अपनी ब्याज दरों को रेपो रेट से लिंक करने का निर्देश जारी कर चुका है।
पहले यह देखने में आता था कि रिजर्व बैंक तो रेपो रेट में कमी कर देता था, परंतु बैंक उस कमी का तत्काल लाभ उपभोक्ताओं को देने में रुचि नहीं दिखाते थे। इसलिए रिजर्व बैंक ने बैंकों को अपनी ब्याज दरों को रेपो रेट से लिंक करने के निर्देश दिए है। रेपो रेट में की गई इस कमी का उद्देश्य पूरा हो सकता है ,जबकि ग्राहक आने वाले त्योहारों के मौसम में अधिक से अधिक ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित हो।
सरकार को भी पता है कि त्योहारों के मौसम में होम लोन, ऑटोमोबाइल लोन व अन्य व्यक्तिगत उपभोक्ता ऋण लेने के लिए तभी प्रोत्साहित होंगे, जबकि यह लोन कम ब्याज दर पर उपलब्ध हो सकें। रेपो रेट में कमी का फैसला जिस बैठक में लिया उसी में उसने माइक्रो फाइनेंस की सीमा एक लाख से बढ़ाकर एक लाख पच्चीस हजार करने का फैसला भी किया है।
रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि ग्रामीण क्षेत्रों में धन की उपलब्धता बढ़ने से लोग अधिक ऋण लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे। रिजर्व बैंक के इन फैसलों से सरकार की यह उम्मीद बढ़ी है कि लोगों को कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता सुगम हो जाने से अब मांग में भी तेजी आएगी।
अब देखना यह है कि सरकार और रिजर्व बैंक के संयुक्त प्रयास भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती को नियंत्रित करने में कितने कारगर साबित होंगे। जाहिर सी बात है कि अगर ये उपाय भी कारगर साबित नहीं हुए तो सरकार की चिंताएं बढ़ सकती है। ऐसे में अगर अर्थशास्त्रियों के द्वारा भी इस सुस्ती के मंदी में बदलने की आशंका व्यक्त की जाएगी तो सरकार भी घबरा सकती है।
मोदी सरकार के मंत्री रविशंकर प्रसाद अर्थशास्त्रियों की इन आशंकाओं को निराधार बताते हुए कहते हैं 2 अक्टूबर को रिलीज हुई तीन फिल्में अगर एक दिन में ही 120 करोड़ रुपए की कमाई कर लेती है तो मंदी की आशंकाओं को कैसे सही ठहराया जा सकता है। अपने इस बयान पर विवाद उत्पन्न होने पर रविशंकर ने सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान को संदर्भ से अलग पूरी करें तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया है।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जिस दिन उन्होंने यह बयान दिया, उस दिन वे मुंबई में थे, इसलिए उन्होंने अपनी बात कहने के लिए फिल्मों का उदाहरण दिया। रविशंकर प्रसाद ने यह भी कहा कि वह बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं, इसलिए अपने पूर्व में दिए बयान को वापस ले रहे हूं।
अब सवाल यह उठता है कि अगर रविशंकर प्रसाद ने अपना बयान वापस लेने में कोई संकोच नहीं किया तो क्या यह भी मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में आई यह सुस्ती सरकार की चिंता का विषय बन चुकी है।
गौरतलब है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार भी ऐसे बयान दे चुके हैं, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती के मंदी में बदलने की आशंकाओं को गलत ठहराया गया है।उन्होंने सुस्ती को जल्द ही नियंत्रित कर लिए जाने की उम्मीद जताई है।
जब देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती की बात की जा रही है तो ऐसे में जीएसटी की ओर ध्यान जाना भी स्वाभाविक है। विगत दिनों जीएसटी के जरिए कर संग्रह में गिरावट की खबरें आई थी, तब उसकी एक बड़ी वजह जीएसटी की जटिलताओं को बताया गया था।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ऐसी आलोचनाओं पर क्षुब्द होकर कहती हैं कि जीएसटी की कुछ खामियों के लिए उसे कोसने के बजाय इस प्रणाली को बेहतर बनाने के बारे में सुझाव दिए जाने चाहिए। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार जीएसटी के सरलीकरण के लिए इसमें निरंतर बदलाव ला रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं है जीएसटी को सरलीकरण बनाने के लिए इसमें अनेक बदलाव किए गए हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जीएसटी के निरंतर सरलीकरण के बावजूद कर संग्रह में गिरावट क्यों दर्ज की गई। क्या अर्थव्यवस्था की सुस्ती का इससे कोई संबंध तो नहीं है।
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह अगर यह आशंका व्यक्त करें कि जीडीपी का 5 फ़ीसदी पर पहुंचना यह संकेत देता है कि हम मंदी के मंजर में फस चुके हैं, तो सरकार उनके इस विचार को विरोधी नेता का स्वाभाविक बयान कहकर खारिज कर सकती है, परंतु सत्तारूढ़ दल भाजपा के एक वरिष्ठ नेता व अर्थशास्त्री डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि अकेला साहस या ज्ञान अर्थव्यवस्था को क्रैश होने से नहीं बचा सकता।
तब सरकार को गंभीर होना चाहिए। स्वामी का कहना है कि अगर वर्तमान आर्थिक संकट से उबरना है तो सरकार को अपने अर्थशास्त्रियों को खुलकर बोलने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। सुब्रमण्यम स्वामी ने सरकार को अप्रिय सत्य को भी उदारता के साथ सुनने की सलाह दी है।
उधर भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भारतीय अर्थव्यवस्था के गंभीर संकट की मुख्य वजह अर्थव्यवस्था के बारे में दृष्टिकोण की अनिश्चितता को मानते हैं। राजन मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले कई वर्षों में अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन इसमें जो सुस्ती दिखाई दे रही है, उसकी वजह निवेश, खपत और निर्यात में आई गिरावट है।
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती का कारण यह भी है कि इसके पहले की समस्याओं का समाधान नहीं किया गया और देश विकास के नए स्रोतों को खोजने में असफल रहा।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की नई अध्यक्ष क्रिस्टीना जारजीवा की माने तो जो वैश्विक अर्थव्यवस्था दो साल पहले तक सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही थी। उसे दुनिया में इस समय चल रहे ट्रेड वार ने काफी प्रभावित किया है। इसकी वजह से वैश्विक व्यापार विकास की दर लगभग थम गई है। ट्रेडवार से उत्पन्न सुस्ती का असर लगभग 90 देशों पर पड़ जाता है।
भारत भी इससे अछूता नहीं रह सकता। उधर विश्व बैंक ने भारत की विकास दर के अनुमान को 7.5 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है। विश्व बैंक ने अर्थव्यवस्था की सुस्ती के कारण भारत के फाइनैंशल सेक्टर की स्थिति को ओर बिगड़ने की चेतावनी दी है।
इन सभी विचारों पर गौर करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचना गलत नहीं होगा कि देश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक कारक भी प्रभावित कर रहे हैं और आगे आने वाला समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और नई चुनौतियां लेकर आ सकता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था की सुस्ती को दूर करने के लिए नए और साहसी कदम उठाने में जो तत्परता दिखाई है, वह स्वागत योग्य है, परंतु सरकार को देश की जनता को भी वस्तु स्थिति से अवगत कराने में परहेज नहीं करना चाहिए।
केवल दिलासा देने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। सरकार को अनुभवी अर्थशास्त्रियों के सुझाव आमंत्रित करने में भी कोई संकोच नहीं करना चाहिए, फिर भले ही वह सत्ता पक्ष से संबंध न रखते हो।