जुबिली न्यूज डेस्क
लोकसभा चुनाव में करीब छह महीने का समय शेष बचा है और बिहार में जाति पर बवाल शुरू हो गया है. बिहार की राजनीति और जातीय समीकरण में चोली-दामन का साथ रहा है. गोटी सटीक बैठ गई तो सूबे की सत्ता का शीर्ष मिलना तय है और राजनीतिक दलों का समीकरण गड़बड़ाया तो विपक्ष में बैठना. विधानसभा में विपक्ष की बेंच से ट्रेजरी बेंच का सफर इन्हीं उलझे हुए जातीय समीकरणों से होकर गुजरता है. जिसने साध लिया, वही सिकंदर. राजपूत और ब्राह्मण नेता आमने-सामने हैं. ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई देखना ये है कि ये लड़ाई किसे भारी पड़ती है.
दरअसल, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राज्यसभा सांसद डॉक्टर मनोज झा ने संसद में महिला आरक्षण पर चर्चा के दौरान एक कविता सुनाई थी- ‘ठाकुर का कुआं’. राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पर चर्चा 21 सितंबर को हुई थी. बिल उसी दिन पास भी हो गया लेकिन हफ्तेभर के भीतर ही मनोज झा के भाषण को लेकर हंगामा मच गया.
समाजवाद के नाम पर दोगलापन है
मनोज झा के खिलाफ उनकी ही पार्टी के विधायक चेतन आनंद ने मोर्चा खोल दिया है. चेतन आनंद ने मनोज झा पर कविता के जरिए पूरे ठाकुर समाज को विलेन के रूप में पेश करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि ठाकुर सभी को साथ लेकर चलते हैं. समाजवाद में किसी एक जाति को टारगेट करना समाजवाद के नाम पर दोगलापन है. मनोज झा का बयान आरजेडी को ए टू जेड की पार्टी बनाने की कोशिशों के लिए झटका है. चेतन आनंद ने इस मुद्दे को लालू यादव के सामने उठाने की बात कही तो वहीं उनके पिता आनंद मोहन ने भी मनोज झा पर हमला बोला.
जीभ खींचकर सभापति के पास उछाल देता
आनंद मोहन ने कहा कि बहस जब महिला आरक्षण पर चल रही थी तो फिर बीच में ठाकुर कैसे आ गया. आनंद मोहन ने कहा कि अगर मैं राज्यसभा में होता तो जीभ खींचकर सभापति के पास आसन की ओर उछाल देता. हम जिंदा कौम के लोग हैं, ये अपमान बर्दाश्त नहीं होगा. ठाकुर का कुआं को लेकर आरजेडी के विधायक चेतन आनंद और उनके पिता आनंद मोहन ने सांसद मनोज झा पर एक समाज के अपमान का आरोप लगाया.
मनोज झा के संसद में दिए भाषण को हफ्तेभर हो चुका है और ठाकुर अस्मिता की बात अब उठ रही है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या सियासी नफा-नुकसान का गुणा-भाग करने के बाद सोच-समझकर इसे विवाद की शक्ल दी जा रही है? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर मनोज झा ने संसद में कविता सुनाकर ठाकुर समाज को टारगेट किया, अपमान किया तो चेतन आनंद को ये हफ्तेभर बाद समझ आया?
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लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय बचा है इसलिए ये सवाल और गहरे हो गए हैं. कोई इसे आनंद मोहन की जेल से बाहर आने के बाद क्षत्रिय अस्मिता के सहारे खुद को सियासत में फिर से स्थापित करने की रणनीति बता रहा है तो कोई ओबीसी की गोलबंदी के लिए आरजेडी का दांव. आरजेडी मनोज झा के पक्ष में खुलकर आ भी गई है. आरजेडी ने एक्स पर मनोज झा के भाषण को दमदार, शानदार और जानदार बताते हुए वीडियो का लिंक शेयर किया है.
बिहार की सियासत जातियों के मकड़जाल में उलझी रही है. ब्राह्मण और राजपूत जैसी अगड़ी जातियां परंपरागत रूप से बीजेपी समर्थक मानी जाती हैं. सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि आरजेडी के अखाड़े में शुरू हुई ब्राह्मण-ठाकुर अस्मिता की कुश्ती में लालू यादव की पार्टी किसी का समर्थन करे, नुकसान उसका नहीं होना है.
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नुकसान भगवा ब्रिगेड को ही होगा
वरिष्ठ पत्रकार अशोक ने कहा कि मनोज झा के बयान पर ताजा विवाद के दो पहलू हैं. एक ये कि ब्राह्मण और ठाकुर में ठनी, बात आगे बढ़ी तो दोनों ही बीजेपी के कोर वोटर हैं, इसलिए नुकसान भगवा ब्रिगेड को ही होगा. दूसरा ये कि ताजा विवाद के इम्पैक्ट से ओबीसी आरजेडी के पक्ष में लामबंद हो गए तो फायदा आरजेडी को होगा. दोनों ही परिस्थितियों में आरजेडी को सियासी लाभ और बीजेपी को नुकसान नजर आ रहा है.
बीजेपी भी शायद इस बात को समझ रही है. बीजेपी के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने इस पूरे विवाद को लेकर संतुलित बयान देते हुए कहा है कि इसका जवाब तो लालू यादव को देना चाहिए. लालूजी की पार्टी हमेशा से सामाजिक विषमता में विश्वास रखती है. समाज में कैसे एक-दूसरे में झगड़ा लगे, उनकी ये योजना रहती है. किसी को भी किसी समाज को आहत करने का अधिकार नहीं है.