पॉलिटिकल डेस्क
बस्ती उत्तर प्रदेश का एक ऐसा जिला है जो राजनीति और धर्म दोनों के लिहाज से हमेशा प्रासंगिक रहा है। यह भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर और बस्ती जिला का मुख्यालय है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह स्थान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।
बस्ती जिला गोण्डा जिले के पूर्व और संत कबीर नगर के पश्चिम में स्थित है। क्षेत्रफल की दृष्टि से भी यह उत्तर प्रदेश का सातवां बड़ा जिला है। प्राचीन काल में बस्ती को ‘कौशल’ के नाम से जाना जाता था।
बस्ती जिला पूर्व में संत कबीर नगर, पश्चिम में गोंडा और उत्तर में सिद्धार्थ नगर से घिरा है। इसके दक्षिण में घाघरा नदी है जो फैजाबाद और आंबेडकर नगर को बांटती है।
बस्ती राष्ट्रीय स्तर के युवा संगठन ‘राष्ट्रीय युवा संगठन’ की वजह से भी पूरे देश में जाना जाता है। भावेश कुमार पाण्डेय ने इस संगठन की शुरुआत की थी जो 2012 से बस्ती में ‘मिनी मैराथन’ का आयोजन करती है।
आबादी/ शिक्षा
2011 की जनगणना के मुताबिक बस्ती की आबादी 24,64,464 है जिसमें पुरुषों की संख्या 1255,272 लाख और महिलाओं की संख्या 12,09,192 है। जहां एक ओर यूपी का लिंगानुपात 912 है वहीं यहां प्रति हजार पुरुषों पर 963 महिलायें है।
2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने इसे देश के 250 पिछड़ें जिलों में शामिल किया था। यह यूपी का 34वां जिला है जिसे अति पिछड़ा अनुदान निधि के तहत के विशेष सहायता मिलती है। यहां की औसत साक्षरता दर 56.56 प्रतिशत है जिनमें महिलाओं की 47.48 प्रतिशत और पुरुषों की की साक्षरता दर 65.3 प्रतिशत है।
यहां अवधी और भोजपुरी भाषा व्यापक रूप से बोली जाती है। वर्तमान में यहां कुल मतदाता की संख्या 1,787,476 है जिसमें महिला मतदाता 824,831 और पुरुष मतदाता की संख्या 962,508 है।
बस्ती जिले में चार तहसीलें हैं जिसमें हर्रैया, बस्ती, भानपुर और रूधौली शामिल है। बस्ती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में 61वें नंबर की सीट है। बस्ती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में यूपी विधानसभा की पांच सीटें आती है जिसमें हर्रैया, बस्ती सदर, रुधौली, महादेवा और कप्तानगंज शामिल है। इसमें महादेवा की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।
राजनीतिक घटनाक्रम
बस्ती लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आने के बाद से 2004 तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही। 2004 में परिसीमन के बाद यह सामान्य श्रेणी में आ गयी। 1952 में हुए चुनावों के दौरान यह सीट बस्ती- गोरखपुर के नाम से जानी जाती थी।
1957 में हुए चुनावों में राम गरीब निर्दलीय जीतकर लोकसभा पहुंचे। उसी साल हुए उपचुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के केशव मालवीय ने जीत हासिल की। 1962 के आम चुनावों में केशव मालवीय दोबारा से निर्वाचित हुए। 1967 और 1971 का चुनाव जीतकर कांग्रेस ने इस सीट पर लगातार तीन बार कब्जा किया।
1977 के लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल ने यहां पहली बार जीत दर्ज की। 1980 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस(आई), 1984 का कांग्रेस और 1989 में जनता पार्टी ने जीता। 1991 से 1999 तक भारतीय जनता पार्टी ने लगातार चार बार यहां जीत हासिल की।
2004 में बीजेपी की नजर अपनी पांचवी जीत पर थी पर बहुजन समाज पार्टी ने बीजेपी का विजय रथ रोक दिया। अगले साल 2009 में भी बसपा ने दुबारा जीत दर्ज की। वर्तमान में यहां से भाजपा के हरीश चन्द्र द्विवेदी सांसद है।