जुबिली न्यूज डेस्क
कोरोना संकट ने बाजार को जिस तरह हिलाया है उसका असर बैंकों पर भी पड़ना तय है। उम्मीद की जा रही है कि सन 2021 में बैंकों की ऋण बृद्धि दर 0 से 1 फीसदी रह सकती है।
अगर ऐसा हुआ तो ये बीते कई दशकों में सबसे कम होगा। अगर 2020 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष के आंकड़ों को देखें तो यह ऋण वृद्धि दर 6 प्रतिशत रही थी। यानी एक बड़ा झटका बैंकों की कमाई को लगने वाला है।
एक अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है जिसके कारण बैंक ऋण की वृद्धि में 5 फीसदी की कमी आने के आसार हैं। जबकि सामान्य स्थितियों में अनुमान लगाया गया था कि यह वृद्धि 6 से 8 प्रतिशत की हो सकती है।
ये अनुमान रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने लगाए हैं, क्रिसिल इस गिरावट के लिए कोरोना संकट को ही जिम्मेदार मान रहा है ।
देश में आर्थिक प्रगति के धीमे पड़ने की वजह से बैंक पहले से ही संकट में आ रहे थे, दूसरी तरफ एनपीए के खतरे ने भी बैंकों के ऋण देने की स्थिति पर प्रभाव डाल था। ऐसे में बैंक नए ऋण देने में बहुत सावधानी बरत रहे थे।
इस बीच कोरोना संकट ने आर्थिक गतिविधियों को पूरी तरह से ठप कर दिया। सरकार ने भी बैंकों को कर्ज की किश्तें रोकने की सलाह दे दी।
बैंक जितना भी ऋण देते हैं उसका तकरीबन आधा कारपोरेट को दिया जाने वाला ऋण है। बदले हालात में यह सेक्टर बुरी तरह प्रभावित है। अनुमान है कि कॉर्पोरेट ग्रोथ भी नकारात्मक ही रहेगी, इस वजह से नौकरियां भी खत्म होंगी और रिटेल ऋण की मांग भी कम हो जाएगी।
कुल मिला कर इन सब का असर बैंकों की ऋण वृद्धि दर पर पड़ना तय है।
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क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारमण का कहना है कि, ‘यह संकट अप्रत्याशित है और उसके आर्थिक परिणाम भी उतने ही अप्रत्याशित होंगे जैसे कि कम पूंजीगत व्यय की मांग के साथ साथ विवेकाधीन खर्चों में कमी। इन कारणों से चालू वित्त वर्ष में विभिन्न क्षेत्रों में ऋण की मांग में उल्लेखनीय रूप से कमी आएगी।’