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डंके की चोट पर : बाहुबली को दूरबीन से तलाश करता बाहुबली

शबाहत हुसैन विजेता

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. सरकार में बने रहने के लिए भारतीय जनता पार्टी को जनता की अदालत में परीक्षा देनी है. लोकतंत्र में जनता की अदालत ही सबसे बड़ी अदालत होती है. जनता जिसे चाहती है उसे तख़्त-ओ-ताज सौंप देती है और जिसे चाहती है तख्त से उतारकर फेंक देती है.

विधानसभा चुनाव सर पर आ गया है तो सभी राजनीतिक दल सड़कों पर निकल आये हैं. अपने को सबसे बेहतर साबित करने की होड़ लग गई है. विपक्षी दलों को इस चुनाव में जनता को बताना है कि पिछले पांच साल में उनके साथ क्या-क्या नाइंसाफी हुई, कैसे वह महंगाई से जूझे, कैसे पैदल लौटते मजदूरों की अनदेखी की गई, कैसे पेट्रोल के दाम लगातार बढ़ते गए और सरकार आंसू बहाती जनता पर मुस्कुराती रही, कोरोना काल में आक्सीजन सिलेंडर के अभाव में कैसे लोगों की साँसें टूटती रहीं और सरकार कुछ नहीं कर पाई, कैसे कोरोना के मरीजों को अस्पतालों ने लूटा, और कैसे इलाज के नाम पर लोगों के घर बिक गए.

सरकार बतायेगी कि उसने विकास की कौन-कौन सी योजनायें चलाईं, कितने बेरोजगारों को नौकरियां बांटीं, कितने बेघरों को घर दे दिया, कितने नये अस्पताल खड़े कर दिए, आज़ादी के बाद 70 साल में जो योजनायें जनता तक नहीं पहुँचीं थीं वह कैसे पहुंचा दीं. भुखमरी रोकने के लिए कितने लोगों तक अनाज पहुंचा दिया.

 

यह विपक्ष और सरकार का हक़ है कि जनता की अदालत में वह अपना पक्ष रखे. जनता दोनों की बात सुनेगी और फैसला करेगी. लेकिन हद तो यह है कि जब चुनाव आ गया है तो देश का गृहमंत्री यूपी सरकार का पक्ष रखने के बजाय विपक्ष के नेता से सवाल पूछ रहा है कि कोरोना काल में तुम कहाँ थे, गृहमंत्री पूछ रहा है कि विपक्ष का नेता कितने दिन विदेश में रहा, गृहमंत्री पूछ रहा है कि विपक्ष के नेता ने कोरोना काल में कितने मरीजों की मदद की.

सबसे ज्यादा हास्यास्पद बात यह है कि गृहमंत्री अमित शाह इतने ज्यादा जोश में आ जाते हैं कि बोलते हैं कि यूपी में पहले हर जिले में दो-तीन बाहुबली नज़र आ जाते थे लेकिन अब दूरबीन लेकर भी देखता हूँ तो मुझे कहीं कोई बाहुबली नज़र नहीं आता. उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं. गृहमंत्री के हिसाब से यूपी में दो सौ से सवा दो सौ के बीच बाहुबली थे. इन बाहुबलियों का योगी सरकार ने बैंड बजा दिया.

यूपी के लोग सब जानते हैं. योगी सरकार ने बाहुबलियों पर कार्रवाई के नाम पर मुख्तार अंसारी और अतीक की सम्पत्तियां बर्बाद कराई हैं. यह दोनों बाहुबली क्योंकि बीजेपी में नहीं हैं इसलिए उन्हें बर्बाद किया गया. मुख्तार अंसारी की मुख्य लड़ाई बृजेश सिंह के साथ चलती रही है. दोनों के गिरोह आपस में टकराते रहे हैं. दोनों के टकराव में बड़ी संख्या में लोगों की मौतें हुई हैं मगर बृजेश सिंह का तो किसी ने नाम भी नहीं लिया. मुख्तार को भी इसलिए बर्बाद करने का फैसला लिया गया क्योंकि मुख्तार ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया था.

दो बाहुबलियों को बर्बाद करने के बाद गृहमंत्री को दूरबीन से भी कोई बाहुबली नहीं दिखता. उन्हें अपने ही विभाग का राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी भी नज़र नहीं आता. अक्टूबर 2010 में गुजरात हाईकोर्ट ने खुद उनके खिलाफ जो फैसला लिखा था वह भी उन्हें याद नहीं है. उन्हें सोहराबुद्दीन इनकाउन्टर केस भी याद नहीं होगा. गृहमंत्री को यह पता होना चाहिए कि कई बार दूरबीन की नहीं आईने की ज़रूरत पड़ती है.

बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बेबी रानी मौर्य ने इसी 23 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में कहा था कि महिलाएं शाम पांच बजे के बाद थाने न जाएं. आखिर सिर्फ चार दिन में यूपी में हालात को काबू में करने के लिए कौन सी मशीन चला दी गई कि गृहमंत्री ने लखनऊ में लड़कियों को सलाह दे डाली कि वह जेवर पहनकर स्कूटी पर सवार होकर रात 12 बजे निकल जाएं. कोई उनकी तरफ देखने की हिम्मत भी नहीं करेगा.

चुनाव जीतने की ऐसी लत लग गई है कि अब भोली-भाली लड़कियों को भी खतरे के मुंह में झोंकने की तैयारी है. जिस समाज में कुलदीप सेंगर जैसी मानसिकता के लोग टहल रहे हों उस समाज में लड़कियों को ऐसी सलाह देने बड़े ताज्जुब की बात है.

चुनाव लड़िये. आपको चुनाव आयोग ने इजाजत दी है. चुनाव लड़ने की इजाजत आपको देश का लोकतंत्र भी देता है. मगर चुनाव परीक्षा होता है. परीक्षा को पास करने के लिए पांच साल मेहनत करनी पड़ती है. आपने भी ज़रूर मेहनत की होगी. पिछले चुनाव से पहले भी आपकी सरकार ने पेट्रोल के दाम भी घटाए थे, इस बार भी घटाएंगे ही. एक महीने में साढ़े छह रुपये इसी मकसद से ही तो बढ़ाए गए हैं. रोजाना 35 पैसे इसी वजह से बढ़ाए जा रहे हैं ताकि चुनाव से पहले एक दो नहीं पन्द्रह से बीस रुपये घटाए जा सकें. चुनाव के बाद फिर से 35 पैसे रोज़ बढ़ाकर जनता को गन्ने की तरह से पेर दिया जाए.

चुनाव से पहले भी इतना गुस्सा, चुनाव के दौर में भी इतनी शान, चुनाव के दरवाज़े पर खड़े होकर भी ऐसी भाषा, आप नहीं बदलेंगे पता है क्योंकि आप सिर्फ बोलना जानते हैं सुनना नहीं. बोलिए, खूब बोलिए, खूब घमंड करिये, किसी को भी सवाल मत पूछने दीजिये. त्रिपुरा की तरफ भूलकर भी मत देखिएगा. आँखें बंद रखिये और चुनाव परिणाम आपके पक्ष में आये तो बधाई मुझसे भी लीजियेगा.

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