सुरेंद्र दुबे
स्वामी रामदेव आखिर क्या हैं। पहले वो योग गुरु थे तथा देश भर में लोगों को योग क्रियाओं के माध्यम स्वस्थ्य रहने का संदेश देते थे। बाद में वे धीरे-धीरे व्यापारी बन गए और आटा, दाल, चावल, नमक व दवाओं का व्यापार करने लग गए। इस बीच उनकी भाजपा से दोस्ती प्रगांढ होती गई और उनका व्यापारिक साम्राज्य 13 हजार करोड़ रुपए सालाना से भी अधिक हो गया।
अब वे आए दिन टीवी पर आकर जनता को राजनैतिक प्रवचन भी देने लगे हैं। योग गुरु से योग व्यापारी बने रामदेव इन दिनों सीएए, एनपीआर और एनआरसी के विरूद्ध चल रहे देश व्यापी आंदोलन को बदनाम कर तुड़वाने और सरकार की जय-जय कार करने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं।
उनसे कोई पूछे कि वे किस हैसियत से देश के लोगों को अपने चुनिंदा टीवी चैनलों के माध्यम से प्रवचन देने लगते हैं। न तो उन्हें सरकार ने घोषित रूप से मध्यस्थ बना रखा है, न ही जनता ने उन्हें जज बना रखा है। वे करोडों रुपए का पतंजलि उत्पादों का टीवी चैनलों को विज्ञापन देते हैं इसलिए टीवी वाले उनके इस षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मजबूर हैं।
24 जनवरी 2020 को अचानक व्यापारी रामदेव आजतक, एनडीटीवी, इंडिया टीवी, एबीपी, न्यूज नेशन जैसे चैनलों पर बैठकर दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए के विरूद्ध चल रहे आंदोलन को असैंवेधानिक बताने लगे। वो ये भूल गए कि आंदोलन चल ही इसी बात को लेकर रहा है कि सीएए कानून संविधान की मूल भावना के विपरीत बनाया गया है।
मुसलमानों को इस कानून की परिधि में नहीं रखा गया है। पर बाबा को भाजपा के समर्थन में बैंड बजाना है। दिल्ली में आठ फरवरी को विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अमित शाह सहित तमाम भाजपाई नेता चुनाव को हिंदू-मुस्लिम एजेंडे पर लाकर केजरीवाल से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनना चाहते हैं। बाबा को भी इसी काम पर लगा दिया गया है।
केजरीवाल ने दिल्ली में मुफ्त बिजली व पानी, सरकारी स्कूलों में बेहतरीन पढ़ाई और मौहल्ला क्लीनकों के जरिए उच्चस्तर की स्वास्थ्य सेवाएं देकर दिल्ली वासियों का दिल जीत लिया है। भाजपा उनके दिलों में भगवा रंग भर कर उन्हें उद्वेलित करने में लगी है।
तीन तलाक कानून पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के सभी छोटे-बड़े नेता मुस्लिम महिलाओं का जीवन सुधारने के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे थे। अब जब वे महिलाएं कड़ाके की ठंड में शाहीन बाग सहित देश के सैंकडों चौराहों पर सीएए की वापसी की मांग रही हैं तो भाजपा के लोग उनके विरूद्ध अर्मायादित टिप्पणियां कर रहे हैं।
एक आध टीवी चैंनलों को छोड़ तो सारा इलेक्टॉनिक मीडिया शाहीन बाग को बदनाम करने पर लगा है। सरकार का कोई भी प्रतिनिधि इन महिलाओं के पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है क्योंकि उसे मालुम है कि आंदोलन का मुद्दा सही है। पर सरकार जिद पर अड़ी है।
आप लोगों को याद होगा कि 4 जून 2011 को भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की ओर से आंदोलन कर रहे बाबा रामदेव की जब पुलिस ने जबरन गिरफ्तारी करने की कोशिश की थी तो बाबा आंदोलनकारियों को छोड़कर महिलाओं के कपड़े पहनकर भाग गए थे। कम से कम बाबा को इसी बात पर महिलाओं सम्मान करना चाहिए।
क्योंकि अगर महिलावेश में वे न भागते तो उनकी दुगर्ति हो सकती थी। उनके खास चेले बालकृष्ण तो तौलिया पहनकर ही भाग लिए थे। अब ऐसे भगौड़े गुरु-चेला आंदोलन के मर्म को नहीं समझ सकते। जब खुद आंदोलन कर रहे थे तो पुलिस देखकर भाग गए। अब जो महिलाएं आंदोलन कर रही हैं, उनका उपहास उडाकर आंदोलन विफल करने में लगे हुए हैं।
व्यापारी बाबा रामदेव बीच-बीच में महात्मा गांधी का भी नाम लेते रहते हैं। इनको शायद याद नहीं कि महात्मा गांधी ने एक नहीं अनेक बार अंग्रेजों के खिलाफ सिविल नाफरमानी आंदोलन चलाया। यानी कि महात्मा गांधी हमेशा सिखा गए हैं कि सरकार का कोई कानून यदि जनता की भावनाओं के अनरुप न हो तो उसके विरूद्ध आंदोलन चलाया जाना चाहिए।
पर बाबा महात्मा गांधी की आड़ में सत्ताधारी दल की चापलूसी करके हमें अंग्रेजी शासन काल की याद दिला रहे हैं। बेहतर होता बाबा महर्षि पतंजलि की तरह योग के क्षेत्र में अपना नाम अमर करने की ओर ध्यान देते। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से सरकार की हां में हां मिलाने वाले लोगों को इतिहास भुला देता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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