जुबिली न्यूज डेस्क
मध्य एशिया के दो देशों आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच नागोर्नो-काराबाख को लेकर जारी जंग और तेज होती नजर आ रही है। दोनों देशों ने अब एक-दूसरे के इलाके में हमले करने का आरोप लगाया है। इस बीच तुर्की ने आर्मीनिया को धमकी दी है कि दुनिया हमारी दहाड़ को सुनेगी।
तुर्की की इस धमकी के बाद आर्मीनिया ने दावा किया कि उसके एक सुखोई-25 विमान को तुर्की के F-16 विमान ने मार गिराया है। इस पूरे विवाद में तुर्की के कूदने के बाद अब रूस के साथ उसके छद्म युद्ध का खतरा बढ़ गया है।
खबरों की माने तो तुर्की, रूस के बाद अब ईरान भी इस युद्ध में कूद सकता हैं। आपको बता दें कि इस इलाक़े से गैस और कच्चे तेल की पाइपलाइनें गुज़रती है इस कारण इस इलाक़े के स्थायित्व को लेकर जानकार चिंता जता रहे हैं। इससे पहले यहां साल 2016 में भी भीषण लड़ाई हुई थी जिसमें 200 लोगों की मौत हुई थी।
उधर, तुर्की और अजरबैजान दोनों ने आर्मीनिया के सुखोई फाइटर जेट को मार गिराने का खंडन किया है। इसके साथ तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोगान ने धमकी दी है कि वह अजरबैजान को नागोर्नो-काराबाख पर कब्जा करने में मदद करेंगे। रूस और अमेरिका के शांति के तत्काल अपील के बाद भी आर्मीनिया और अजरबैजान की जंग तेज होती जा रही है। अजर बैजान के राष्ट्रपति ने रूसी टीवी से बातचीत में आर्मीनिया के साथ किसी भी बातचीत की संभावना से इनकार किया है।
वहीं आर्मीनिया के प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि जब लड़ाई चल रही है, तब कोई बातचीत नहीं हो सकती है। आर्मीनिया के सुखोई जेट को मार गिराए जाने के दावे पर तुर्की के संचार निदेशक फहार्टिन अल्टुन ने कहा कि आर्मेनिया को सस्ते प्रचार के लिए ऐसे प्रोपेगेंडा का सहारा लेने के बजाय अपने कब्जे वाले क्षेत्रों से हटना चाहिए। अजरबैजान के राष्ट्रपति के सहायक हिकमत हाजीयेव ने भी आर्मेनिया के इन आरोपों की निंदा की है।
इस बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने आर्मीनिया और अजरबैजान से अनुरोध किया कि वे विवादित क्षेत्र नागोरनो-काराबाख को लेकर जारी संघर्ष तत्काल रोक दें। संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली निकाय ने बलों के इस्तेमाल की कड़ी निंदा करते हुए महासचिव एंतोनियो गुतारेस के लड़ाई को फौरन रोकने और अर्थपूर्ण वार्ता के लिये आगे आने के अनुरोध का समर्थन किया। अधिकतर पहाड़ी इलाके से घिरा नागोरनो-काराबाख 4,400 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और आर्मीनिया की सीमा से करीब 50 किलोमीटर दूर है।
आर्मीनिया की सेना से समर्थन पाकर स्थानीय लोगों ने अजरबैजान के कुछ इलाकों पर भी कब्जा कर रखा है। इस ताजा संघर्ष की वजह से हाल में इस विवाद को सुलझाने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशों को झटका लगा है। सुरक्षा परिषद ने शांति वार्ता में मध्यस्थता की कोशिश कर रहे ‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ सिक्यॉरिटी एंड कोऑपरेशन इन यूरोप’ की ‘केंद्रीय भूमिका’ को अपना पूर्ण समर्थन देने की मंशा व्यक्त की है और दोनों पक्षों से अनुरोध किया कि ‘यथाशीघ्र वार्ता शुरू करने के लिये उनके साथ बिना किसी पूर्वशर्त के सहयोग करें।’
अजरबैजान ने वीडियो फुटेज जारी करके दावा किया कि उसने युद्धक्षेत्र में आर्मीनिया के दो टैंक उड़ा दिए। वहीं आर्मीनिया ने कहा है कि उसने अजरबैजान के 80 आर्मर्ड वीइकल, 49 ड्रोन और 4 हेलीकॉप्टर बर्बाद कर दिए हैं। दोनों ही देशों ने मार्शल लॉ घोषित किया है। आर्मीनिया ने अपने 18 साल के ऊपर के सभी नागरिकों को देश छोड़कर नहीं जाने के लिए कहा है। नागोर्नो-काराबाख को लेकर जारी जंग में अबतक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है और सैंकड़ों लोग घायल हैं।
इस बीच आर्मीनिया और अजरबैजान में बढ़ती जंग से रूस और तुर्की के इसमें कूदने का खतरा पैदा हो गया है। रूस जहां आर्मीनिया का समर्थन कर रहा है, वहीं अजरबैजान के साथ नाटो देश तुर्की और इजरायल है।
खबरों की माने तो आर्मेनिया और रूस में रक्षा संधि है और अगर अजरबैजान के ये हमले आर्मेनिया की सरजमीं पर होते हैं तो रूस को मोर्चा संभालने के लिए आना पड़ सकता है। आर्मीनिया में रूस का सैन्य अड्डा भी है। इस युद्ध में अगर परमाणु हथियारों से लैस सुपरपावर रूस आता है तो महायुद्ध का खतरा पैदा हो सकता है।
दोनों देश 4400 वर्ग किलोमीटर में फैले नागोर्नो-काराबाख नाम के हिस्से पर कब्जा करना चाहते हैं। नागोर्नो-काराबाख इलाका अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा है लेकिन उस पर आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्जा है। 1991 में इस इलाके के लोगों ने खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया का हिस्सा घोषित कर दिया। उनके इस हरकत को अजरबैजान ने सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद दोनों देशों के बीच कुछ समय के अंतराल पर अक्सर संघर्ष होते रहते हैं।
क्या है इस संघर्ष का इतिहास
आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है।
1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।
दोनों देशों मे 1991 से भड़का तनाव
1991 में जब सोवियत यूनियन का विघटन हुआ तब अजरबैजान और आर्मेनिया भी स्वतंत्र हो गए। लेकिन, नागोर्नो-काराबाख के लोगों ने इसी साल खुद को अजरबैजान से स्वतंत्र घोषित करते हुए आर्मेनिया में शामिल हो गए। इसी के बाद दोनों देशों के बीच जंग के हालात बन गए। लोगों का मानना है कि जोसेफ स्टालिन ने आर्मेनिया को खुश करने के लिए नागोर्नो-काराबाख को सौंपा था।