न्यूज डेस्क
समाजवादी पार्टी का हाल बेहाल है। अखिलेश यादव के पार्टी के अध्यक्ष बनने के बाद से सपा का ग्राफ निरंतर गिरता ही जा रहा है। वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव पार्टी पर नियंत्रण रखने में पूरी तरह से नाकाम साबित हुए हैं। 225 विधायकों वाली पार्टी अब सिर्फ 47 सीटों पर सिमट कर रह गई है। ऐसा लगता है कि अखिलेश यादव प्रदेश के मतदाताओं का मिजाज पहचानने में बुरी तरह असफल रहे हैं। आजम खान की छवि इतनी खराब है कि कोई भी पार्टी संकट की इस घ़ड़ी में उनके आंसू पोछने को तैयार नहीं हैं।
उनकी मति मारी गई थी इसलिए 2019 के चुनाव में उन्होंने उस बसपा से चुनाव समझौता कर लिया, जिसकी विश्वसनीयता मायावती के कारण हमेशा शून्य पर रही है। मुलायम सिंह यादव लगातार इस समझौते का विरोध करते रहे पर अखिलेश यादव नहीं माने। परिणाम जो होना था वही हुआ।
सपा के बजाए बसपा को जबरदस्त फायदा हुआ। उनकी पार्टी शून्य से 10 सांसदों पर पहुंच गई। समाजवादी पार्टी भले पांच सीटों पर जीत गई, परंतु उनके परिवार का जलवा बिखर गया। फिरोजाबाद से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव दोबारा नहीं चुने जा सके। स्वयं अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव चुनाव हार गईं। जिन्होंने दलित वोट पाने के लिए सार्वजनिक मंच पर मायावती के पैर तक छुए।
भाजपा का उत्तर प्रदेश में परचम लहराता रहे इसके लिए समाजवादी पार्टी को निरंतर तोड़ते रहना उनकी पार्टी का प्रमुख लक्ष्य है। भाजपा ने इसके लिए अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव पर प्रहार करने के बजाए मोहम्मद आजम खां को चुना। जिनके विरूद्ध 74 मुकदमें दर्ज हो चुके हैं और कई मुकदमों में कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है।
भाजपा की पुलिस उन्हें स्वयं गिरफ्तार करने के बजाए कोर्ट के आदेश के जरिए गिरफ्तार करने के जुगाड़ में लगी हुई है। भाजपा लगातार आजम खान पर मुकदमें पर मुकदमें दायर करने में जुटी हुई है। हो सकता है कि ये एक विश्व रिकॉर्ड हो जाए क्योंकि आजतक किसी बड़े से बड़े हिस्ट्रीशीटर पर भी इतने मुकदमें दर्ज नहीं हुए हैं।
अभी मुकदमों का सिलसिला थमा नहीं है, लगता है भाजपा 100 मुकदमें दर्ज कराने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। समाजवादी पार्टी इसके विरोध में रामपुर की सड़कों पर कई बार उतर चुकी है। आज मुलायम सिंह यादव भी आजम खान के बचाव में आयोजित प्रेस वार्ता में सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि आजम खान ने जौहर यूनिवर्सिटी के लिए भीख मांग-मांग कर चंदा इकट्ठा किया है।
आजम खान की छवि शुरू से एक नकचिढे नेता की रही है और जनता में इनकी छवि बहुत खराब है इसलिए इतने मुकदमों के बाद भी सपा को छोड़कर कोई भी पार्टी आजम खान के आंसू पोछने को तैयार नहीं है।