पॉलिटिकल डेस्क
भारतीय राजनीति का यह सबसे बुरा दौर है। शायद अब इससे बुरा दौर न आए। वोट और सत्ता की लालसा में नेताओं ने अपनी नैतिकता को गिरवी रख दिया है। राजनीतिक पार्टियों की नीति, सिद्धांत अब सिर्फ कागजों तक सीमित है।
शायद इसी का नतीजा है कि नेता अपने भाषण में रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा की बात न कर अपने प्रतिद्वंदी के अंडरवियर का रंग जनता को बता रहे हैं। हालत ये है कि नेता सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे के चरित्र हनन करने में लगे हुए हैं।
राजनीति के गिरते स्तर के लिए नेताओं के साथ-साथ हम भी जिम्मेदार है। हम इन नेताओं का बहिष्कार नहीं करते। चर्चा में बने रहने के लिए भी नेता विवादित बयान देने लगे हैं।
चुनावों में अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल एक दशक में ज्यादा बढ़ा है। सबसे बड़ी विडंबना तो ये हैं कि वरिष्ठ नेता भी बोलने से बाज नहीं आ रहे हैं। चुनाव दर चुनाव राजनीति का स्तर गिरता जा रहा है।
रविवार को समाजवादी पार्टी के नेता व रामपुर लोकसभा सीट के प्रत्याशी आजम खां ने अपनी प्रतिद्वंदी जया प्रदा के बारे में अमर्यादित बयान देकर नये बहस को जन्म दे दिया है। आजम की टिप्पणी बेहद ही शर्मनाक है।
एक महिला पर जिस तरह उन्होंने टिप्पणी की है वह क्षम्य नहीं है। आजम के बयान पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी ऐतराज जताया है और नोटिस जारी किया है।
इस बयान पर बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने भी ट्वीट कर आपत्ति जतायी, लेकिन अभी तक समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव या सपा सरंक्षक मुलायम सिंह की तरफ से कोई बयान नहीं आया है।
पहले भी सपा के नेता ने की थी अभद्र टिप्पणी
इसके पहले जया प्रदा पर समाजवादी पार्टी के नेता फिरोज खान ने भी अभद्र टिप्पणी की थी। जया प्रदा का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि मैं एक दिन बस से जा रहा था, उस दौरान उनका काफिला भी वहां से गुजर रहा था तो जाम लग गया। मैंने बस से उतरकर उन्हें देखने की कोशिश की। मुझे लगा कि कहीं जाम खुलवाने के लिए ठुमका ना लगा दें।
वह इतने पर ही नहीं रूके। उन्होंने कहा कि रामपुर के लोग मजे लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि उन्हें एक बार फिर मौका मिला है। शामें तो यहां रंगीन होंगी। मुझे डर है कि मेरे क्षेत्र के लोग यहां शामें रंगीन न करने आ जाएं। मुझे अपने इलाके का ध्यान रखना होगा। फिरोज के इस बयान पर भी सपा की तरफ से कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायी गई थी।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि आजम खां ने जो विवादित बयान दिया है उसकी तथ्यता की जांच होनी चाहिए। नेताओं के ऐसे विवादित बयान पर चुनाव आयोग को सख्त होना चाहिए और कठोर कदम उठाना चाहिए।
दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा सही समय में कार्रवाई नहीं होने की वजह से नेता बेलगाम हैं। सहीं समय पर कार्रवाई होगी तो नेता डरेंगे।
निशाने पर रहती है महिला नेता
राजनीतिक दलों को महिलाओं की राजनीति में सक्रियता रास नहीं आती। इतिहास के पन्नों को पलट कर देंखे तो मायावती से लेकर सोनिया गांधी सभी पुरुष नेताओं के निशाने पर रही हैं। नेताओं ने इनके बारे में खूब अभद्र टिप्पणी की हैं। सोनिया गांधी और मायावती तो आज भी निशाने पर हैं।
सोनिया के लिए कांग्रेस की विधवा का संबोधन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो आए दिन सोनिया गांधी पर टिप्पणी करते रहते हैं। कुछ माह पूर्व उन्होंने सोनिया को कांग्रेस की विधवा कहकर संबोधित किया था। इसके अलावा बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता सोनिया के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर चुके हैं।
राजनीति पर लंबे समय तक काम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुशील वर्मा कहते हैं- यह राजनीति का संक्रमण काल है। आने वाले दस सालों में राजनीति का स्तर और गिरेगा।
नेता सिर्फ एक-दूसरे का चरित्र हनन करेंगे। वह मुद्दों की बात नहीं करेंगे। दरअसल इसमें उनका दोष नहीं बल्कि जनता का है। जनता जब तक ऐसे नेताओं का बहिष्कार नहीं करेगी हालात नहीं सुधरेंगे।
मायावती के लिए किन्नर व वेश्या जैसे शब्दों का किया गया इस्तेमाल
जनवरी माह में सपा के साथ बसपा सुप्रीमो मायावती ने जब हाथ मिलाया तो बीजेपी विधायक साधना सिंह उन पर हमला करते हुए माया को किन्नर कहा था। एक कार्यक्रम में बोलते हुए साधना सिंह ने मायावती को किन्नर से भी बदतर बताते हुए कहा कि वह न महिला हैं और न पुरुष।
गेस्ट हाउस कांड का हवाला देते हुए कहा कि चीरहरण होने के बाद भी वह गठबंधन कर रहीं है, जबकि बीजेपी के नेताओं ने ही उनका मान-सम्मान बचाया था। हालांकि साधना ने बाद में अपने बयान पर माफी मांगी थी।
बीजेपी नेता दयाशंकर को कौन भूल सकता है। साल 2016 में विधानसभा चुनावों के पहले बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह ने मायावती की तुलना वैश्या से की थी, जिसके बाद उन्हें जेल जाना पड़ा और पार्टी से निकाल दिया गया था। हालांकि उनकी पत्नि स्वाति सिंह अब बीजेपी से विधायक और योगी सरकार में मंत्री भी हैं।
राजनीति के गिरते स्तर पर वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कहते हैं वर्तमान राजनीतिक परिवेश से मुद्दे गायब है। नेता चर्चा में बने रहने के लिए ऊल जुलूल बोल रहे हैं। कुल मिलाकर प्रचार का एक माध्यम बना लिया है।
रहा सवाल आजम खां का तो वह तो हमेशा से शर्मनाक बयान देते रहे हैं। इस बार उन्होंने जो बोला वह बेहद शर्मनाक है। फिलहाल निर्वाचन आयोग को इस दिशा में कठोर कदम उठाना चाहिए।