जुबिली न्यूज ब्यूरो
उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाई कॉरपोरेशन का गठन प्रदेश के सरकारी चिकित्सालयों में गुणवत्ता परक सस्ती औषधियों के क्रय , जिलों में व्याप्त भ्रष्टाचार को दूर करने और अस्पतालो में दवाओं की कमी न होने देने के लिये ही किया गया था, लेकिन कारपोरेशन के गठन और इसकी कार्यप्रणाली पर शुरू से ही सवालिया निशान लगने लगे थे।
प्रबंधक मानव संसाधन उत्तर प्रदेश मेडिकल सप्लाईज कॉरपोरेशन लिमिटेड की सूचना के अनुसार कारपोरेशन में स्थाई रूप से कोई भी पद स्वीकृत नहीं है और संविदा पर कुल 19 कार्मिक कार्यरत हैं । कारपोरेशन में मेडिकल सप्लाई का बजट लगभग 7 से 800 करोड़ रुपए वार्षिक का है।
इस कारपोरेशन में सरकार का एक भी स्थाई प्रतिनिधि शामिल न होना बड़े ही आश्चर्य का विषय है, जबकि खरीद इतने बड़े बजट की है। नियमों के अनुसार निदेशक स्तर का विशेषज्ञ सरकारी चिकित्सा अधिकारी और भुगतान पर नियंत्रण के लिये नियमित वित्त नियंत्रक के पद कारपोरेशन में अवश्य होना चाहिये।
प्राप्त जानकारी के अनुसार रिटायर्ड फाइनेंस कंट्रोलर कुँवर दृग वृजेन्द्र बहादुर सिंह और रिटायर्ड ड्रग कंट्रोलर अशोक महरोत्रा को Consultant Quality के पद हेतु संविदा पर तैनाती दी गई है और उनका वेतन ₹ 200000 ( दो लाख रूपये) प्रतिमाह का भुगतान किया जा रहा है जबकि सरकारी अधिकारियों को पुनर्योजन की अवधि में वित्त (सामान्य )अनुभाग -3 के शासनादेश दिनांक 15 .12.1983 के अनुसार वह नियत वेतन अनुमन्य होगा जो पुनर्नियोजित कार्मिक द्वारा सेवानिवृत्ति के समय प्राप्त अनियमित वेतन में से शुद्ध पेंशन (राशिकरण के पूर्व) को घटाकर प्राप्त हो। समस्त नैव्रत्तिक लाभों से तात्पर्य शुद्ध पेंसन (बिना राशिकरण के) तथा डेथकम रिटायरमेंट ग्रेच्युटी के पेंसंनरी समतुल्य धनराशि के योग से है। अथवा पुनर्नियोजन पद पर वेतनमान का अधिकतम दोनों में से जो कम हो वित्त नियंत्रक और ड्रग कंट्रोलर को रिटायरमेंट के बाद प्राप्त होता, लेकिन जानकारी के अनुसार शासनादेश के विपरीत ₹200000 (दो लाख रूपये) का नियत वेतन दिया जा रहा है जो कारपोरेशन में सरकारी पैसे का नियम विरुद्ध खर्च होने का बड़ा सबूत है, इससे सरकारी धन का लाखों रुपये की हानि हो रही है।
सूत्रों के अनुसार सप्लाई कारपोरेशन का गठन होते ही मंत्रियों और अधिकारियों से सांठ-गांठ करके अधिकांश संविदा पदों पर उन्हीं कर्मियों का चयन किया गया जो स्वास्थ्य महानिदेशालय में स्थित सीएमएसडी स्टोर में कंपनियों की पैरवी किया करते थे। इनकी सक्रियता के कारण और अब पूरी तरह से वही कमीशन आधारित व्यवस्था कारपोरेशन में व्याप्त हो गई है और अंजाम देने वाले भी वही लोग हैं जो अब संविदा कर्मियों के रूप में काम कर रहे हैं।
चर्चा यह भी है कि स्वास्थ्य विभाग में अस्पतालों में उच्चीकरण के नाम पर करोड़ों रुपए के उपकरणों का सप्लाई करने वाला एक ठेकेदार कारपोरेशन के गठन का मास्टरमाइंड है और उसी के रिश्तेदार या फिर उसके नजदीकी ही कारपोरेशन में नौकरी पर हैं और वह वहां अब उसी ठेकेदार की मर्जी से दवाओं की आपूर्ति की जाती है। प्रदेश में अस्पतालों में कुत्ता काटने के इंजेक्शन की कमी और मांग के अनुसार आपूर्ति न करने के लिए भी वही ठेकेदार जिम्मेदार बताया जाता है। इस ठेकेदार के खिलाफ पहले भी कई मामले आ चुके हैं।
चिकित्सालयों की डिमांड के आधार पर ही दवाओं की सप्लाई की जानी थी लेकिन वास्तव में जिन दवाओं की आवश्यकता है और मरीजों के उपचार में उनकी इमरजेंसी में भूमिका है वह दवायें कार्पोरेशन नहीं कर रहा है। यहां तक कि कारपोरेशन ने पिछले दिनों सीएमएसडी के पूर्व दलालों के दबाव में उन सीएमएसडी रेट कांट्रैक्ट की दरों पर भी आर्डर कर दिया था और सप्लाई किया जिनकी समय अवधि समाप्त हो चुकी है और वह नान आरसी की श्रेणी में आती हैं।
वहीं कारपोरेशन डायबिटीज, मलेरिया ,ब्लड प्रेशर, हृदय रोग,मलेरिया जैसी कई गंभीर बीमारियों की दवाएं आज भी सप्लाई करने में असमर्थ है, विभागीय सूत्रों का कहना है कि केवल उन्हीं की दवाओं की सप्लाई की जा रही है जिनमें कमीशन ज्यादा है और उनकी कोई विशेष आवश्यकता नहीं है।
भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के लिए कटिबद्ध सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ और नवनियुक्त स्वास्थ मंत्री जय प्रताप सिंह की नजर इस मामले पर कब पड़ती है यह देखने की बात होगी ।
(कार्पोरेशन में चल रहे खेल के और भी खुलासे आने वाले दिनों में )
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