- अयोध्या आने का कारण रामलला से मुख्यमंत्री का अगाध प्रेम- मनोज दीक्षित, पूर्व कुलपति अवध विश्वविद्यालय
ओमप्रकाश सिंह
अयोध्या। देश की राजनीति के केंद्र बिंदु अयोध्या में नगरनिगम चुनाव ने भाजपाई रणनीतिकारों की पेशानी पर बल ला दिया है। कहते हैं कि सियासत की अपनी अलग इक जबां है। लिखा हो जो इकरार, इनकार पढ़ना।
अयोध्या की नस नस से वाकिफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हो रहे चुनावी संग्राम में शायद इसे भांप लिया है। गोरक्षपीठाधीश्वर कल मणिराम छावनी में कार्यकर्ताओं, संतसमाज के साथ प्रबुद्ध वर्ग को संबोधित करेंगे।
गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ का रामनगरी से लगाव जगजाहिर है। राममंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की अग्रणी भूमिका रही है।
मुख्यमंत्री के रुप में योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या आने का रिकार्ड बना दिया है। अयोध्या को वैश्विक पटल पर स्थापित करने के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोल दिया है। मंदिर के मद्देनजर विकास की हर छोटी बड़ी योजना पर मुख्यमंत्री की व्यक्तिगत नजर रहती है। इसके बावजूद चुनावी संदर्भ में मुख्यमंत्री योगी का दो बार अयोध्या आना चौंकाता है।
अयोध्या को नगरनिगम बनाने का श्रेय भी योगी आदित्यनाथ को है। अयोध्या नगरनिगम का पहला चुनाव योगी आदित्यनाथ के पहली बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद हुआ था। यह भी संजोग है कि नगरनिगम का दूसरा चुनाव भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल में हो रहा है।
सवाल उठता है कि सियासत की वह कौन सी चाल है जिसकी काट खोजने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक छोटे से चुनाव में एक सप्ताह के अंदर दो बार चुनावी अलख जगाने आना पड़ रहा है। प्रथम चुनाव में मेयर का चुनाव भाजपा जीती जरूर थी लेकिन जीत का तरीका आज भी राजनीतिक गलियारों के साथ ही आम आदमी की जुबान पर है। साठ सदस्यीय बोर्ड में भाजपा के सिर्फ तीस सदस्य ही जीत सके थे।
अयोध्या नगरनिगम में शामिल इकतालीस गांवों के जातीय समीकरण व मंदिर के मद्देनजर हो रहे विकास से उपजी पीड़ा ने भाजपा की राह में कांटे बिछा दिए हैं।
पारदर्शी कर निर्धारण व एकमुश्त समाधान योजना लागू किए जाने, कूड़ा निस्तारण व सड़क पर कूड़ा फेंकने पर जुर्माना लगाने का प्रावधान, नालियों व सड़कों की नियमित सफाई, अनियंत्रित रूप में बढ़ रहे ई-रिक्शों के बारे में नियामक बनाने व इनके स्टैंड की व्यवस्था कराने, आवारा पशुओं की रोकथाम करने आदि मसलों पर जनता नाखुश है।
यूपी में सत्रह नगरनिगम हैं जिसमें शाहजहांपुर इस बार शामिल हुआ है। इन सबमें अयोध्या नगरनिगम भारतीय जनता पार्टी के साथ मुख्यमंत्री के लिए भी व्यक्तिगत रुप से सबसे महत्वपूर्ण है। पिछले वर्ष जब पहली बार अयोध्या नगरनिगम बना तो फैजाबाद व अयोध्या दो नगरपालिकाओं की सीमाएं इसका कार्यक्षेत्र थीं। इस बार परिसीमन के बाद इकतालीस गांव भी इसमें शामिल किए गए हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ नगरनिगम के इस चुनाव में अयोध्या का महत्व बखूबी जानते हैं। अयोध्या की नस नस से वाकिफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हो रहे चुनावी संग्राम में शायद इसे भांप लिया है।
यही कारण है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या नगरनिगम चुनाव को अपने राडार पर ले लिया है। तीन दिन पहले चुनावी जनसभा कर चुके मुख्यमंत्री साधु संतो का आशीर्वाद लेने के साथ इनकार को इकरार में बदलने के लिए कल आ रहे हैं।
अवध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अयोध्या प्रेम जग जाहिर है। मुख्यमंत्री रहते अपने गृह जनपद के बाद सबसे अधिक यात्राएं इसी नगर के हिस्से में आई हैं। इसलिए एकाधिक यात्रा करना कोई विशेष नहीं है।
अयोध्या के संतों से वे कभी भी रैलियों में नहीं मिले, उनके लिए विशेष कार्यक्रम करना इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए। और ऐसा अयोध्या के अतिरिक्त कहीं हो नहीं सकता। अयोध्या भाजपा महानगर अध्यक्ष अभिषेक मिश्र इसे विकास के संदर्भ में देखते हैं। मीडिया प्रभारी दिवाकर सिंह डंके की चोट पर कहते हैं कि भाजपा को हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।