न्यूज डेस्क
70 साल से लंबित राजनीतिक रूप से संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आ चुका है। कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना है। अब जबकि कोर्ट का फैसला रामलला के पक्ष में आया है तो ओ आपको बता दें की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की खुदाई ने भी इस फैसले में अहम रोल अदा किया है। एएसआई की रिपोर्ट ने फैसले की जमीन बनाई थी।
मालूम हो कि अदालत के आदेश पर साल 2003 में इस विवादित स्थल की खुदाई कराई गई थी। इस खुदाई में मिले भग्नावशेषों से मंदिर के दावे को बल मिला था। हाईकोर्ट ने भी उत्खनन की रिपोर्ट को आत्मसात किया।
मार्च, 2003 में हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को खोदाई कराने का आदेश दिया था। कोर्ट मकसद यह पता लगाना था कि क्या मस्जिद से पहले प्राचीन मंदिर था? मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि जफरयाब जीलानी ने उस समय कहा, ‘जो प्रक्रिया पुरातत्व सर्वेक्षण ने अपनाई है, उससे हम संतुष्ट हैं।’
हाईकोर्ट के आदेश पर 12 मार्च को रिसीवर एवं मंडलायुक्त रामशरण श्रीवास्तव के दिशा-निर्देशन में एएसआइ ने हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के साथ वकीलों की मौजूदगी में खोदाई शुरू की। खोदाई अस्थायी मंदिर के आसपास के 10 फीट इलाके को छोड़कर कराई गई, जो सात अगस्त, 2003 तक चली।
इस दौरान कुल 35 ट्रेंचों (गड्ढों) में खोदाई की गई। एएसआइ की टीम में भी दोनों समुदायों के कुल 14 पुरातत्व विशेषज्ञ शामिल थे। खोदाई की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी होती रही। फैजाबाद (अब अयोध्या) में तैनात दो जज प्रेक्षक के तौर पर उपस्थित रहे।
सबसे पहले उत्खनन की शुरुआत गर्भगृह के पूर्व आने-जाने वाले दर्शन मार्ग के बीच रामचबूतरे के आसपास की खाली भूमि से हुई। शुरू के चार ट्रेंचों से कुछ खास हाथ नहीं लगा। बाद में पूर्व की तरफ इसी भूमि पर लगे तीन ट्रेंचों में विवादित ढांचे की फर्श दिखी। गड्ढा जे-6 में 72 सेंटीमीटर की गहराई पर सुर्खी एवं चूने से निर्मित फर्श मिला। इसी में रामचबूतरे का फर्श भी मिला, जिसका निर्माण अकबर के काल में हुआ था। इसका उल्लेख आईना-ए-अकबरी में भी मिलता है। इसके बाद एएसआई दल को सफलता की किरण दिखने लगी। इसी के साथ उत्खनन का क्रम सघन और विश्वसनीय होता चला गया।
मानस भवन में खोदाई में मिले अवशेष
एएसआई को खुदाई में उत्तर भारत में पाए जाने वाले मंदिरों से जुड़े विशिष्ट आकार के अवशेष मिले थे। इनमें सजावटी ईंटें, दैवीय युगल, आमलक, द्वार चौखट, ईंटों का गोलाकार मंदिर, जल निकास का परनाला और एक विशाल इमारत से जुड़े 50 खंभे शामिल हैं।
दैवीय युगल की तुलना शिव-पार्वती और गोलाकर मंदिर की तुलना पुराने शिवमंदिर से की गई है। यह सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया है। इसके अलावा मगरमच्छ, घोड़ा, यक्षिणी, कलश, हाथी, सर्प आदि से जुड़े टुकड़े भी मिले।
प्राप्त अवशेष मानस भवन के विशेष कक्ष में रखे गए हैं। खोदाई में नीचे 15 गुणा 15 मीटर का एक चबूतरा मिला। इसमें एक गोलाकार गड्ढा है, जिससे लगता है कि वहां कोई महत्वपूर्ण वस्तु रखी थी। इसके केंद्र के ठीक ऊपर विवादित मस्जिद के बीच का गुंबद था। उत्खनन में मिले आमलक की व्याख्या करते हुए प्रसिद्ध पुरातत्वविद् केके मुहम्मद की मान्यता है कि उत्तर भारत के मंदिरों में शिखर के साथ आमलक लगाए जाने की परंपरा थी और इससे सिद्ध होता है कि उस स्थल पर मंदिर था।
कोर्ट ने स्वीकार किया था रिपोर्ट
अदालत ने एएसआई ने दो खंडों में विस्तृत रिपोर्ट, फोटोग्राफ, नक्शे और स्केच पेश किए। इसके बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 20 बिंदुओं पर अपनी आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि रिपोर्ट को सुबूत के तौर पर विचार न करके रद कर दिया जाए। निर्मोही अखाड़ा ने अपनी आपत्ति में कहा कि सही स्थिति का पता करने के लिए पूर्व की ओर और उत्खनन हो। इन आपत्तियों पर लंबी बहस हुई।
इसके बाद फरवरी, 2005 में जस्टिस एसआर आलम, जस्टिस खेमकरन और जस्टिस भंवर सिंह ने सर्वसम्मति से 21 पन्नों का आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि संभवत: किसी अदालत ने पहली बार सिविल प्रोसिजर कोड के तहत इतने बड़े इलाके की खोदाई के जरिये जांच-पड़ताल का आदेश दिया। एएसआई की विस्तृत रिपोर्ट और फोटोग्राफ मुकदमे के सभी पक्षों के पास उपलब्ध हैं।
हालांकि इससे पहले कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से जीपीआर सर्वेक्षण कराया था। यह कार्य टोजो विकास इंटरनेशनल नाम की कंपनी ने किया। फरवरी, 2003 में पेश रिपोर्ट में कहा गया कि जमीन के अंदर कुछ इमारतों के 184 भग्नावशेष हैं। इस रिपोर्ट पर मुकदमे के पक्षकारों की राय सुनने के बाद अदालत ने मार्च, 2003 में सिविल प्रोसीजर कोड के तहत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को आदेश दिया।
13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के मिले थे अवशेष
रिपोर्ट में कहा गया है कि खोदाई में 13वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक के अवशेष मिले हैं। इसमें इतिहास के कुषाण, शुंग काल से लेकर गुप्त और प्रारंभिक मध्य युग तक के अवशेष हैं। गोलाकार मंदिर सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच का माना गया। प्रारंभिक मध्य युग 11-12वीं शताब्दी की 50 मीटर उत्तर-दक्षिण इमारत का ढांचा मिला। इसके ऊपर एक और विशाल इमारत का ढांचा है, जिसकी फर्श तीन बार में बनी। यह रिहायशी इमारत न होकर सार्वजनिक उपयोग की इमारत थी। रिपोर्ट के अनुसार, इसी के भग्नावशेष पर वह विवादित इमारत (मस्जिद) 16वीं शताब्दी में बनी।
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