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डंके की चोट पर : इकाना से सीमान्त गांधी तक जारी है अटल सियासत

शबाहत हुसैन विजेता

वैक्सीन में सुअर की चर्बी है. वैक्सीन में गाय का खून है. वैक्सीन भाजपा की है. वैक्सीन बिहार के लोगों को फ्री में मिलेगी. इस तरह के राजनीतिक बयानों के पीछे का सच जो भी हो लेकिन इस तरह की बयानबाजी के बीच राजनीति अपना रास्ता किस तरह से निकाल लेती है उसे समझते-समझते वक्त बहुत पीछे छूट जाता है.

वैक्सीन को लेकर चल रही हाय-तौबा के बीच भी कोई काम रुक थोड़े ही गया था. वैक्सीन के नाम पर जब विवाद नगाड़े की तर्ज़ पर शोर मचा रहा था ठीक उसी वक्त फरीदाबाद के सीमांत गांधी बादशाह खान अस्पताल का नाम बदलकर अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर किये जाने के निर्देश जारी हो गए. हरियाणा के डीजी हेल्थ ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के आदेश का पालन करते हुए इसके निर्देश जारी कर दिए हैं.

लखनऊ का इकाना स्टेडियम को पहले ही अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर किया जा चुका है. इकाना स्टेडियम का नाम बदलने वालों को हकीकत में यही जानकारी नहीं थी कि इकाना का मतलब क्या होता है. ठीक इसी तरह से फरीदाबाद के अस्पताल के नाम को अटल के नाम पर करने वालों को सीमान्त गांधी के बारे में जानकारी नहीं है.

अटल बिहारी वाजपेयी भारत के बड़े नेता थे. सभी राजनीतिक दलों में उनका सम्मान था. विदेश नीति में वह इतना दक्ष थे कि नेता विपक्ष होते हुए भी वह भारत का नेतृत्व करने विदेश गए थे. दलीय राजनीति में मर्यादाओं को तार-तार कर देने वाले नेताओं को एक बार अटल जी का वह भाषण ज़रूर सुनना चाहिए जो उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरु के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए दिया था.

अटल भारत रत्न थे. भारत रत्न सबको नहीं मिल जाता है. जिसे मिलता है वह मील का पत्थर ही होता है. भारत रत्न को लेकर किसी भी तरह का सवाल नहीं उठाया जा सकता. अटल जी भारत रत्न हैं तो सीमान्त गांधी भी तो भारत रत्न हैं. क्या यह राजनीति दो भारत रत्नों के बीच तुलना कराने पर तुल गई है.

सीमान्त गांधी बादशाह खान यानि खान अब्दुल गफ्फार खान वो अकेले शख्स थे जिन्होंने मरते दम तक देश के बंटवारे को स्वीकार नहीं किया. सम्पत्ति के नाम पर उनके पास कपड़े की एक पोटली थी जिसे वह साथ लेकर चलते थे. बंटवारे के बाद जब उनका दिल चाहता था पाकिस्तान चले जाते थे और जब दिल चाहता था हिन्दुस्तान चले आते थे. उनके लिए पासपोर्ट और वीज़े की ज़रूरत नहीं होती थी.

जब देश विभाजन हुआ था तब इधर से उधर जा रहे लोगों का खूब क़त्ल-ए-आम हुआ था. खूब संपत्तियां तबाह हुई थीं. मज़हब के नाम पर ज़मीनों के उस बंटवारे को स्वीकार न करने वाले का नाम खान अब्दुल गफ्फार खान यानि सीमान्त गांधी था.

पेशावर में अपना सब कुछ लुटाकर हज़ारों हिन्दू फरीदाबाद में आकर बसे थे. उन हिन्दुओं ने अपनी मेहनत के पैसे चंदा कर सीमान्त गांधी के नाम पर अस्पताल बनाया था. यह अस्पताल पेशावर से अपनी जान बचाकर हिन्दुस्तान आये हिन्दुओं की भावनाओं की देन है. कोई भी सरकार आखिर इस अस्पताल का नाम कैसे बदल सकती है.

अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर तमाम इमारतों के नाम किये जा चुके हैं. उनके नाम पर और भी इमारतें बन जाएं, किसी को एतराज़ नहीं लेकिन बेहतर तो यह होगा कि नई इमारत बनाकर उसका नाम अटल जी के नाम पर रखा जाए. राजनीति अगर नाम बदलने की परम्परा को जारी रखने पर ही अड़ी रहेगी तो सरकारें आनी-जानी हैं. नयी सरकार फिर नाम बदलेगी.

नाम बदलने की सियासत करने वाले नाम बदलने से पहले थोड़ा होमवर्क भी करना शुरू कर दें तो शायद इस तरह के हालात नहीं बनें. सियासत में भी छोटा और बड़ा होता है यह बात सबकी समझ में आनी चाहिए. एक पूर्व मुख्यमंत्री को उप मुख्यमंत्री माफी मांगने की सलाह बड़े आराम से दे देता है. एक विधायक और सांसद प्रधानमंत्री को लेकर जब चाहे अनर्गल बयान जारी कर देता है. ऐसे लोगों को यह जानना चाहिए कि सीमान्त गांधी का सम्मान प्रधानमंत्री से भी ज्यादा था.

साल 1988 में खान अब्दुल गफ्फार खान का 98 साल की उम्र में निधन हुआ तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. राजीव उनका बहुत सम्मान करते थे. सरहदी गांधी भी राजीव से बड़ा स्नेह करते थे. एक बार खान अब्दुल गफ्फार खान कहीं जा रहे थे. एयरपोर्ट पर उनकी पोटली उनके साथ थी. इंदिरा गांधी ने वह पोटली उठा ली ताकि सरहदी गांधी को उसे न उठाना पड़े, लेकिन खान अब्दुल गफ्फार खान ने इंदिरा गांधी से यह कहते हुए अपनी पोटली छीन ली कि तुम अब मेरे कपड़े भी छीन लेना चाहती हो. राजीव गांधी ने आगे बढ़कर उनके हाथ से पोटली ले ली तो वो बोले तुम मेरी औलाद की तरह हो, तुम जो चाहे ले लो.

दरअसल देश विभाजन के लिए सीमान्त गांधी नेहरू और जिन्ना को बराबर का ज़िम्मेदार मानते थे. मरते दम तक उन्होंने दोनों को माफ़ नहीं किया. इंदिरा गांधी को उन्होंने इसी वजह से अपना सामान नहीं उठाने दिया था क्योंकि इंदिरा गांधी जवाहर लाल नेहरू की बेटी भी थीं और प्रधानमंत्री भी थीं.

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एक प्रधानमंत्री को इस तरह से एयरपोर्ट पर डांट देने का हक़ रखने वाला देश में कोई दूसरा नेता पैदा नहीं हुआ. नेता तमाम पैदा होंगे. कुछ अच्छे नेता होंगे, कुछ बहुत अच्छे नेता होंगे लेकिन सीमान्त गांधी अब कभी पैदा नहीं होंगे. देश के लिए जीने-मरने का ख़्वाब देखने वालों के साथ ऐसा बर्ताव सियासत को शोभा नहीं देता है. सीमान्त गांधी की मौत के सिर्फ 32 साल बाद उनके नाम पर बने अस्पताल का नाम बदलने की सोच रखने वालों को उनसे माफी मांगनी चाहिए.

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