रूबी सरकार
समुदायिक भागीदारी पर जोर देने वाली अटल भूजल योजना की घोषणा पिछले साल 25 दिसम्बर,2019 को पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की।
बुंदेलखण्ड में सूखे की मार झेल रहे समुदायों को उम्मीद थी, कि अब जल्द ही उन्हें पानी के संकट से निजात मिलेगी। लेकिन लगभग एक साल होने को है, मध्यप्रदेश में प्रथम चरण का काम भी शुरू नहीं हुआ है।
विभागीय सूत्र बताते हैं, कि केंद्र से बातचीत ही चल रही है। अभी तक केंद्र और मध्यप्रदेश के बीच सहमति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं हुआ है। विभाग का कहना है, कि कोविड-19 संक्रमण के चलते इस काम में विलम्ब हो रहा है।
इधर सरकार की इस सुस्त चाल से समुदाय में निराशा है। क्योंकि बुंदेलखण्ड के किसानों पर इस समय दोहरी मार पड़ रही है। उन्हें कोविड-19 के संक्रमण से भी निपटना है और मंदी की मार भी झेलनी है। ऊपर से इस बार यहां मानसून की विफलता दर्ज की गई है।
विदित हो, कि बुंदेलखण्ड के 13 जिलों में इस बार औसत से कम वर्षा हुई है। मध्यप्रदेश के जिलों की बात करें, तो छतरपुर जिले में औसत 900 मिमी बारिश के बदले केवल 644 मिमी यानी 71 फसदी वर्षा हुई है। वहीं दतिया में औसत 716 मिमी के बजाय 541 यानी 74 फीसदी। इसी तरह टीकमगढ़ जिले में 846 मिमी के बजाय 670 मिमी यानी 79 फीसदी,, पन्ना में एक हजार 34 मिमी औसत वर्षा से 865 यानी 84 फीसदी, सागर में एक हजार, 25 मिमी के स्थान पर 871 मिमी यानी 85 फीसदी, वहीं दमोह की स्थिति कुछ बेहतर जैसे- यहां 996 के औसत वर्षा के बजाय 915 यानी 92 फीसदी वर्षा हुई है।
इस योजना के अंतर्गत गांवों में आवंटित राशि से पंचायत स्तर पर जल सुरक्षा, भूजल संरक्षण के लिए शैक्षणिक और संवाद कार्यक्रम आयोजित होने है। जिससे सामुदायिक भागीदारी के साथ संस्थागत व्यवस्थाओं को मजबूत बनाया जा सके और समुदाय संसाधनों का प्रबंधन करने में सक्षम हो सके।
इसके अलावा भूजल को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक सहभागिता में वृद्धि जैसे कार्यक्रम स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से पूरा किया जाना है। लेकिन अभी तक पंचायतों को इस योजना की कोई जानकारी ही नहीं है।
यह भी पढ़ें : इमरती देवी ने क्यों कहा- ‘पार्टी जाए भाड़ में’
छतरपुर के हरदौलपट्टी के सरपंच जगदीश बताते हैं, कि उन्हें इस योजना के बारे में कोई जानकारी नहीं है। इसी तरह कट्टी पंचायत के सरपंच मुकेश बताते हैं, कि गांव में पाईप लाईन बिछी है, पर किस योजना के तहत यह उन्हें नहीं मालूम। यहां तक कि पंचायतों में अटल भूजल योजना की कोई सुगबुगाहट भी नहीं है।
जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉ संजय सिंह बताते हैं, कि इस वर्ष देश में सामान्य मानसून रहा, लगभग पूरे देश ने बाढ़ जैसी विभीषिका देखी, किन्तु बुंदेलखण्ड इस बार भी बारिश से महरूम रहा।
उन्होंने कहा, जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण बुंदेलखण्ड में हर दो साल में सूखा पड़ रहा है। एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखण्ड के 13 जिलों में औसत वर्षा से 40 फीसदी की गिरावट आई है। पिछले 5 सालों में तो यह गिरावट लगभग 60 फसदी तक दर्ज की गई है। यह क्षेत्र जल को लेकर तनाव वाले क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। अगर यही हाल रहा तो वर्ष 2030 तक बुंदेलखण्ड में जल दुर्लभ क्षेत्र के रूप में जाना जायेगा। ऐसे में यहां की 75 फीसदी आबादी, जिनकी प्राथमिक आजीविका कृषि पर निर्भर है, उन्हें अन्य शहरों में पलायन करना पड़ेगा।
सिंह ने कहा, बुंदेलखण्ड में अंधाधुंघ पेड़ों की कटाई, अत्यधिक रासायनिक उर्वरक का उपयोग और मिट्टी का कटाव ने पारंपरिक जल भण्डारण संरचनाओं और क्षेत्र की जल भण्डारन क्षमता को कम किया है। इसके अलावा चट्टानी इलाके में ग्रेनाइट और ऊंचाई वाले क्षेत्र होने से भी मानसून के दौरान प्रभावी भूजल पुनर्भरण में बाधा आती है।
दरअसल भू-जल भण्डार के लगातार कम होने की चिंता को दूर करने के उद्देश्य से ही केंद्र सरकार ने विश्व बैंक की सहायता से अटल भू-जल और अटल टनल जैसी दो नई योजनाएं शुरू की है। योजनाओं को पूरा करने के लिए 6 हजार करोड़ रूपए स्वीकृत हो चुके है। इसमें 3 हजार करोड़ विश्व बैंक और 3 हजार करोड़ केंद्र सरकार के है। राज्यों को यह राशि अनुदान के रूप में दी जायेगी।
योजना को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से समय सीमा 2020-21 से 2024-25 तक 5 साल की अवधि निर्धारित की गई है। इसका लक्ष्य, जिन इलाकों में भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है, वहां भूजल के स्तर को ऊपर उठाना है, जिससे किसानों को अपनी आय दोगुना करने में मदद मिले।
योजना की पृष्ठभूमि वर्ष 2011 में किये गये नमूना मूल्यांकन पर आधारित है। जिसमे कहा गया, कि भारत के 71 जिलों में से 19 में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है। यहां जलाशयों की प्राकृतिक पुनर्भरण की क्षमता से अधिक जल की निकासी की गई है। इसी तरह वर्ष 2013 में किये गये आकलन के अनुसार बहुत सारे चिन्हित जिलों में पाया गया, कि 31 फीसदी जल खारा हो गया है।
इस तरह हर साल सूखे की चपेट में आने वाले 7 राज्यों को इसके लिए चिन्हित किया गया, जिसमें मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश , गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं। इन राज्यों का चयन भूजल की कमी के साथ-साथ प्रदूषण और अन्य मानकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। इन राज्यों के 78 जिलों के 193 विकास खण्डों के 8 हजार, 350 गांवों में भूजल स्तर बढ़ाने के लिए इस योजना के अंतर्गत काम होना है।
मध्यप्रदेश के 6 जिलों के 9 विकास खण्डों को इस योजना में शामिल किया है। इसमें निमाड़ी जिले के निमाड़ी विकास खण्ड, छतरपुर जिले का नौगांव और छतरपुर विकास खण्ड, टीकमगढ़ के तीन विकास खण्ड पलेरा, बलदेवगढ़, राजनगर , सागर का सागर विकास खण्ड, दमोह का पथरिया और पन्ना का अजयगढ़ विकास खण्ड के 400 गांवों को इस योजना के अंतर्गत लाया गया है। बहरहाल मध्यप्रदेश और केंद्र के बीच समझौते पर हस्ताक्षर के बाद ही इस दिशा में कदम आगे बढ़ेगा। तब तक बुंदेलखण्ड के किसानों को बस इंतजार ही करना है।
यह भी पढ़ें : बिना मास्क कैमरे में कैद हुए तो घर पहुंचेगा चालान
यह भी पढ़ें : बीजेपी ने अपनी पूर्व सहयोगी महबूबा मुफ्ती को बताया देशद्रोही
यह भी पढ़ें : इस प्राइवेट स्कूल पर पीएमओ की नज़र हुई टेढ़ी