विवेक अवस्थी
इस संभावना को देखते हुए कि यूपी गैर-यादव, गैर-जाटव दलित सपा बसपा के गठबंधन अलग हो सकता है , भाजपा ने पूर्वी यूपी में मोदी-शाह की धुआंधार रैलियों की योजना बनाई है, जहां शेष दो चरणों में 27 महत्वपूर्ण सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। दरअसल यही वो फार्मूला था जिसने 2014 के चुनावों में भाजपा को जीतने में मदद की थी।
देश की कुल 543 सीटों में से 425 संसदीय सीटों के लिए मतदान पांचवें चरण के मतदान के साथ खत्म हो गया है। शेष दो चरणों में उत्तर प्रदेश की 27 महत्वपूर्ण सीटें हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की 14 सीटो पर छठे चरण में 12 मई को चुनाव होगा, और अंतिम 13 सीटों पर 19 मई को मतदान होगा। भाजपा उत्तर प्रदेश की इन 27 सीटों के महत्व को ठीक से समझ रही है । 2014 में भगवा पार्टी ने इनमें से 25 सीटें और सहयोगी दल ने एक सीट जीती थीं। एक अकेली आजमगढ़ की सीट समाजवादी पार्टी की किटी में चली गई थी ।
2018 के उपचुनाव में बीजेपी को गोरखपुर और फूलपुर सीट पर साझा विपक्ष ने हरा दिया था। भाजपा इस खतरे को समझ रही है और इसीलिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक जबरदस्त अभियान की योजना बना रही है। सूत्रों का कहना है कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्य महासचिव सुनील बंसल, पार्टी के गुजरात नेता गोरधन झड़फिया, पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दुष्यंत गौतम और वरिष्ठ प्रदेश नेता नरोत्तम मिश्रा की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है, जो अगले दो चरणों के कील कांटे दुरुस्त कर रही है। यह उच्चस्तरीय समिति यह सुनिश्चित करेगी कि गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों का इंद्रधनुष गठबंधन पार्टी के पाले में लौट आए। शीर्ष भाजपा नेतृत्व की चिंता बिना कारण के नहीं है।
भाजपा के लिए फ़िक्र की वजह है वोट ट्रांसफर
भाजपा के नेता इस बात को समझ चुके हैं कि राज्य में पहले पांच चरणों के मतदान में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच वोट का हस्तांतरण हुआ है। असली राजनीति अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल ने कन्नौज में गठबंधन की रैली में बीएसपी सुप्रीमो मायावती के पैर छूकर की थी। बसपा के वोटरों पर इसका बड़ा असर हुआ। इसके बाद अखिलेश ने मायावती को पीएम बनाने की अपील भी कर दी।
यादव वोटरों को भी समझ आ चुका है कि यूपी में सत्ता पानी है तो केंद्र के चुनावो पर असर डालना होगा। इस बीच मतदान से ऐन पहले मायावती का बयान आया जिसमे उन्होंने अपने कैडर को रायबरेली और अमेठी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए वोट करने के लिए कहा था, जो चुनाव के बाद विपक्षी एकता की ओर इशारा करते हैं।
ऐसे हालात में भाजपा नेताओं की राय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रैलियां ज्यादा होनी चाहिए और उसके जरिये मोदी मैजिक को तेज करना होगा साथ ही राष्ट्रवाद की चर्चा को बढ़ाना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी की अब छह और रैलियां पूर्वी यूपी में होंगी, जबकि पहले यह योजना कुल पांच थी । इसी तरह, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पांच से छह मेगा रैलियों की योजना इसी क्षेत्र के लिए बनाई गई है।
इन्द्र धनुषी गठजोड़ बचाना है भाजपा की चुनौती
कुर्मी,कुशवाहा और निषाद वोट बैंक भाजपा के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गए हैं। सपा-बसपा गठबंधन ने इंद्रधनुष के गठबंधन को तोड़ने के लिए इलाहाबाद, श्रावस्ती और बस्ती सीटों से कुर्मी उम्मीदवार उतारे। मछलीशहर से पूर्व सांसद और निषाद नेता, राम चरित्र निषाद, जो इस बार पार्टी के टिकट से वंचित थे, ने समाजवादी पार्टी में शामिल होने के लिए भाजपा छोड़ दी। कुशीनगर से नथुनी प्रसाद कुशवाहा को मैदान में उतारकर,गठबंधन ने इस सीट और उससे सटे सीटों के कुशवाहा मतदाताओं पर पकड़ बनाने की कोशिश की है।
गठबंधन ने निषाद नेता, राम भुआल निषाद को गोरखपुर सीट से भाजपा के अभिनेता से राजनेता बने रवि किशन शुक्ला के सामने खड़ा किया। यह सीट अब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए एक प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि यह उनका गढ़ है जहाँ वे उपचुनाव हार चुके हैं । गठबंधन के उम्मीदवार राम भुआल निषाद, यादव, मुस्लिम और दलित वोटों के एकजुट वोटो के जरिये मजबूत चुनौती बन गए हैं पर बड़े पैमाने पर चुनौती पेश कर रहे हैं।
गोरखपुर की लगातार दूसरी हार योगी आदित्यनाथ की छवि को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।
भगवा पार्टी के लिए सिरदर्द बने राजभर
योगी सरकार के पूर्व मंत्री, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओपी राजभर भाजपा के लिए एक और बड़ा सिरदर्द बन गए हैं। भाजपा ने राजभर की पार्टी ने दो सीटों से इनकार किया तो उन्होंने 30 से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए । अनुमान है कि राजभर घोसी, गाजीपुर और बलिया की महत्वपूर्ण सीटों पर अधिक नहीं तो कम से कम चालीस से पचास हजार तक भाजपा के वोटबैंक में सेंध लगाएंगे। और करीबी बहुकोणीय मुकाबले में, ये वोटों की संख्या एक निर्णायक कारक हो सकती है।
भाजपा के नेता इस बात से अच्छी तरह वाकिफ है कि जहाँ तक गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों की बात है, 2014 जैसे हालात इस बार नहीं हैं। वे जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में इस बार जातिगत समीकरण से उन्हें परेशानी हो सकती है। भगवा खेमे के लिए मोदी और अमित शाह की बढ़ी हुई रैलियां की अब आशा की किरण हैं।
(विवेक अवस्थी बिजनेस इंडिया टेलीविजन के सीनियर पोलिटिकल एडिटर हैं )