जुबिली न्यूज़ ब्यूरो
लखनऊ.
आकर गमें हुसैन ने फिर सौंप दी मुझे
जन्नत निकल चुकी थी मेरे इख्तिसार से
अकबर का हुस्न तूर के जलवे से कम नहीं
नाबीना कर दे गर न मिले इन्त्कार से
तीरे सितम शुजाअते असगर पे दंग था
वो मुस्कुराए भी तो अली के वकार से
मशहूर शायर हिलाल नकवी के ये शेर खूब पसंद किये गए. हिलाल नकवी नक्खास स्थित शहंशाह बिल्डिंग में आयोजित तरही मुसालमे में शिरकत कर रहे थे. डॉ. आरिफ रज़ा द्वारा आयोजित इस मुसालमे में शायरों को “असगर की जीत हो गई हर एतबार से” मिसरा दिया गया था.
शुमूम आरफी के ये शेर खूब पसंद किये गए :-
उनमें कोई हबीब है कोई हुसैन है
वाकिफ है जो हुसैन तेरे इक्तेदार से
मजमून मेरा फिर भी उजागर नहीं हुआ
शेरों का वज़न बढ़ गया लफ़्ज़ों के बार से
क्या शाने लखनऊ कि अहले अजा शुमूम
शहरे अजा में आते हैं कुर्बो जवार से.
तय्यब रज़ा की यह बानगी खूब पसंद की गई:-
दुश्मन अजा के गुज़रे हैं किस इन्तशार से
हारे कदम-कदम पे हुसैनी वक़ार से
सिब्ते नबी ने बढ़ के गले से लगा लिया
हुर ने नजात पाई गुनाहों के बार से
खैरात बांटने पे थे आमादा मुर्तज़ा
ये देखते ही हट गए कम्बर कतार से.
ज़की भारती के इन शेरों को बार-बार सुना गया:-
ये मोजिज़ा भी लिखा गया इख्तेसार से
काँटों की मौत हो गई फूलों के वार से.
कागज़ पे कर रहा है खिताबत मेरा कलम
फर्शे अजा पे बैठी हैं लफ्जे कतार से.
कुछ फ़ौज अपनी और बुला ले तू हुरमुला
असगर पड़ेंगे आज अकेले हज़ार से.
कर्बोबला की जंग से सीखे हैं ये हुनर
पत्थर को तोड़ सकते हैं शीशे की धार से.
खुर्शीद फतेहपुरी ने सुनाया:-
आंसू रवां हैं चश्मे हकीकत निगार से
दामन भरा हुआ है दुरे शाहवार से.
अजादार आज़मी ने कहा:-
बोला जरी हुसैन के हर जांनिसार से
बाहर कदम न जाए वफ़ा की कतार से.
एक फूल ने लगाईं है दिल पे कुछ ऐसी चोट
अब हुरमुला डरेगा हमेशा बहार से.
खेमे में मिलने आये हैं सज्जाद से हुसैन
एक ज़िम्मेदार मिलता है एक ज़िम्मेदार से.
यावर बलियावी ने कहा:-
हमला हुआ कुछ ऐसा लबे शीरखार से
संभला न एक बार सितम के हज़ार से.
मोहसिन अब्बास के यह शेर पसंद किये गए :-
मांगो मुरादें असगरे आली वक़ार से
मिल जाएगा खजाना-ए-परवरदिगार से.
ये कह रही थी तेग बहुत एतबार से
बिजली की खौफ क्या है किसी नावक़ार से.
तैय्यब लखनवी ने कहा :-
दरकार इसलिए है मदद शीरखार से
मिदहत है कैसे नूर की इस खाकसार से.
असगर से मुंह की खाई तो कैसा लगा तुझे
तारीख पूछती रही उस नावक़ार से.
अंजुम गदीरी के ये शेर पसंद किये गए :-
असगर के नाम पर यहाँ बंटता है बेशुमार
जो दिल में आये मांग लो परवरदिगार से.
ये सारी कायनात तेरी मुट्ठियों में है
बाहर नहीं है कुछ भी तेरे अख्तियार से.
खुशनूद मुस्तफा की ये बानगी काबिले गौर थी :-
झुठला के मर गए जो शहीदों की प्यास को
महशर में आ रहे नज़र शर्मसार से
हर जाविये से देखिये हारी है फौजे शाम
असगर की जीत हो गई हर एतबार से.
हर वक्त रोते रहते हैं तुझको तेरे गुलाम
कुछ काम नहीं है उन्हें फसले बहार से.
जावेद बाकरी ने कहा :-
राहे निजात उनको नज़र आये किस तरह
आँखें अटी हैं बुग्ज़े अली के बुखार से.
हम पहले जान देंगे मोहम्मद के लाल पे
हर जांनिसार कहता था हर जांनिसार से.
आकाए हुर नवाज़ करम मेरे हाल पर
मैं दब न जाऊं अपने गुनाहों के बार से.
नजर लखनवी ने सुनाया :-
मैंने बस एक इश्क से जन्नत खरीद ली
कुछ लोग जल रहे हैं मेरे कारोबार से.
हुर आ गया हुसैन के क़दमों में इस तरह
जैसे नमाज़ पढ़ते हैं हम एतबार से.
जलाल काज़मी ने कहा :-
बेशीर क्यों लड़ेगा यहाँ जुल्फिकार से
बैयत तो मर चुकी है तबस्सुम के वार से
फूलों को डर नहीं रहा हरगिज़ भी खार से
असगर की जीत हो गई हर एतबार से.
ये कर्बला की जंग है खैबर नहीं है ये
आंसू टपक रहे हैं यहाँ ज़ुल्फ़िकार से.
आरिफ अकबराबादी के ये शेर पसंद किये गए :-
मंसूब हुसैन गरीबुद्द्यार से
आज़ाद मेरा दिल है गमें रोज़गार से
दरिया खमोश और फिजाओं में खौफ है
निकला है शेर गैजो गज़ब में कछार से.
असगर ने हंस के टाल दिया हुरमुला का वार
कैसे बचेगा हुरमुला असगर के वार से.
रियाज़ काज़मी की यह बानगी काबिले गौर रही :-
जिसको दिलेर समझी है दुनिया वो हुरमुला
मैदां में जंग हार गया शीरखार से.
आकर दरे हुसैन पे हुर ने बता दिया
तकदीर मेरी बदली है तेरे दयार से.
अफसर दबीरी ने कहा :-
गर हो यकीन पूछ लो ये किर्दिगार से
असगर की जीत हो गई हर एतबार से.
ऐसा किया था रन में तबस्सुम का एक वार
फौजे यज़ीद हार गई शीरखार से.
शहजादा-ए-अली असगर के नाम पर हुए इस मुसालमे में पूरी रात शायरों ने नजराना-ए-अकीदत पेश की. मुसालमे में डॉ. आरिफ रज़ा, कम्बर लखनवी, इमरान, कौसर, मोहम्मद अली और मुर्तजा हसन रिज़वी ने भी अपने कलाम पेश किये.
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