अविनाश भदौरिया
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि, दिल्ली सरकार के अस्पतालों में केवल दिल्ली के मूल निवासियों का इलाज होगा जबकि शेष दिल्ली में रहने वाले लोगों को केंद्र सरकार के अस्पतालों में इलाज कराना पड़ेगा।
केजरीवाल के इस ऐलान के बाद सियासी माहौल गरमाने लगा है। विपक्षी दल उनके इस फैसले को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। केजरीवाल के इस फैसले पर विपक्ष के आलावा अन्य सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया भी हैरानी जता रही है।
दरअसल उनके इस फैसले के बाद एक नई समस्या खड़ी हो सकती है। कोरोना महामारी से लड़ाई में जंग जीतनी है तो उसके लिए देश को एकजुट रहना जरुरी है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री को अपना-पराया दिख रहा है। सोचने वाली बात है कि देश की राजधानी दिल्ली में जो दूसरे राज्यों के लोग रह रहे हैं उन्हें इलाज के लिए अपना निवास प्रमाण पत्र दिखाना होगा। ये फैसला कहीं न कहीं अखंड भारत को खंड-खंड करने वाला है।
अफ़सोस की बात है कि राजनीति को बदलने का वादा करके सियासत में आने वाले आज वोट बैंक की राजनीति पर इस हद तक उतर आये हैं कि उन्हें मानवता का भी ज्ञान न रहा।
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश तिवारी का कहना है कि, अरविन्द केजरीवाल का ये फैसला दिल्ली की जनता को खुश करने वाला है और पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। ऐसे संकट के समय में उन्हें राजनीति करने की बजाय सभी के इलाज के लिए प्रयास करना चाहिए।
गिरीश तिवारी आगे कहते हैं कि, पिछले कुछ समय में अरविन्द केजरीवाल ने जिस तरह से अपनी राजनीति के तौर तरीको को बदला है उसे देखते हुए वो कहावत याद आ जाती है कि, ‘आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास’।
बालठाकरे के नक़्शे-कदम पे केजरीवाल
बता दें कि, अरविन्द केजरीवाल जिस तरह से दिल्ली वासियों के प्रति अपनी हमदर्दी दिखाते हैं उसे देखकर शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की याद ताजा हो जाती है। पिछले कई मौकों पर केजरीवाल खुद को दिल्ली से ऐसे जोड़ते दिखे हैं जैसे कभी बाल ठाकरे ने खुद को मराठों से जोड़ रखा था। हालांकि बाल ठाकरे की महत्वाकांक्षा कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने की नहीं रही लेकिन केजरीवाल के लिए बड़ी संभावनाएं नजर आती हैं, जिन्हें वो खुद ही ख़त्म करने में तुले हैं।
यह भी पढ़ें : फर्जीवाडा करने वाली टीचर की इनसाइड स्टोरी
यह भी पढ़ें : अपनी वेब सीरीज को लेकर बुरी फंसी एकता कपूर
यह भी पढ़ें : कोरोना का डर क्या अब रात में ही रह गया है !