शबाहत हुसैन विजेता
मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफ़सोस
यूं तो दुनिया में सभी आये हैं मरने के लिए
अरुण जेटली की मौत की खबर मिली। साल 2019 का अगस्त महीना पहले सुषमा स्वराज को लील गया और अब अरुण जेटली को।हिन्दुस्तान की सियासत में यह दोनों ऐसे नाम हैं जो निर्विवाद थे। दोनों ने बहुत कम उम्र में सियासत के आंगन में पांव रखे और सियासत के आसमान को छुआ।
नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल में शामिल रहे सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने 2019 की सरकार में शामिल होने से इंकार करते हुए कोई भी ज़िम्मेदारी लेने से मना कर दिया था। दोनों ने सेहत के साथ न देने का हवाला दिया था लेकिन कोई नहीं जानता था कि दोनों इतनी जल्दी साथ छोड़ जाएंगे।
बीजेपी सरकार में अमूमन वह लोग मंत्री हैं जो दूसरी सियासी पार्टियों से हमलावर अंदाज़ में बात करते हैं लेकिन अरुण जेटली और सुषमा स्वराज सबको साथ लेकर चलने वाले लोग थे। सुषमा स्वराज ने बतौर विदेश मंत्री दुनिया के कई देशों में मुश्किलों से जूझ रहे भारतीयों की खूब मदद की। विदेशी चंगुल से छूटकर आये भारतीयों से सुषमा मुलाकात भी करती थीं और आगे मदद का वादा भी करती थीं।
सुषमा स्वराज मुश्किल ऑपरेशन से गुजरी थीं, सेहत साथ नहीं देती थी, लेकिन जब तक वह मंत्री रहीं उन्होंने न रात देखा न दिन। यह सुषमा स्वराज का अपना आभा मंडल था कि उन्हें किडनी देने के लिए सैकड़ों भारतीयों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लोग उनके ठीक हो जाने की दुआएं मांग रहे थे। वह ठीक भी हो गई थीं। वह मुल्क के लिए किस शिद्दत से सोचती थीं यह उनका आखरी ट्वीट बताता है, जो उन्होंने प्रधानमंत्री को किया था।
कश्मीर से धारा 370 हटायी गई तो सुषमा स्वराज ने शाम 7 बजकर 28 मिनट पर पीएम मोदी को ट्वीट कर कहा कि वह इसी दिन को अपनी ज़िन्दगी में देखना चाहती थीं। रात 9 बजे उनकी मौत की खबर आई तो हर कोई चौंक गया। सिर्फ डेढ़ घण्टा पहले अपने ट्वीटर पर मौजूद सुषमा ने अपनी आँखें मूंद ली थीं।
अरुण जेटली 9 अगस्त को एम्स में रूटीन चेकअप के लिए गए थे लेकिन एडमिट कर लिए गए। हालत इतनी बिगड़ी कि वेंटिलेटर पर चले गए। कई बार उनकी मौत की अफवाह उड़ी और हर बार लोगों ने हाथ दुआ के लिए उठाए कि खबर गलत हो। आज फिर मौत की खबर आई तो लोग दुआ करने लगे कि काश यह खबर गलत हो लेकिन इस बार एम्स के बुलेटिन ने खबर पर मोहर लगा दी।
अरुण जेटली उन काबिल लोगों में थे जो देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का हुनर जानते थे। वह बीजेपी के ऐसे नेता थे जिनका हर पार्टी में बराबर सम्मान था।
जेटली अच्छे वित्तमंत्री थे। साम्प्रदायिक नहीं थे। सबको साथ लेकर चलने का हुनर रखते थे। तनाव के माहौल में भी बहुत संयम के साथ अपनी बात कह देते थे। सत्ता में लंबे वक्त तक रहे, लेकिन सत्ता के पीछे भागने वाले नहीं थे। जब लगा कि सेहत साथ नहीं दे रही और ज़िम्मेदारी निभाना मुश्किल है तब खुद ही प्रधानमंत्री को चिट्ठी भेजकर हाथ जोड़ लिए।
अरुण जेटली नहीं हैं तो मन होता है कि बता दूं कि देश के अर्थतन्त्र पर नज़र रखने वाला यह बड़ा अर्थशास्त्री अपने बच्चों को भी चेक से पैसा देता था और अपने बच्चों से खर्च का हिसाब मांगता था।
अरुण जेटली ने पॉवर की चमक को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। समाज में सबको बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए यह बात उनके लिए सिर्फ कागज़ी सबक़ नहीं थी। घर के नौकरों और ड्राइवरों को पास बुलाकर उनकी समस्याओं को सुनना और उन्हें हल कराना उनका रूटीन था।
बात सुनने में अटपटी लग सकती है लेकिन सच यही है कि दिल्ली के माउंट कार्मल स्कूल में जहां उनके बच्चे पढ़ते थे उसी स्कूल में उन्होंने अपने नौकरों और ड्राइवरों के बच्चों का एडमिशन भी कराया था। हर महीने उनके स्कूल की फीस भरते थे। अपने दो सहायकों के बच्चों को उन्होंने अपने खर्च पर पढ़ने के लिए विदेश भेजा। उन्हें डॉक्टर और इंजीनियर बनाया। एक सहायक का बेटा डॉक्टर बन गया तो उसे अस्पताल जाने के लिए अपनी कार दे दी।
अरुण जेटली की मौत की खबर आई तो पीएम मोदी ने उनकी पत्नी को फोन किया। ऐसे संकट के समय में भी अरुण जेटली की पत्नी और बेटे ने पीएम से कहा कि वह अपना विदेश दौरा बीच में न छोड़ें क्योंकि यह देश के लिए ज़रूरी है।
देश के लिए ज़रूरी का जो संस्कार अरुण जेटली छोड़ गए हैं वह जितनी पीढियों में ट्रांसफर होता जाएगा जेटली उतनी पीढयों में ज़िन्दा रहेंगे।
लोग पैदा होते हैं मर जाते हैं। बच्चा पैदा होता है, चलना सीखता है, स्कूल जाता है, पढ़ लिखकर अपनी ड्यूटी निभाता है, जिस्म थक जाता है तो रिटायर हो जाता है, छुट्टी को इंज्वॉय करता है। मौत आती है तो मर भी जाता है, लेकिन जो संस्कारों को जीता है, विचारों को पैदा करता है, जिसके लिए देश और समाज सर्वोपरि होता है। वह मरता नहीं बिखर जाता है लोगों की रूहों में, यादों में। एक शायर ने कहा भी है कि
होठ थम जाने से पैगाम नहीं थम जाते
जिस्म की मौत कोई मौत नहीं होती है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
ये भी पढ़े: मैग्सेसे अवार्ड और रवीश की बिरादरी
ये भी पढ़े: जरायम की दुनिया में बहुत आम है गवाहों की हत्या
ये भी पढ़े: डंके की चोट पर : इस शुरुआत से बदल जाएंगे हालात
ये भी पढ़े: डंके की चोट पर : असली पॉवर किसके पास है
ये भी पढ़े: डंके की चोट पर : बेटियां बाप का गुरूर होती हैं