हेल्थ डेस्क
तेज रफ्तार वाली जिंदगी की वजह से खान-पान, व्यायाम पर उचित ध्यान न दे पाना कई प्रमुख रोगों का कारण बनता है। गठिया भी इन्ही बीमारियों में से एक है। ऑफिस में लगातार बैठकर काम करना या ज्यादा देर तक बैठे रहने के कारण जोडों में जकडन होने से भी यह रोग होता है। गठिया या अर्थराइटिस हड्डियों के जोडों की बीमारी है। यह बीमारी पुरषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखी जाती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो उम्र नहीं देखती है।
लेकिन अब गठिया का मुकम्मल इलाज हो सकेगा। वो भी मरीजों के ही खून से। केजीएमयू का पीएमआर (फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन) विभाग ‘प्लेटलेट रिच प्लाज्मा’ विधि से इलाज शुरू करने जा रहा है। इसके लिए सेंट्रीफ्यूज मशीन लगेगी।
पीएमआर विभाग के डॉ. राहुल के मुताबिक, मरीज का 30 एमएल रक्त निकाला जाएगा। उसे सेंट्रीफ्यूज मशीन में डाला जाएगा, जहां प्लेटलेट रिच प्लाज्मा तैयार होगा। यह करीब चार एमएल बनेगा। इसको अल्ट्रासाउंड गाइडेड निडिल के माध्यम से घुटने व अन्य जोड़ों में डाला जाएगा।
इसके असर से घुटने के जोड़ में सूखी कार्टिलेज (ऊतकों का समूह) लुब्रीकेंट में तब्दील होने लगेगा। ऐसे में गठिया के मरीज में जोड़ों की हड्डियों में घिसाव नहीं होगा। मरीजों को सूजन व दर्द से निजात मिलेगी। यह प्रक्रिया 15 से 20 मिनट की होगी। वहीं, खर्चा भी 500 या एक हजार रुपये आएगा।
डॉ. राहुल के मुताबिक, प्लेटलेट रिच प्लाज्मा कार्टिलेज के साथ-साथ अन्य शरीर के ऊतकों को भी दोबारा बनाएंगे। म्यूकोपॉली सेकराइड, ग्लूकोसामीन की पूर्ति भी इससे संभव है। यह डोज इंजेक्ट होते ही पहले दिन से असर शुरू करेगी। वहीं प्लेलेट रिच प्लाज्मा तीन सप्ताह में पूरा असर दिखाएगी।
प्लेटलेट रिच प्लाज्मा ऑस्टियो ऑर्थराइटिस ही नहीं हड्डी के कई रोगों में कारगर है। इसमें स्पॉन्डलाइटिस, टेनिस एल्बो इंजरी, गोल्फर एल्बो, प्लांटर फेशिया, घुटने के अलावा कलाई का आर्थराइटिस।
बताते चले कि पश्चिमी देशों में हिप आर्थराइटिस की समस्या अधिक है। वहीं देश में नी (घुटना) आर्थराइटिस अधिक हैं। यह दिक्कत घुटनों में कार्टिलेज खत्म होने से होती है। आर्थराइटिस पीडि़त महिलाएं अधिक हैं। अनुपात 100 मरीजों में 60 महिलाओं का है। इसका कारण, महिलाओं में 50 की उम्र पार मीनोपॉज व स्ट्रोजेन हार्मोन में कमी आना है। लखनऊ में 10 फीसद आबादी आर्थराइटिस की चपेट में हैं।