सुरेंद्र दुबे
आइए आज थल सेना अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के बयान का गहन अध्यन करते हैं, जिसमें उन्होंने इस देश के लोगों को बताने की कोशिश की कि नेता कैसा होना चाहिए। पूरे देश में कल से उनके बयान की चर्चा है।
सेना प्रमुख ने गुरुवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, ‘नेता वे नहीं हैं जो हिंसा करने वाले लोगों का साथ देते हैं। छात्र विश्वविद्यालयों से निकलकर हिंसा पर उतर गए, लेकिन हिंसा भड़काना नेतृत्व करना नहीं है।’ उन्होंने कहा कि नेता वो नहीं है जो लोगों को अनुचित मार्ग दिखाए।
सेना प्रमुख ने यह बयान देश में नागरिकता संशोधन कानून तथा नागरिकता जनसंख्या रजिस्टर को लेकर चल रहे विवाद, धरना व प्रदर्शन के संदर्भ में था। कल पहली बार इस देश को पता चला कि हमारे पास एक ऐसा थल सेना अध्यक्ष है जो नेताओं को भी सीख देने की हैसियत रखता है।
अगर वो ये बयान काफी पहले दे देते तो देश का बहुत भला होता। कम से कम लोग नेताओं की परिभाषा समझ जाते हैं और उनके बयान नागरिक शास्त्र की किताबों में दर्ज हो जाते। इस देश का सबसे बड़ा संकट यही है कि हम ये नहीं समझ पाते कि कौन सा नेता हमारे देश को आगे बढ़ा सकता है और कौन सा नेता हमारे देश की लुटिया डुबो सकता है।
हमारे पास हर ढंग के नेता हैं। कभी हम जिसको काबिल नेता समझते हैं वो हमारी लुटिया डुबो देता है और कभी लुटिया डुबोने वाला नेता काबिल निकल जाता है। हमारे देश का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है पर अभी भी हमारे मतदाता सही नेता नहीं चुन पाते हैं। अब रावत साहब ने सही नेता की पहचान बता दी है तो हो सकता है आने वाले चुनावों में मतदाता रावत साहब की सलाह पर अच्छे नेता चुन लें।
चर्चा है कि चीफ डिफेंस ऑफ स्टाफ (सीडीएस) पद के लिए रावत साहब का नाम सबसे आगे चल रहा है। कुछ हलकों में ये भी चर्चा है कि रावत साहब को ही सीडीएस बनाया जाएगा। हमें लगता है कि रावत साहब ने मौके पर छक्का लगा दिया और नागरिकता कानून को लेकर चल रहे आंदोलन के संदर्भ में सरकार के पक्ष में सार्वजनिक इंटरव्यू देकर अपनी गद्दी पक्की कर ली है।
अभी तक हमारे यहां सेना के लोग राजनैतिक बयान देने से बचते रहे हैं और इसकी उन्हें इजाजत भी नहीं रही है। पर अब रावत साहब ने राजनैतिक बयान देकर सेना में काम करने वाले लोगों को राजनैतिक होने का रास्ता खोल दिया है।
हमारे देश में शासन चलाने में सेनाओं की कभी कोई भूमिका नहीं रही। भूमिका न रहे इसलिए सेना के तीनों अंगों के अलग-अलग प्रमुख बनाए गए। अब जब सीडीएस का पद सृजित हो गया है तो जाहिर है सीडीएस का सेना के तीनों प्रमुख पर किसी न किसी तरह नियंत्रण रहेगा। नई व्यवस्था में हम एक तरह से सरकार चलाने में सेना को भी महती भूमिका देने की नींव डाल रहे हैं।
अगर ऐसा होता है तो यह एक गंभीर खतरे का संकेत है। जिसे वर्तमान सरकार व विपक्षी दलों सहित सभी को समझना चाहिए। खतरे का आभास रावत साहब के नेताओं के संदर्भ में दी गई परिभाषा से होता है। अभी तो रावत साहब सीडीएस बने नहीं हैं पर उनके इरादे संदेह के दायरे से बाहर नहीं लगते।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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