डा.सी.पी.राय
जब देश के सभी लोग इतनी ठंड में हीटर और रजाई मे घरों में दुबके होते है, तभी देश का पेट भरने वाला किसान खुले आसमान के नीचे बैठा है कई रातों से और बैठेगा कई रातों तक इन्तजार में कि देश के मालिक अडानी और अम्बानी शायद उसी के वोट से चुने गये लोगों को इजाजत दे दे उसका दर्द सुनने की वैसे भी ये किसान जाड़ा गर्मी बरसात दिन या रात खड़ा रहता है खेत मे की मुल्क मे कोई भूखा इसलिए न रह जाये की अनाज कम है।
और कोविड के लॉक डाउन मे भी जब सब कुछ बंद था होटल रेस्ट्रां कारखाने इत्यादि तब भी किसान खड़ा था खेत में। जब महंगी महंगी गाडिया खड़ी थी गेराज में और कपडे बंद थे अलमारी में तो जरूरत थी सिर्फ खाने की ,अनाज की , सब्जी की और दूध की और ये सब कम नहीं पड़ने दिया किसान ने और आज वो चंद पूंजीपतियो की कठपुतली सरकार से रहम कि गुहार लगाने निकल आया है सब छोड़कर कि देशी ईस्ट इंडिया कंपनी से उसे बचा ले वो लोग जो चुनाव मे भिखारी बन कर खड़े हो जाते है हाथ जोड़े हुये।
वो सिर्फ इतना मांग रहा है की उसे उसके हाल पर छोड़ दे सरकार बहादुर ,उसे उसके फैसले करने दे जीने के और खेती के।
अगर नही कर पाये वादा पूरा फसल का दाम दुगना करने का तो कोई बात नही उसको भूखा मरने मौर पूंजीपतियो का गुलाम बनाने का इन्तजाम भी न करे सरकार बहादुर।
शायद भूल गये है हुक्मरान वो दिन जब देश के हकीम गेहू की भीख मांगने जाते थे और देश शर्मिंदा होता था यो एक जमीनी नेता के एक आह्वान पर छोड़ दिया था खाना इस किसान ने इस संकल्प के साथ की जब तक इतना अनाज खुद पैदा नही क्षर देगा की पूरा देश भी भर पेट खा ले।
और जरूरत पर दूसरे देशो की मदद भी कर दे भारत और कर दिखाया ये चमत्कार वही दिल्ली के दरवाजे पर आने के लिए जूझ रहा है कई दिनो से पानी की बौछार से ,लाठी से ,आँसू गैस से ,खुदी सडको से और सीमा पर लगायी गई बाड़ जैसी चीजो से ,अपनी ही पुलिस से भूख से प्यास से और प्रकृती की मार से और हुक्मरान धृतराष्ट्र बने बैठे है।
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इसी किसान का बेटा भी तो खड़ा है सीमा पर ना जाने कितने माइनस डिग्री मे ताकी देश निश्चिंत हो जी सके स्वाभविक जिन्दगी ।वही जवान जिसकी लाश रोज ही आ रही है पाकिस्तान की सीमा से और आयी थी चीन की सीमा से भी इस बड़बोली और अज्ञानी सरकार की हरकतो और गलत फैसलो के कारण फिर भी देशभक्त किसांन का देशभक्त बेटा जवान सीना ताने खड़ा है सीमा पर चाहे तपता हुआ रेगिस्तान हो या ऊंची ऊंची बरफ जिसमे कई बार वो बिना लड़े ही शहीद हो जाता है।
क्या गलती है किसान की और उसके बेटे जवान की और सिर्फ तथा सिर्फ वही क्यो देश के लिए मरे खपे सब त्याग करे और सत्ता मदमस्त सिर्फ और सिर्फ लूट खसोट और ऐश करती हुयी सिर्फ सिर्फ चंद पूंजीपतियों के लिये ही सब कुछ करे ।
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और कितना दुखद है कि जवान का बाप किसान हो या किसान का बेटा जवान दोनो जिस देशवासियो के लिए जीते और मरते है उसके सुख दुख और संघर्ष के प्रति केवल सत्ता ही नही देश के लोगो की भी कोई संवेदना नही है वरना अपने अपने घर से आवाज उठा देते उसके लिए ,शोर मचा देते उसके लिए।
सिर्फ तमाशे के लिए मूर्खतापूर्ण थाली बजाना हो या टार्च जलाना तो कैसे कर लेते है देश की इतनी बडी संख्या मे लोग और उन्ही की तालिया और थालिया अपने अन्नदाता और अपनी सुरक्षा मे जान देने वालो के लिए क्यो है मौन ? क्या कभी अपने इस व्यवहार पर शर्मिंदा हो सकेंगे हम ? (लेखक स्वतंत्र राजनीतिक चिंतक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)