सुरेंद्र दुबे
एक खिलाड़ी हैं मोदी, जिनका मन हर समय किसी न किसी खेल में लगा रहता है और सरकार के साथ कोई न कोई खेल करते खेलते रहते है। लोग इन्हें प्रधानमंत्री कहते हैं पर हैं ये बड़े तमाशेबाज। भिन्न-भिन्न रूप धारण करके तमाशा दिखाते रहते हैं।
मदारी तो कहीं भी तमाशा दिखाने जा सकता है, इसलिए इस बार ये बंगाल पहुंच गए जादू दिखाने। इन्हें क्या पता था कि यहां तो पहले से ही एक जादूगरनी है। उसने ”जय काली कलकत्ते वाली तेरा वचन न जाए खाली ”का मंत्र पढ़ा और मोदी जी को एक डिबिया में बंद कर दिया। जमूरे बहुत चिल्लाए पर पर दाढ़ी की लाज बचा नही पाए।
दूसरों को अपने इशारों पर नचाने वाले मोदी जी की हालत ये हो गई है कि उनके अपने योगी जी तक जादूगरी में उनको चुनौती देने लगे हैं। कह रहे हैं कि अपना जादू यूपी के बाहर दिखाओ। उनके जमूरें अरविंद शर्मा को खदेड़े हुए है।
अच्छे खासे दिल्ली में थे। साहब की नाक के बाल थे। अब अपने बाल नोच रहे हैं। मोदी जी दाढ़ी खुजा रहे है पर कुछ कर नहीं पा रहे हैं। रोज खबरें चल रही है। शर्मा जी अब बने कि तब बने। लगता तो नहीं है कि कुछ बन पायेंगे। कुछ न बन पाएं तो फिर लोग यही कहेंगे कि जब कुछ न बन सके तो तमाशा बना लिया।
इस तमाशे में तमाशा बनने के लिए जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल करा दिए गए हैं। जानकार कहते हैं कि इन्हें मंत्री बनाया जाएगा। अगर बन भी गए तो क्या कर लेंगे। मंत्री तो अफसरों को सलाम ठोक रहे हैं। जितिन प्रसाद अपना सरनेम तक लिखने से घबराते हैं।
जितिन जब तक ये यह नहीं लिखेंगे कि वाजपेयी हैं तब तक इन्हें कौन ब्राह्मण नेता मानेगा। कई चुनाव शायद इसीलिए हार गए क्योंकि लिखा पढ़ी में ब्राह्मण नहीं बन पाए। ब्राह्मण लिखने को तैयार नहीं तो काहे का ब्राह्मण नेता। हो सकता है कि भाजपा के बल पर अपना चुनाव जीत जाएं।
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दरअसल मोदी जी के सितारे गर्दिश में चल रहे है। बंगाल की जादूगरनी भाजपा तोडऩे में लग गई है। जो खेल मोदी जी ने खेलकर टीएमसी तोड़ी थी वही खेल अब ममता खेलेंगी। मुकुल रॉय को तोड़ लिया है, बाकी को मुकुल रॉय तोड़ेंगे, फिर घर वापस लौटे विधायक इस्तीफा देकर चुनाव लड़ेंगे। ऐसा ही खेल भाजपा ने मध्य प्रदेश में खेला था। पता नही अब चाणक्य क्या कर रहे हैं।
मोदी जी के लिए योगी भी समस्या बने हुए हैं। दो दिन दिल्ली रहे पर मोदी से दिल से नहीं मिले। शिष्टाचार में मिल। जिसका मतलब होता है कि बस मिल लिए। रही बात मार्गदर्शन की तो राजनीति में सब अपने-अपने दर्शन से मार्ग बनाते हैं।
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योगी जी भी पुराने खिलाड़ी है। अपनी शर्तों पर चुनाव में जायेंगे और आरएसएस उनके साथ। फिर डरने की क्या बात है। ड्रामा अभी खत्म नहीं हुआ है। फिलहाल जिला परिषद के चुनाव के नाम पर योगी कुछ नही करेंगे। मंत्री परिषद का विस्तार भी इसी दांव से टाल सकते है। टालने में तो योगी जी माहिर है। मोदी, अमित शाह और नड्डा से मिलना महीनों टाले। मंत्रिपरिषद का विस्तार टाले रहे। विधायकों से मिलना टाले रहे।
दरअसल उन्हें मालूम है कि वह मोदी जी की आंख में खटक रहे हैं। यह खटका तो था ही, पर बंगाल में मात खाई भाजपा उन्हें हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती।अगर चुनाव जीत गए तो फिर मोदी की नींद गायब हो सकती है। फिर योगी आडवाणी टाइप पटकथा लिखने की कोशिश कर सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)