जुबिली न्यूज ब्यूरो
यूपी और राजस्थान के कई विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे प्रख्यात शिक्षाविद प्रो अशोक कुमार के एक खुलासे के बाद यूपी के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
प्रो अशोक कुमार ने यूपी की गवर्नर को लिखे एक पत्र में कुलपतियों की नियुक्ति में नियमो की अनदेखी का बिंदुवार विवरण दिया है।
3 मार्च 2022 को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी अपने जजमेंट में कुलपतियों की नियुक्ति में यूजीसी एक्ट का पालन कराए जाने की अनिवार्यता तय कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यूपी के कुलपतियों की नियुक्ति को असंवैधानिक बताया जा रहा है।
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दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि एवं कानपुर विवि के कुलपति रह चुके प्रोफेसर अशोक कुमार ने प्रदेश के राज्यपाल को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराते हुए कुलपतियों की नियुक्ति में यूजीसी एक्ट के वॉयलेशन की जांच की मांग की है।
प्रो.अशोक कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश मे कुलपति की नियुक्ति के लिए यूजीसी के नियम नहीं लागू हैं। ऐसे में सभी कुलपतियों की नियुक्ति असंवधानिक है। इस विषय पर गंभीरता से विचार होना चाहिए और कुलपति की नियुक्ति के लिए यूजीसी के नियमो का पालन करना चाहिए।
यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को लिखे गए अपने पत्र में पूर्व कुलपति ने कहा कि यूपी के राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति के लिए कोई विशिष्ट नियम और विनियम नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय दिनांक 3 मार्च 2022, रिट याचिका (सिविल) संख्या 1525 0f 2019, के अनुसार कुलपति की नियुक्ति के लिए यूजीसी के दिशा-निर्देशों को लागू करने की आवश्यकता है।
प्रो अशोक कुमार का कहना है कि विश्वविद्यालय के कुलपति का पद एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है। एक लीडर और संस्था के प्रमुख होने के नाते, विश्वविद्यालय के कुलपति को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। अकादमिक योग्यताएं, प्रशासनिक अनुभव, अनुसंधान प्रमाण-पत्र और ट्रैक रिकॉर्ड एक कुलपति का होना चाहिए।
प्रो. कुमार ने कहा, कुलपति, विश्वविद्यालय के साथ-साथ छात्रों की बेहतरी के प्रति अपने आचरण में एक स्पष्टता बनाए रखता है। एक कुलपति ऐसा होना चाहिए जो छात्रों को प्रेरित कर सके और विश्वविद्यालय प्रणाली में उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षकों के प्रवेश की गारंटी दे सके। कुलपति एक विश्वविद्यालय के कार्यकारी और अकादमिक विंग के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है क्योंकि वह एक ‘शिक्षक’ और ‘प्रशासक’ दोनों का प्रमुख होता है।
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कुलपति चयन के यह है नियम…
2010 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कुलपति के पद से संबंधित विनियमन 7.3.0 का गठन किया जो इस प्रकार है:
उच्चतम स्तर की योग्यता, सत्यनिष्ठा, नैतिकता और संस्थागत प्रतिबद्धता वाले व्यक्ति को कुलपति के रूप में नियुक्त किया जाना है। नियुक्त किए जाने वाले कुलपति को एक विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के रूप में कम से कम दस वर्षों के अनुभव के साथ प्रतिष्ठित अनुसंधान और / अकादमिक संगठन में एक समकक्ष स्थिति में अनुभव के साथ कम से कम दस वर्षों का अनुभव होना चाहिए।
कुलपति के चयन में राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के संबंध में, खोज समिति का गठन के नियम…
• आगंतुक / कुलाधिपति का एक व्यक्ति, जो समिति का अध्यक्ष होना चाहिए।
• अध्यक्ष, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का एक नामित।
• विश्वविद्यालय के सिंडिकेट/कार्यकारी परिषद/बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट का एक नामित।
• आगंतुक/कुलपति कुलपति को खोज समिति द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल में से नियुक्त करेंगे।
• इन विनियमों के अनुरूप संबंधित विश्वविद्यालयों की विधियों में कुलपति की सेवा की शर्तें निर्धारित की जाएंगी।
• कुलपति की पदावधि संबंधित पदधारी की सेवा अवधि का हिस्सा होगी जो उसे सेवा संबंधी सभी लाभों के लिए पात्र बनाती है।