सुरेंद्र दुबे
पूरा देश इस समय कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहा है। भारत इस समय कोरोना वायरस के दूसरे दौर से गुजर रहा है। तीसरा दौर सबसे खतरनाक होता है, जब यह वायरस कम्युनिटी स्प्रेड के मोड में आ जाता है। यही इसका सबसे खतरनाक दौर होता है। क्योंकि तब यह वायरस मोहल्ले के मोहल्ले अपनी चपेट में लेना शुरु कर देता है। विश्व के तमाम देश जैसे फ्रांस, इटली, स्पेन और ईरान आदि कोरोना वायरस की थर्ड स्टेज से ही गुजर रहे हैं, जिसके कारण इटली में एक दिन में 475 लोगों की मौत हो गई। अब यह वायरस मध्य पूर्व में सक्रिय हो रहा है जिस वजह से भारत के लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है।
कल इस चिंता के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रात आठ बजे देश को संबोधित कर कोरोना की भयावहता के प्रति जनता को आगाह करते हुए मुख्य रूप से सोशल डिस्टेंसिंग की अपील की। इसी क्रम में उन्होंने आगामी रविवार 22 मार्च को पूरे देश में सुबह सात से रात 9 बजे तक जनता कर्फ्यू लगाये जाने की अपील की। यानी इस दौरान इमरजेंसी सेवा के लोगों को छोड़कर सभी लोग अपने घरों में रहें। मोदी ने एक और महत्वपूर्ण आह्वान किया कि रविवार को ही सारे देशवासी शाम पांच बजे पांच मिनट के लिए अपने-अपने घरों से तालियां बजाकर स्वास्थ्य सेवा में लगे कर्मियों के साहस व सेवाभाव की तारीफ कर उनकी हौसला अफजाई करें। नरेन्द्र मोदी ने निजी क्षेत्र के सेवायोजकों से भी यह अपील की कि कोरोना से पीडि़त या बंदी के कारण काम पर न आने वाले कर्मचारियों का वेतन न काटा जाए।
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प्रधानमंत्री का पूरा भाषण कल जनता से सहयोग मांगने पर ही केंद्रित रहा। सरकार की ओर से सिर्फ इतना आश्वासन दिया गया कि आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई निरंतर जारी रहेगी, इसलिए लोग पैनिक बाइंग न करें। शायद प्रधानमंत्री को ये पता न हो कि पूरे देश में एक हफ्ते पहले से ही पैनिक बाइंग हो रही है, इसलिए आवश्यक वस्तुओं के दाम 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। सैनिटाइजर जिसे कोरोना वायरस को दूर करने का बम समझा जा रहा है उसमें जमकर कालाबाजारी हो रही है। पिछले एक हफ्ते से पूरे देश में सेमी लॉक डाउन की स्थिति चल रही है। इसलिए आवश्यक वस्तुओं की किल्लत भी बढ़ती जा रही है। परंतु यह कारण कोरोना के इस भयावह माहौल में बहुत महत्व नहीं रखता है।
सेमी लॉक डाउन, जो धीरे-धीरे पूर्ण एैच्छिक लॉक डाउन में परिवर्तित होता जा रहा है उससे इस देश के करोड़ों लोगों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। रिक्शावाला, ठेलावाला, ऑटोवाला तथा रेस्टोरेंट्स में काम करने वाले लाखों कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। जब लोग घरों से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं तो इनकी रोजी-रोटी की व्यवस्था कैसे होगी। प्रधानमंत्री ने अपने को प्रधान सेवक कहलाना पसंद करते हैं, उन्होंने देश के करोड़ो सेवकों के बारे में अपने मुंह से एक भी शब्द नहीं कहा। इनकी रोजी-रोटी के लिए क्या सरकार, सरकारी खजाने से कोई व्यवस्था करेगी। ऐसी कोई घोषणा नहीं की गई है।
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रोज कमाने और खाने वाले इस तरह के करोड़ो लोग आज ऐसे दुराहे पर हैं जहां एक तरफ कोरोना उन्हें डरा रहा है और दूसरी ओर भूख सता रही है। जो लोग रेस्टोरेंट व छोटे-मोटे उद्योगों में काम करते हैं वे एक तरह से बेरोजगार हो गए हैं। प्रधानमंत्री ने इनके मालिकों से उम्मीद की है कि इनका वेतन न काटा जाए, पर सरकार ने इन्हें आर्थिक मदद देने के लिए कोई घोषणा नहीं की है। सबसे ज्यादा प्रचार-प्रसार हाथ धोने के लिए सैनिटाइजर या साबुन के प्रयोग का किया गया है, पर सरकार शायद यह भूल गई कि इस देश में करोड़ो लोग ऐसे हैं जो नियमित रूप से नहाने के लिए साबुन के लिए तरसते हैं। सरकार कम से कम सार्वजनिक स्थलों पर गरीबों के लिए सैनिटाइजर की व्यवस्था तो कर ही सकती थी, पर सरकार ने इस समस्या से भी हाथ धो लिया।
सबसे ज्यादा शोर जनता कर्फ्यू को लेकर है। जिसके सफल होने में किसी को कोई शंका नहीं है। लोग इतना डरे हुए है कि रविवार को घर में ही घुसे रहने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होगा। शाम को पांच बजे तालियां व शंख घडिय़ाल बजाकर स्वाथ्यकर्मियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन में भी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेंगे। पर इन तालियों की गड़ग़ड़ाहट के बीच उन भूखे नंगे लोगों के लिए थालियों की व्यवस्था कौन करेगा, क्योंकि सरकार ने कम्युनिटी किचन की व्यवस्था नहीं की है। हो सकता है कुछ सामाजिक संगठन भूखे लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था आने वाले दिनों में करें, पर इससे फिर भीड़ इकट्ठा होने का संकट खड़ा हो जायेगा जो कोरोना को बढ़ाने में मददगार साबित हो सकता है। सरकार को इस तरह के लोगों के लिए मुफ्त राशन या इस एवज में आर्थिक मदद इन लोगों के पास पहुंचानी चाहिए। हम तालियां जरूर बजाए पर उनकी ध्वनि ऐसी न हो जो भूखे-नंगे लोगों के भूख को और बढ़ा दें। पूरे देश को कोरोना से लड़ना है तो जाहिर है हर वर्ग की दिक्कतों को ध्यान रखकर कोरोना के खिलाफ संघर्ष जारी रखना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख में उनके निजी विचार हैं)
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