न्यूज डेस्क
कर्नाटक के बीदर के एक स्कूल के खिलाफ 26 जनवरी को राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। राजद्रोह का मामला स्कूल के बच्चों द्वारा नागरिकता संसोधन कानून (सीएए) के खिलाफ एक नाटक का मंचन किए जाने की वजह से हुआ था। स्कूल पर आरोप लगा था कि इस नाटक से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि धूमिल हुई थी। फिलहाल इस मामले में कोर्ट ने स्कूल प्रबंधन को राहत दी है।
कर्नाटक के बीदर की एक जिला अदालत ने तीन मार्च को नागरिकता संसोधन कानून के विरोध में नाटक करने को लेकर दर्ज हुए राजद्रोह के मामले में शाहीन स्कूल के प्रबंधक सहित कई लोगों को अग्रिम जमानत दे दी है।
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा है कि प्रथमदृष्टया राजद्रोह का मामला नहीं बनता है और इसे लेकर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है। जनप्रतिनिधियों को यह कहते हुए कोर्ट ने अग्रिम जमानत दी कि सीएए के खिलाफ स्कूल के बच्चों द्वारा किया गया नाटक समाज में किसी भी तरह की हिंसा या असामंजस्य पैदा नहीं करता।
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जिला अदालत न्यायाधीश एम. प्रेमवती ने अपने आदेश में कहा, ‘बच्चों ने केवल यह अभिव्यक्त किया है कि अगर वे कागज नहीं दिखाते तो उन्हें देश छोडऩा होगा। इसके अलावा इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है कि उन्होंने राजद्रोह जैसा कोई अपराध किया हो।’
कोर्ट ने शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के अध्यक्ष अब्दुल कादिर (60) और स्कूल को हेडमास्टर अलाउद्दीन (40) और स्कूल प्रबंधन समिति के तीन सदस्यों को दो-दो लाख रुपये के निजी बांड के साथ जमानत दी।
इसके अलावा सोशल मीडिया अकाउंट पर नाटक प्रसारित करने वाले स्थानीय पत्रकार मोहम्मद यूसुफ रहीम को भी अग्रिम जमानत दी गई है।
यह मामला 26 जनवरी को बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ता नीलेश रक्षयाल की शिकायत पर दर्ज किया गया था, जिन्होंने रहीम के सोशल मीडिया अकाउंट से ये नाटक देखा था।
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अदालत ने तीन मार्च को राजद्रोह के मामले के सभी आरोपियों को जमानत दे दी। इससे पहले शाहीन प्राइमरी और हाई स्कूल की संचालिका फरीदा बेगम और एक छात्र की मां नजबुन्निसा को जमानत दे दी गई थी।
जिला प्रमुख और सत्र न्यायाधीश ने नजबुन्निसा और फरीदा बेगम को एक लाख रुपये के निजी बांड पर जमानत दी गई थी।
अपने आदेश में जिला न्यायाधीश प्रेमवती ने कहा, ‘जानकारी और अन्य अभिलेखों के सावधानीपूर्वक अवलोकन पर पाया गया है कि कलाकारों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है और उन्होंने प्रधानमंत्री के खिलाफ चप्पल का इस्तेमाल किया है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह पाया गया है कि नाटक के माध्यम से उन्होंने सीएए और एनआरसी के खिलाफ विरोध किया था और नाटक स्कूल के समारोह में आयोजित किया था लेकिन संवाद अगर पूरी तरह से पढ़ा जाए तो कहीं भी सरकार के खिलाफ राजद्रोह का कोई मुकदमा नहीं बनता।
अदालत ने यह भी कहा कि अगर केवल अभियोजन द्वारा निकाला हुआ हिस्सा देखें तो वह आपत्तिजनक है, ‘लेकिन अगर डायलॉग को पूरा पढ़ा जाये तो तो कहीं भी सरकार के खिलाफ नहीं है और प्रथमदृष्टया आईपीसी की धारा 124 ए के तहत राजद्रोह नहीं हैं।’
यायाधीश प्रेमवती ने कहा, ‘मेरे विचार से यह डायलॉग नफरत, अवमानना और सरकार के प्रति कोई असहमति प्रकट नहीं करता।’ उन्होंने आगे कहा कि देशभर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ और समर्थन में रैली और प्रदर्शन हो रहे हैं और हर नागरिक को कानून के दायरे में रहते हुए सरकार के तरीकों पर असहमति जताने का अधिकार है।
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