न्यूज डेस्क
जब भी वीर सावरकर को लेकर बीजेपी कोई ऐलान करती है तो कांग्रेस उसके विरोध में उतर जाती है। कांग्रेस सावरकर को देशभक्त नहीं मानती। उसका कहना है कि उन्होंने जेल से बाहर निकलने के लिए अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिया था। फिलहाल इसको लेकर संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय ने बीते मंगलवार को संसद को बताया कि अंडमान प्रशासन के पास विनायक दामोदर सावरकर की दया याचिकाओं का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
पिछले कुछ महीने से वीर सावरकर चर्चा में बने हुए हैं। सावरकर के नाम पर राजनीतिक दल खूब राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस सावरकर का विरोध कर राजनीति करती है तो वहीं बीजेपी उनको देशभक्त बताकर। कुल मिलाकर कोई विरोध कर राजनीति चमका रहा है तो कोई समर्थन कर।
राज्यसभा में संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के कला और संस्कृति विभाग के पास सावरकर की दया याचिकाओं का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
अंडमान सेल्युलर जेल के ‘लाइट एंड साउंड शो’ में सावरकर द्वारा अंग्रेजों को लिखी गई दया याचिकाओं का कोई उल्लेख न होने के बारे में पूछे गए प्रश्न के लिखित जवाब में पटेल ने इस संबंध में रिकॉर्ड न होने की बात कही।
संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री ने बताया, ‘अंडमान एवं निकोबार प्रशासन (कला एवं संस्कृति निदेशालय) से प्राप्त सूचना के अनुसार, सेल्युलर जेल के लाइट एंड साउंड शो में ऐसी दया याचिकाओं का उल्लेख नहीं किया गया है क्योंकि अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के कला और संस्कृति विभाग के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
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उल्लेखनीय है कि नाथूराम गोडसे ने 1948 में महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। पूरे महाद्वीप को हिला देने वाली इस हत्या के आठ आरोपी थे, जिनमें से एक नाम सावरकर का भी था। हालांकि, उनके खिलाफ यह आरोप साबित नहीं हो सका और वे बरी हो गए।
सावरकर 1910-11 तक क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल थे। वे पकड़े गए और 1911 में उन्हें अंडमान की कुख्यात सेल्युलर जेल में डाल दिया गया। उन्हें 50 वर्ष की सजा हुई थी, लेकिन सजा शुरू होने के कुछ महीनों में ही सावरकर ने अंग्रेज सरकार के समक्ष दया याचिका डाली कि उन्हें रिहा कर दिया जाए।
इसके बाद उन्होंने कई याचिकाएं लगाईं। अपनी याचिका में उन्होंने अंग्रेजों से यह वादा करते हुए कहा था यदि मुझे छोड़ दिया जाए तो मैं भारत के स्वतंत्रता संग्राम से ख़ुद को अलग कर लूंगा और ब्रिटिश सरकार के प्रति अपनी वफ़ादारी निभाऊंगा।
अंडमान जेल से छूटने के बाद सावरकर ने यह वादा निभाया भी और कभी किसी क्रांतिकारी गतिविधि में न शामिल हुए, न पकड़े गए।
सावरकर ने 191& में एक याचिका दाखिल की जिसमें उन्होंने अपने साथ हो रहे तमाम सलूक का जिक्र किया और अंत में लिखा था, हुजूर, मैं आपको फिर से याद दिलाना चाहता हूं कि आप दयालुता दिखाते हुए सजा माफी की, मेरी 1911 में भेजी गई याचिका पर पुनर्विचार करें और इसे भारत सरकार को फॉरवर्ड करने की अनुशंसा करें। भारतीय राजनीति के ताजा घटनाक्रमों और सबको साथ लेकर चलने की सरकार की नीतियों ने संविधानवादी रास्ते को एक बार फिर खोल दिया है। अब भारत और मानवता की भलाई चाहने वाला कोई भी व्यक्ति, अंधा होकर उन कांटों से भरी राहों पर नहीं चलेगा, जैसा कि 1906-07 की नाउम्मीदी और उत्तेजना से भरे वातावरण ने हमें शांति और तरक्की के रास्ते से भटका दिया था।
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