सुरेंद्र दुबे
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में लगभग तीन महीने से पूरे देश में शाहीन बाग जैसे प्रदर्शन चल रहे हैं। इन प्रदर्शनों की बागडोर महिलाओं के हाथ में है, इसलिए सरकार शक्ति प्रदर्शन से बच रही है। पर सत्ता प्रदर्शन तो चल ही रहा है। सत्ता पक्ष का कोई भी प्रतिनिधि आज तक बातचीत के लिए किसी भी शाहीन बाग नहीं पहुंचा।
सरकार की जिद्द है कि सीएए वापस नहीं लेंगे और प्रदर्शनकारी इस जिद्द पर अड़े हैं कि जब तक कानून वापस नहीं होगा उनका आंदोलन जारी रहेगा। दोनों पक्षों की जिद्द में दिल्ली में बड़े पैमाने पर दंगे हो गए पर समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है।
संसद में दो दिन गृहमंत्री अमित शाह ने आंदोलन की तपिश को खत्म करने के लिए आश्वासन दिया कि एनपीआर के तहत दी जाने वाली जानकारी के समर्थन में लोगों को कोई कागजात नहीं देने होंगे। ये भी आश्वासन दिया की वर्ष 2010 में हुए एनपीआर में मांगी गई जानकारियों के अतिरिक्त नए एनपीआर में जो भी जानकारियां मांगी जाएंगी उनका उत्तर देना जरूरी नहीं होगा।
वह यह पहले ही कह चुकें हैं कि एनआरसी लाने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है। सरकार का इरादा इस तरह के आश्वासनों के जरिए शाहीन बाग जैसे आंदोलन खत्म कराना रहा होगा परंतु ऐसा कुछ होता दिखता नहीं है। लोग अभी सरकार पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। एक बड़े वर्ग को लगता है कि सरकार आगे पीछे उनकी नागरिकता छीन कर डिटेंशन सेंटर में भेजने का षड्यंत्र रच रही है।
पिछले कई महीनों से कई कांग्रेस शासित सरकारें एनपीआर और एनआरसी लागू न करने के लिए अपनी-अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कर चुकी हैं। हाल में बिहार की नीतीश सरकार भी ऐसा कानून पारित कर चुकी है, जहां भाजपा भी सत्ता में शामिल है। सीएए के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लंबित है। कहने को यह एक केंद्रीय कानून है इसलिए राज्य सरकारें इसे लागू करने से इंकार नहीं कर सकती हैं।
पर सवाल ये उठता है इस कानून को लागू करने के लिए सरकारी अमला तो राज्य सरकारों का ही होगा। तो फिर केंद्र सरकार इसे जबरन कैसे लागू कराएगी। जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं उन राज्यों में यह विवाद और बढ़ेगा। यानी कि शाहीन बाग अब लोगों के घर के बाहर भी पहुंच सकता है।
एक चर्चा डिटेंशन सेंटर को लेकर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो यहां तक कह चुके हैं कि देश में कहीं भी डिटेंशन सेंटर ही नहीं है। उनके झूठ के पर्दाफाश करने के लिए असम में चल रहे तमाम डिटेंशन सेंटर की तस्वीरें अखबारों में छप चुकी हैं।
आइए ये समझने की कोशिश करते हैं कि गृह मंत्री की सफाई का शाहीन बाग पर कोई असर पड़ेगा या नहीं। अमित शाह कहते हैं कि एनपीआर में मांगी जाने वाली अतिरिक्त जानकारियों के लिए कोई कागजात नहीं देने होंगे। अब अगर जानकारियों के संबंध में कोई प्रमाण ही नहीं देना है तो ऐसी जानकारियां मांगी ही क्यों जा रहीं हैं। इस तरह की अपुष्ट जानकारियों से कौन सा डेटा बैंक बनेगा, जिसका देश के विकास में उपयोग होना है। ये कहने का भी क्या मतलब है कि मांगी जाने वाली अतिरिक्त जानकारियों का जवाब देना जरूरी नहीं है।
अब फिर वही सवाल। जब जवाब देना जरूरी ही नहीं है तो फिर सवाल पूछा ही क्यों जा रहा है। और सबसे अहम बात है नागरिकता रजिस्टर की, जिसके बारे में सरकार कहती है कि फिलहाल वह इसे लागू करने नहीं जा रही है। जाहिर है यह नहीं कहा जा रहा है कि एनआरसी कभी नहीं आएगा। गोल मोल जवाब के कारण ही लोगों में सरकार के प्रति संदेह बना हुआ है।
कोई भी कानून लिखा पढ़ी में ही होता है। संसद या लोगों के बीच दिए गए आश्वासन कभी कानून नहीं माने जाते। अगर सरकार कह रही है कि एनपीआर में किसी तरह के दस्तावेज नहीं देने होंगे तो ऐसा उसे लिखित रूप में कानून में शामिल करना होगा। तभी इसकी कानून वैधता होगी।
वर्ना दरवाजे पर पहुंचा सरकारी अमला अमित शाह के आश्वासन के आधार पर एनपीआर का प्रोफार्मा नहीं भरेगा। सरकार को यह भी लिखित रूप में प्रोफार्मा में शामिल करना पड़ेगा कि किन-किन सवालों का जवाब देना अनिवार्य नहीं है। सिर्फ जुबानी जमा खर्च से काम नहीं चलेगा।
तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु है मांगी गई जानकारी न देने वाले को डाउटफुल श्रेणी में रखें जाने का प्रावधान। अगर सरकार का इरादा किसी भी नागरिक को डाउटफुल मानने का नहीं है तो इसे भी उसे लिखित रूप में शामिल करना होगा। सरकार इन सारे बिंदुओं पर मौखिक आश्वासन देकर शाहीन बाग जैसे आंदोलन समाप्त कराना चाहती है, जिससे आंदोलनकारियों का शक और बढ़ गया है।
अगर सरकार सही मायने में अपनी कथनी को अपनी करनी में बदलना चाहती है तो उसे हर आश्वासन को कानूनी प्रावधानों में समाहित कर आंदोलनकारियों का विश्वास जीतना चाहिए। अन्यथा सरकार के प्रति अविश्वास बना रहेगा और शाहीन बाग अपनी जगह पर आंदोलन करता रहेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)
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(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।)