जुबिली न्यूज़ डेस्क
कोरोना काल के बीच दुनियाभर में कई देश आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। इस बीच उन देशों के लिए एक अच्छी खबर है जो तेल का आयात करते हैं। दरअसल दुनिया की प्रमुख मुद्राओं की तुलना में अमेरिकी डॉलर कमजोर हुआ है। इस वजह से कच्चा तेल अब सस्ता मिल रहा है।
अमेरिका की एनर्जी इन्फ़र्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन यानी ईआए ने दावा किया है कि डॉलर के कमजोर होने का सीधा फायदा बड़ी मात्रा में तेल खरीदने वाले देशों को पड़ेगा। क्योंकि कच्चे तेल का कारोबार अमेरिकी डॉलर में ही होता है। इसी लिए उन देशों को तेल सस्ता पड़ रहा है जिनकी मुद्रा डॉलर के मुक़ाबले कहीं न कहीं मज़बूत हुई है।
अमेरिकी एजेंसी का कहना है कि भारत-चीन जैसे एशियाई देशों के अलावा यूरोज़ोन के देशों को भी इसका सीधा लाभ मिलेगा। इनमें बहुत से देश ऐसे हैं जो कच्चा तेल आयात करते हैं। एक जून से 12 अगस्त के बीच ब्रेंट क्रूड ऑयल के दामों में 19 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। ईआईए के अनुमान के अनुसार डॉलर के मुक़ाबले यूरो की क़ीमत बढ़ने से ये बढ़ोतरी 12 फ़ीसदी ही हुई है।
पिछले कुछ महीनों से ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम और डॉलर के दाम विरोधी दिशाओं में बढ़ रहे हैं। एक तरफ ब्रेंट क्रूड ऑयल के दाम बढ़ रहे है, तो वहीं वैश्विक मुद्राओं के मुक़ाबले डॉलर कमज़ोर पड़ रहा है। हाल के सप्ताह में महामारी के असर की वजह से क्रूड ऑयल की वैश्विक मांग कम होने का अनुमान लगाया गया है, लेकिन कमज़ोर हो रहे डॉलर ने तेल के दामों का समर्थन ही किया है।
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हालांकि अमेरिकी एजेंसी की तरफ से ये उम्मीद जताई गई है कि इन देशों की सरकारें भी तेल की कीमतें कम कर आर्थिक बदहाली झेल रह लोगों को कुछ राहत दे सकती हैं।अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने का ये मतलब है कि तेल ख़रीदने वाले देशों को तेल सस्ता पड़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार 7 अगस्त तक के सप्ताह में 45 लाख बैरल क्रूड ऑयल निकाला गया है।
इसके अलावा 7 लाख बैरल गैसोलीन और 23 लाख बैरल डिस्टिलेट फ्यूल सूची से कम हुआ है। इससे तेल के दाम बढे हैं। तेल की इस कमी से तेल के दाम कुछ ऊंचे हुए थे। लेकिन इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी और ओपेक ने इस साल के लिए तेल की खपत के अपने अनुमान को कम किया है। और स्वीकारा है कि महामारी पर वैश्विक असर अनुमान से कहीं ज़्यादा पड़ेगा।