सुरेंद्र दुबे
एक पुरानी कहावत है- ‘जबरा मारे रोवे न दे’। इस दुनिया के सबसे बड़े रंगबाज या कहें तो दादा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कल अपने संबोधन में ईरान को जहां एक ओर थम जाने की नसीहत दी।
वहीं यह भी धमकी दी कि अगर उसने अमेरिकी ठिकानों पर फिर से हमला करने की हिमाकत की तो उसे मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा, जिसके तहत ऐसे आर्थिक प्रतिबंध लगाए जाएंगे जिनके बारे में उसने सोचा भी न होगा।
ट्रंप ने व्हाइट हाउस से अपने संबोधन में ईरान को सबसे बड़ी धमकी यह दी कि अब ईरान को परमाणु हथियार नहीं बनाने दिया जाएगा। परमाणु हथियार बनाने से अमेरिका कैसे ईरान को रोकेगा इसका खुलासा तो उन्होंने नहीं किया पर पूरी दुनिया यह धमकी सुन कर सन्न रह गई। आइए अब उनकी पूरी धमकावली का अवलोकन करते हैं।
अगर ट्रंप नहीं होते और उनकी जगह पर कोई और नेता अमेरिका का राष्ट्रपति होता तो उसकी भी भाषा यही होती। अमेरिका इस समय दुनिया का सबसे शक्तिशाली व आर्थिक दृष्टि से संपन्न राष्ट्र है। रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी कोई भी उससे टकराने की जुर्रत नहीं कर सकता।
अमेरिका पूरी दुनिया का अकेला दादा है जो अपनी मनमानी कर लेता है और चीन जैसे छोटे-मोटे दादाओं को भी अपनी बात मानने के लिए मजबूर कर देता है।
कल भी ट्रंप ने यही किया। पहले तो उन्होंने यह कह कर अपनी पीठ ठोंकी कि ईरान द्वारा इराक स्थित अमेरिकी सैन्य बेस पर किए गए मिसाइल हमलों में अमेरिका का कोई भी सैनिक या नागरिक नहीं मारा गया है, जबकि ईरान ने दावा किया था कि उसके द्वारा किए गए मिसाइल हमलों में 80 अमेरिकी मारे गए हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप ने कल दिनभर अपने सहयोगियों से पूरी स्थिति का जायजा लिया और उसके बाद प्रेस के सामने आकर ईरान को यह कह कर चिढ़ा दिया कि उसके हमलों से अमेरिका को कोई क्षति नहीं पहुंची। अभी तक ईरान ने अमेरिका के इस दावे का खंडन नहीं किया है, इसलिए यह मानना ही पड़ेगा कि अमेरिकी सैनिक ईरानी मिसाइलों के हमलों में साफ-साफ बच गए।
कुल 22 मिसाइलें ईरान ने दागी थी, इसके बावजूद अमेरिकी प्रतिष्ठान को कोई क्षति नहीं हुई तो ये सवाल उठता है कि क्या ये मिसाइलें सिर्फ अमेरिका को धमकाने भर के लिए दागी गई थी।
क्या ईरान ने एक जवाबी हमला कर अपने देशवासियों को यह दिखा कर अपने गुस्से का इजहार कर दिया कि देखो हमने भी अमेरिकी ठिकाने पर हमला कर दिया। हमे तो ऐसा लगता है कि अमेरिकी और ईरान दोनों संभावित तीसरे विश्व युद्ध की आशंका से भयभीत हैं इसलिए लड़ने से कतराएंगे। यदाकदा लड़ने का करतब करते दिखेंगे।
गत 3 जनवरी को ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी की अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश पर बगदाद में हत्या कर दी गई थी। तब ईरान ने अमेरिका को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी, जिससे पूरी दुनिया ने तीसरे महायुद्ध की आशंकाओं की माला जपना शुरू कर दी थी। पर इतनी बड़ी घटना के बावजूद दुनिया के किसी मुल्क ने न तो ट्रंप की निंदा की और न ही ईरान के सबसे बड़े नेता अयातुल्ला खुमैनी के आंख के आंसू पोछने की कोशिश की।
और तो और हमारे देश के इलेक्ट्रानिक मीडिया ने भी कोई आलोचना करने की हिम्मत नहीं दिखाई। अगर इस मामले में पाकिस्तान रहा होता तो हमारे इलेक्ट्रानिक मीडिया के तमाम एंकर चीख-चीख कर पाकिस्तान की नाक में दम कर चुके होते। पर जबरा से कोई नहीं लड़ता।
वरना किसी भी कारण से सही, राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश पर कासिम सुलेमानी की हत्या पर सवाल तो उठाए ही जाने चाहिए थे। आज जब हम दिनभर सवाल उठाए जाने के हक की ही लड़ाई लड़ रहे हैं तब ऐसे में इस तरह की निंदनीय घटना की निंदा न किया जाना अपने आप में निंदनीय है।
राष्ट्रपति ट्रंप की दादागिरी देखिए कि एक ओर वह ईरान को सुधर जाने की सलाह दे रहे हैं तो दूसरी ओर पुन: हमलों की हिमाकत करने पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दे रहे हैं। उन्होंने चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी को सलाह दे दी कि वे ईरान के मामले में अमेरिका के पिछलग्गू बन जाएं।
ट्रंप ने यह भी बता दिया कि तेल के मामले में अमेरिका अब आत्मनिर्भर हो गया है। उसे मध्य एशिया के तेल की बहुत जरूरत नहीं है। अमेरिका की आर्थिक समृद्धि दुनिया में पहले पायदान पर है और उसकी युद्ध लड़ने की क्षमता को कोई भी देश चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। पूरी दुनिया में ट्रंप की इस घोषणा के बाद सन्नाटा छाया हुआ है।
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