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बिहार चुनाव: चुनावी दल-दल में गठबंधन का मेला

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए बिगुल बज चुका है। इसके साथ ही राजनीति का शतरंज बिछ चुका है और सभी दलों ने अपना दांव खेलना शुरू कर दिया है। कोरोना वायरस महामारी के बीच पहली बार किसी राज्‍य में मतदान होने जा रहा है। चुनाव आयोग इस बार चुनाव के लिए कई खास इंतजाम किए हैं ताकि मतदाताओं और मतदानकर्मियों को वायरस से बचाते हुए लोकतंत्र के इस पर्व को मनाया जा सके।

बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के वजह से दूसरे राज्‍यों से लौटे मजदूरों की वजह से वोटरों की संख्‍या भी बढ़ी है। इन वोटरों के साथ-साथ इस बार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों और राजनीतिक दलों की संख्‍या में काफी इजाफा हुआ है। जानकारी के अनुसार, बिहार में अभी तक मान्यता प्राप्त 12 राजनीतिक दल हैं।

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बिहार में मुख्‍य तीन जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी हैं। इन्‍हीं के इर्द-गिर्द बिहार की सियासत घुमती है। जो दो दल मिलकर गठबंधन कर लेते हैं उनके पास सत्‍ता की चाबी होती है। इनके अलावा अन्‍य छोटे दल भी है लेकिन वो सहायक की भूमिका में होते हैं। जिसकी सरकार बनने वाली होती है आमतौर छोटे दल उसी तरफ हो लेते हैं।

वैसे देखा जाए तो दो ही प्रमुख गठबंधन नजर आ रहे हैं एक बीजेपी-जदयू का एनडीए, जिसमें बीजेपी के साथ पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी है तो जेडीयू के साथ मांझी की हम पार्टी। दूसरी तरफ राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाला महागठबंधन है, जिसमें कांग्रेस और वामदल हैं। मगर बिहार में गठबंधन की कहानी यहीं खत्म नहीं हो रही है। कुछ ऐसे गठबंधन भी मैदान में हैं जो दो बड़े गठबंधनों का खेल कई सीटों पर बिगाड़ सकते हैं।

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2015 में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने गठबंधन किया था तब आरजेडी और जेडीयू के साथ वाली महागठबंधन की सरकार बनी थी। लेकिन बाद में नीतीश ने आरजेडी से गठबंधन तोड़ बीजेपी से नाता जोड़ लिया और एनडीए की सरकार बना ली।

69 वर्ष के हो चुके नीतीश कुमार पिछले 15 साल से बिहार की सत्‍ता पर काबिज हैं। इस बार भी एनडीए उनके ही नेतृत्‍व में चुनाव लड़ रही है। हालां‍कि नीतीश कुमार की राह इस बार आसान नहीं होने वाली है। सत्‍ता विरोधी लहर, भ्रष्‍टाचार के आरोप, लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्‍यों से लौटे मजदूरों की नाराजगी कई ऐसे फैक्‍टर हैं जिसमें सुशासन बाबू घिरते नजर आ रहे हैं।

इसी का नतीजा है कि बिहार में नीतीश कुमार को रोकने के लिए एक दो नहीं बल्कि कई नए गठबंधन बन गए हैं। पहले एनडीए और फिर महागठबंधन से अगल हुए राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने किसी भी बड़े गठबंधन में जगह नहीं मिलते देख यूपी की पूर्व मुख्‍यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की अध्‍यक्ष मायावती से गठबंधन कर लिया है।

Bihar chunav 2020: Kushwaha + Mayawati ka gathbandhan bihar me nitish kumar aur tejshvi yadav ko kitna nukshan karega Bihar chunav 2020: कुशवाहा+मायावती की जोड़ी में कितना दम, दलित+कुशवाहा वोटबैंक से कर

कुशवाहा वोटरों में अच्‍छी पैठ रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा मायावती के साथ गठबंधन कर बिहार में पिछड़ों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि जिस प्रकार राजनीतिक गलियारों में मायावती पर बीजेपी का साथ देने का आरोप लग रहे थे।

ऐसे में कुशवाहा और मायावती गठबंधन किसका फायदा और किसका नुकसान करेंगे ये तो वक्‍त ही बताएगा। यदि राजनैतिक गॉसिप को माना जाए तो बीजेपी ने यह गठबंधन कराया है, जिसमें बीएसपी नेतृत्व की भी मूक सहमति रही।

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सवाल उठता है कि क्या यह गठबंधन बीजेपी नेतृत्व के इशारे पर किया गया है? क्या यह इसलिए किया गया है कि नीतिश कुमार को थोडा कमजोर किया जाए? यह कहने की वजह भी है नीतिश कुमार की जाति कुर्मी और कुशवाहा की जाति कोईरी को, बिहार में लव कुश कहा जाता है।

बिहार में कुर्मी 5 फीसदी है तो कोईरी 7 फीसदी। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि बसपा के साथ कुशवाहा को इकट्ठा कर किसका नुकसान किया जा रहा है। बिहार में बीएसपी के पास करीब 3 फीसदी वोट है जो कुशवाहा के साथ मिलकर कई सीटों पर जेडीयू को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसको देखते हुए नीतीश कुमार ने भी एक चाल चल दी है। दलित वोटों को ध्यान में रखते हुए बिहार जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर दलित नेता अशोक चौधरी की नियुक्ति कर दी।

Outlook India Photo Gallery - Pappu Yadav

इनके अलावा कभी लालू यादव के करीबी रहे पूर्व सांसद और जन अधिकार पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष पप्पू यादव ने भीम आर्मी के साथ गठबंधन किया है। इस गठबंधन में बिहार पीपुल्स पार्टी बीएमपी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया एसडीपीआई भी शामिल हैं। इन गठबंधन को प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन नाम दिया गया है। इस गठबंधन का चेहरा पप्पू यादव रहेंगे।

पप्पू यादव ने बताया कि उनका गठबंधन विधानसभा चुनाव की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे। बात दें कि बिहार के बाहुबली नेताओं में शुमार राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बाढ़ और कोरोना संकट के समय जनता की मदद की थी। उनके प्रयासों को काफी सराहा गया था।

Owaisi forms separate anti-BJP front for Bihar polls

एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी बिहार में सियासी जमीन पाने के लिए समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ने का फैसला किया है। गठबंधन के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि हमने देवेंद्र प्रसाद यादव (समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक) के साथ एक एकजुट लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाया है। बिहार के लोग सीएम नीतीश कुमार से थक चुके हैं, वे एक व्यवहार्य विकल्प चाहते हैं जिसे हम उम्मीद के साथ प्रदान कर पाएंगे।

बिहार की एक और जाति आधारित पार्टी वीआईपी यानि विकाशसील इंसान पार्टी भी है जिसका अभी तक किसी से गठबंधन नहीं हुआ है। माना जा रहा है कि बीजेपी इसे एक-दो सीट देकर अपने पाले में कर सकती है। मतलब साफ है, बिहार में इस बार एक-एक जाति के एक-एक वोट का महत्व है और असली खेल शुरू होगा चुनाव के बाद।

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बीजेपी को भी लग गया है कि नीतीश कुमार का यह अंतिम चुनाव है क्योंकि अगले साल वो 70 साल के हो जाएंगे और उनके बाद जेडीयू का क्या भविष्य होगा पता नहीं इसलिए बीजेपी अभी से तैयारियां करनी शुरू कर दी है।

रणनीति है कि जेडीयू और बीजेपी करीब-करीब बराबर की सीटें लड़ें और बीजेपी को लगता है कि उनका प्रर्दशन जेडीयू से अच्छा होगा। भले ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री रहें मगर सरकार पर उनकी पकड़ ज्यादा रहेगी। फिर आगे की आगे देखेंगे।

बताते चलें कि बिहार में कुल 7 करोड़ 79 लाख वोटर्स हैं। 3 करोड़ 39 लाख महिला वोटर्स हैं। 3 करोड़ 79 लाख पुरुष वोटर्स हैं। बिहार विधासभा चुनाव तीन चरणों में होगा। 28 अक्टूबर, 3 और 7 नवंबर को मतदान होगा। 10 नवंबर को वोटिंग होगी।

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