ओमप्रकाश सिंह
अयोध्या। डाक्टर राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में संपन्न हुई प्राध्यापकों की चयन-प्रक्रिया में यूजीसी के मानकों की अनदेखी कर गम्भीर अनियमितता हुई है। विज्ञापन से लेकर अंतिम चयन तक की पूरी प्रक्रिया में मनमानी नियुक्तियों के लिए अर्हता के नियमों को बदला गया है।
तथ्यों को छिपाकर नियुक्ति की प्रक्रिया और परिणामों को प्रभावित किया गया है। सत्ता व लाभार्थियों के बीच के अन्तर को समाप्त कर परीक्षा की शुचिता तार-तार कर दिया गया है।
अयोध्या के जनमानस में इस घटना को लेकर बेहद अमर्ष व रोष है क्योंकि इसने शासन की भ्रष्टाचार व कदाचार के प्रति असहिष्णुता की नीति को संदिग्ध बना दिया है।
रामनगरी का डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फिर अवैध बनने की राह पर चल पड़ा है। कुलपति प्रो रविशंकर सिंह पटेल ने ना केवल पूर्व कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित के कार्यकाल की तमाम योजनाओं पर पानी फेर दिया है बल्कि नियुक्तियों में अपनों को जमकर रेवड़ी बांटी है। भारत और दक्षिण कोरिया के मध्य हुए एक समझौते को भी कुलपति और उनके ओएसडी ने जानबूझकर खत्म कर दिया।
कुलाधिपति महोदय के निर्देशानुसार जारी शासनादेश के अनुक्रम में सहायक प्रोफेसर के पदों पर स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न कराने की जिम्मेदारी संबंधित विश्वविद्यालय के परीक्षा-नियंत्रक की थी। परीक्षा-नियंत्रक उमानाथ सिंह के भाई अनिल कुमार सिंह (अनुक्रमांक 2022002014) अंबेडकरचेयर के अभ्यर्थी थे।
इसी क्रम में कुलपति प्रो रवि शंकर सिंह की पुत्रवधू सविता चंदेल (चयनित) गणित व सांख्यिकी की अभ्यर्थी थीं। विश्वविद्यालय की आंतरिक गुणवत्ता सुनिश्चयन प्रकोष्ठ की संयोजक प्रोफेसर नीलम पाठक की रिश्तेदार गरिमा मिश्रा (अनु. 2022002089 प्रतीक्षा सूची) भी अंबेडकर चेयर विभाग में अभ्यर्थी थीं। कुलपति के ओएसडी डॉक्टर शैलेंद्र सिंह पटेल स्वयं भी अंबेडकर चेयर और साथ ही प्रौढ़ शिक्षा विभाग में अभ्यर्थी थे। प्रश्न यह है कि इन परिस्थितियों में विश्वविद्यालय के किस अधिकारी ने संबंधित स्क्रीनिंग परीक्षा संपन्न करवाई? क्या शासन को इस सम्बन्ध में विश्वास में लिया गया था कि विश्वविद्यालय के उपर्युक्त सभी जिम्मेदार अधिकारियों के निकट-सम्बन्धी इस परीक्षा में सम्मिलित हो रहे हैं। इसलिए उनमें से कोई भी इसके संयोजन की अर्हता नहीं रखता था।
विश्वस्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि परीक्षा कराने वाली एजेंसी के सीधे संपर्क में कुलपति के निजी सहायक ओएसडी शैलेंद्र सिंह थे और मॉडरेशन के लिए प्रश्नपत्र भी उन्होंने संबंधित एजेंसी से प्राप्त कर लिए थे।
जबकि स्वयं ही दो-दो विभागों में अभ्यर्थी होने के कारण उनको इस पूरी प्रक्रिया से बाहर रखा जाना चाहिए था। बाद में समस्त मेल/पत्र व्यवहार का कार्य आइक्यूएसी निदेशक प्रोफेसर नीलम पाठक के नाम पर किया गया जिससे इन सभी कारनामों को छिपाया जा सके।
कुलपति, उनके ओएसडी, परीक्षा नियंत्रक और आइक्यूएसी निदेशक की मिलीभगत से परीक्षा की शुचिता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया।
यह भी पुष्ट खबर है कि इतिहास, संस्कृत व पुरातत्व विभाग में चयनित अभ्यर्थी डॉ प्रीति सिंह व रवि प्रकाश चौधरी को पूर्व में ही प्रश्न पत्र उपलब्ध करा दिए गए थे, जिनसे पैसे का लेन-देन बनारस के रहने वाले चन्दन चौधरी के माध्यम से हुआ था।
इसके अतिरिक्त अन्य पदों पर भी जो नियुक्तियाँ हुई हैं उनमें चयनित अभ्यर्थियों के बीच स्क्रीनिंग परीक्षा के अंकों में जो आश्चर्यजनक समानता है, उससे इस तथ्य की स्वतः ही पुष्टि होती है।
एसोसिएट प्रोफेसर पद पर नियुक्त डॉक्टर महिमा चौरसिया, डॉ अवध नारायण व डॉक्टर प्रद्युम्न नारायण द्विवेदी द्वारा पूर्व में की गई सेवाएं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम 2018 की धारा 10.0 के तहत जोड़ने के योग्य नहीं थी परंतु विश्वविद्यालय ने नियमों के विपरीत जाते हुए उनकी पूर्व की सेवाओं को जोड़कर उन्हें अनुचित ढंग से एसोसिएट प्रोफेसर पद प्रदान करने का कार्य किया है।
डॉ अवध नारायण जिन्होंने अंबेडकर चेयर व प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा दोनों विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था, अर्हता-परीक्षा उत्तीर्ण न कर सकने के कारण साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाए जा सके।
परंतु इन्हीं अवध नारायण का चयन इसी समय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर पद पर हुआ, जिसमें वह एकल अभ्यर्थी के रूप में सम्मिलित हुए थे। ध्यातव्य है कि इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में एसोसिएट पद पर हुए इस साक्षात्कार में कोई भी अन्य अभ्यर्थी सम्मिलित नहीं हुआ था। यह किसी भी विज्ञापित पद पर आवेदन की न्यूनतम कोरम संख्या के नियमों की सरासर अनदेखी है।
पर्यावरण विज्ञान विभाग में 799 अंक के एपीआई धारक डॉ अनूप सिंह तथा 473 अंक एपीआई प्राप्त करने वाली संगीता यादव का चयन न करके वरीयता-क्रम में सबसे नीचे 152 अंक एपीआई वाली अभ्यर्थी डॉक्टर महिमा चौरसिया का चयन किया गया है। इसी प्रकार अन्य विषयों में भी साक्षात्कार के लिए बुलाए गए अधिकतर अभ्यर्थी यूजीसी मानक 2018 के प्रावधानों की अनुरूपता में साक्षात्कार के लिए अर्ह नहीं थे परंतु मानकों की अनदेखी कर उन्हें आमंत्रित और चयनित किया गया।
डॉ शैलेन्द्र सिंह पटेल को विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलपति प्रो. रविशंकर सिंह अपने साथ वाराणसी से कार्यभार-ग्रहण के समय लेकर आये थे और इंजीनियरिंग विभाग में संविदा की नौकरी देकर उन्हें अपना ओएसडी बना लिया था।
उनका चयन अम्बेडकर चेयर व प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग में दो अकादमिक पदों पर हुआ है। उन्होंने भूगोल विषय में परास्नातक व पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। अंबेडकर चेयर जिसे उन्होंने ज्वाइन किया है और प्रौढ़ एवं सतत शिक्षा विभाग जिसमें वह प्रतीक्षा-सूची में है, उनमें से वह किसी भी विभाग में सेवा की योग्यता धारित नही करते हैं।
वास्तव में, उनकी नियुक्ति के लिए पहली बार अम्बेडकर चेयर में नियुक्ति के लिए अर्हता के नियमों को बदलकर अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र व राजनीति विज्ञान विषयों में स्नातक उपाधि के साथ-साथ समाज-भूगोल (Social Geography) व जनसंख्या विज्ञान ( Population Science) जैसे नए विषयों को भी जोड़ दिया गया। यह भी ध्यातव्य है कि डॉ शैलेन्द्र सिंह की अर्हता इन विषयों में भी स्नातक या परास्नातक की नहीं है. समाज-भूगोल का स्नातक/परास्नातक स्तर पर अध्ययन उन्होंने महज एक प्रश्नपत्र के रूप में किया है, स्वतंत्र उपाधि के रूप में नहीं। वह नियुक्ति के वर्तमान पद पर चयन की अर्हता नहीं रखते हैं।
विश्वविद्यालय द्वारा जारी विज्ञापन में रोस्टर निर्धारण के लिए उ.प्र. आरक्षण अधिनियम 1994 का अनुपालन नहीं किया गया है। रोस्टर रिक्तियों पर न लगा कर समस्त स्वीकृत पदों पर लगाया गया है तथा मनमाने ढंग से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए विभागों के नाम भी सुविधानुसार कभी हिंदी तो कभी अंग्रेजी वर्णमाला क्रम के अनुसार ले लिये गए हैं।
आवासीय परिसर के खेलकूद प्रभारी मुकेश वर्मा की पत्नी को नौकरी देने के लिए भी खेल किया गया। प्रौढ़ एंव सतत शिक्षा विभाग में उन्हें दूसरे नंबर पर रखा गया ताकि शैलेंद्र सिंह पटेल के दूसरे विभाग में ज्वाइन करने से उन्हें रिक्त स्थान पर ज्वाइन कराया जा सके।
मुकेश वर्मा की पत्नी विनोदनी वर्मा से जब राज्यपाल के ओएसडी पंकज जानी कने विभाग का नाम पूछा तो वो बता ही नहीं पाईं। इस अवसर पर कुलपति समेत कई शिक्षक वहां मौजूद थे। मुकेश वर्मा संविदा पर शिक्षक हैं अब उनकी पत्नी नियमित शिक्षक हो गई हैं।
पूर्वांचल के सबसे बड़े महाविद्यालय साकेत के एसोसिएट प्रोफेसर जनमेजय तिवारी, अयोध्या जनपद के भाजपा जिला मीडिया प्रभारी डाक्टर रजनीश सिंह ने राज्यपाल, मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री भारत सरकार को पत्र भेजकर कारवाई की मांग किया है।
इन लोगों का कहना है कि डॉ राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय,अयोध्या में की गयी नियुक्तियों के इस प्रकरण में विज्ञापन से लेकर चयन तक की संपूर्ण प्रक्रिया विसंगतिपूर्ण, मनमानी, स्वच्छंद और विभेदकारी रही है, जिसने मेरिट के सामान्य सिद्धांत को दरकिनार कर भ्रष्टाचार को प्रश्रय दिया है।
भगवान राम की नगरी अयोध्या में स्थापित इस एकमात्र विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा न सिर्फ विश्वविद्यालय बल्कि पूरी राज्य सरकार की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर एक गम्भीर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। वर्तमान तथ्यों के प्रकाश में इन नियुक्तियों पर रोक लगाते हुए संपूर्ण चयन-प्रक्रिया की न्यायिक जांच करवाकर दोषसिद्ध पाये जाने पर सम्बन्धित को दण्डित करते हुए न्याय की पुनःस्थापना की मांग की गई है।