स्पेशल डेस्क
उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हुई हिंसा के आरोपियों के वसूली वाले पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है। अदालत ने वसूली वाले पोस्टर हटाने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही अदालत ने 16 मार्च से पहले अनुपालन रिपोर्ट के साथ हलफनामा भी दायर करने के लिए कहा है।
हाईकोर्ट के आदेश से योगी सरकार को बड़ा झटका लगा है। इस पोस्टर की वजह से पहले ही योगी सरकार की किरकिरी हुई थी और आज अदालत ने सरकार को पोस्टर हटाने का आदेश देकर सरकार की मुश्किले बढ़ा दी हैं।
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गौरतलब है कि लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए 57 कथित प्रदर्शनकारियों के 100 पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे निजता का हनन मानते हुए सभी पोस्टर हटाये जाने का आदेश दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के जिलाधिकारी व पुलिस कमिशनर को अगामी 16 मार्च तक हुक्म की तामील किये जाने का हलफनामा कोर्ट में दाखिल किये जाने का आदेश दिया है।
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इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सात मार्च को पिछले साल दिसंबर में सीएए के विरोध के दौरान हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाए जाने का स्वत: संज्ञान लिया था। सात मार्च के ही आदेश में अदालत ने लखनऊ के डीएम और मंडलीय आयुक्त को उस कानून के बारे में बताने को कहा था जिसके तहत लखनऊ की सड़कों पर इस तरह के पोस्टर एवं होर्डिंग लगाए गए।
उल्लेखनीय है कि पुलिस ने पिछले साल दिसंबर में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान हिंसा में लिप्त आरोपियों की पहचान कर पूरे लखनऊ में उनके कई पोस्टर और होर्डिंग्स लगाए हैं। इन होर्डिंग्स में आरोपियों के नाम, फोटो और आवासीय पतों का उल्लेख है जिसके चलते नामजद लोग अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं। इन आरोपियों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई करने को कहा गया है और भुगतान नहीं करने पर जिला प्रशासन द्वारा उनकी संपत्तियां जब्त करने की बात कही गई है।
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