Friday - 1 November 2024 - 3:34 PM

अपराध खुली जगह पर हो तभी एससी-एसटी एक्ट लागू

न्‍यूज डेस्‍क

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट को लेकर बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट के तहत कोई मामला तभी बनता है जब अपराध लोक (सार्वजनिक) स्थल पर किया गया हो, जिसे लोगों ने देखा हो। बंद कमरे में हुई घटना में एससी-एसटी एक्ट की धारा प्रभावी नहीं होती है, क्योंकि बंद कमरे में हुई बात कोई बाहरी नहीं सुन पाता। इसके चलते समाज में उसकी छवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सोनभद्र के केपी ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति आरके गौतम ने दिया है। याची के अधिवक्ता सुनील कुमार त्रिपाठी का कहना था कि याची केपी ठाकुर खनन विभाग के अधिकारी हैं। खनन विभाग के कर्मचारी विनोद कुमार तनया जो इस मामले का शिकायतकर्ता हैं, उनके खिलाफ विभागीय जांच लंबित थी।

इस सिलसिले में याची ने शिकायतकर्ता को अपने कार्यालय में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए बुलाया था। शिकायतकर्ता अपने साथ सहकर्मी एमपी तिवारी को लेकर गया था। याची ने तिवारी को चेंबर के बाहर रहने को कहा तथा उन्हें विभागीय जांच में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया।

याची के अधिवक्ता का कहना था कि शिकायतकर्ता जांच में व्यवधान पैदा करने का आदी है। इस नीयत से उसने मारपीट, जान से मारने की धमकी व एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया है। जिस समय घटना हुई उस समय याची चेंबर के अंदर था। कोई बाहरी व्यक्ति नहीं था, जो घटना का साक्षी रहा हो।

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा है कि यदि घटना लोकस्थल पर नहीं हुई है तो एक्ट के तहत अपराध नहीं बनता। कोर्ट ने दलील स्वीकार करते हुए याची के विरुद्ध लगाई गई एससी-एसटी एक्ट की धारा को रद कर दिया। साथ ही मारपीट, जान से मारने की धमकी व अन्य धाराओं में के तहत मुकदमे की कार्रवाई जारी रखने की छूट दी है।

एससी-एसटी एक्ट के तहत कोई मामला तभी बनता है जब अपराध लोक (सार्वजनिक) स्थल पर किया गया हो, जिसे लोगों ने देखा हो। बंद कमरे में हुई घटना में एससी-एसटी एक्ट की धारा प्रभावी नहीं होगी।

यह है एससी-एसटी एक्ट

एससी-एसटी एक्ट में बदलाव करते हुए 20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। बाद में सरकार की ओर से एससी-एसटी एक्ट संशोधन विधेयक पेश किया गया। संशोधित बिल में सरकार इस तरह के अपराध में एफआइआर दर्ज करने के प्रावधान को वापस लेकर आई थी। सरकार ने माना कि केस दर्ज करने से पहले जांच जरूरी नहीं और न ही गिरफ्तारी से पहले किसी की इजाजत लेनी होगी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपना फैसला बदल लिया।

Radio_Prabhat
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