Tuesday - 28 January 2025 - 5:41 PM

महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर टूटेगा सारा रिकॉर्ड, जानें क्यों कहते हैं अमृत स्नान 

जुबिली न्यूज डेस्क

महाकुंभ में 29 जनवरी को मौनी अमवस्या पर दूसरा अमृत स्नान हैं, जिसके लिए दस करोड़ श्रद्धालुओं के जुटने का अनुमान लगाया गया है. इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व होता है. योगी सरकार ने इस दिन भारी भीड़ को देखते हुए बड़े स्तर पर तैयारियां की है. जिसमें सुरक्षा व्यवस्था से लेकर यातायात के साधन और तमाम तरह की सुविधाएं शामिल हैं. मौनी अमावस्या के मौके पर प्रयागराज, कई देशों का रिकॉर्ड ब्रेक कर सकता है.

मौनी अमावस्या 29 जनवरी को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:25 बजे से शुरू होकर 6:19 बजे तक रहेगा. इस मुहूर्त में स्नान और दान करना सबसे शुभ माना जाता है. यदि कोई इस समय में स्नान और दान नहीं कर पाता तो वह सूर्योदय से सूर्यास्त तक किसी भी समय यह कार्य कर सकता है. सीएम योगी ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि मौनी अमावस्या स्नान में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के लिए निर्बाध व्यवस्था सुनिश्चित की जाए.

मौनी अमावस्या स्नान का महत्व

मौनी अमावस्या का दिन काफी महत्व रखता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान, पवित्र कार्य के लिए सबसे अनुकूल होता है. यह वही दिन है जब ऋषभ देव, जिन्हें प्रथम ऋषियों में से एक माना जाता है, ने अपना मौन व्रत तोड़ा था और संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाई थी. जो इसे आध्यात्मिक भक्ति और शुद्धि का एक महत्वपूर्ण दिन बनाती है.

हिंदू धर्म में मौनी अमावस्या बहुत ही खास मानी जाती है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, भगवान विष्णु की पूजा और पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध तथा पिंडदान भी करते हैं. इसके साथ ही इस दिन पितरों के लिए दीपक जलाया जाता है. मौनी अमावस्या पर गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पाप मिटते हैं, मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य के कार्यों के साथ ब्राह्मण और गरीबों को भोजन खिलाने से पितृ प्रसन्न होते हैं.

जानें  क्यों कहते हैं अमृत स्नान 

माना जाता है कि नागा साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण सबसे पहले स्नान करने का अवसर दिया जाता है. वे हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर राजसी ठाट-बाट के साथ स्नान करने आते हैं. इसी भव्यता के कारण इसे अमृत स्नान नाम दिया गया है. एक अन्य मान्यता के अनुसार, मध्यकाल में राजा-महाराज, साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस लेकर स्नान के लिए निकलते थे. इसी परंपरा ने अमृत स्नान (अमृत स्नान) की शुरुआत की.

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इसके अलावा यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और गुरु जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है. ग्रहों की चाल के आधार पर कुछ विशेष तिथियां पड़ती हैं. मान्यता है कि इन विशेष तिथियों पर पवित्र नदियों में स्नान करने से आध्यात्मिक शुद्धि, पापों का प्रायश्चित, पुण्य और मोक्ष प्राप्ति होती है. इसलिए भी इन तिथियों पर होने वाले स्नान को अमृत स्नान कहा जाता है.

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