कृष्णमोहन झा
पाकिस्तान में सेना की मदद से प्रधानमंत्री बने इमरान खान को इस कड़वी हकीकत का एहसास काफी देर से हुआ है कि कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीय करण करने की उसकी हर कोशिश बेमानी साबित होगी। वैसे तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर काबिज होते ही उन्होंने भी पूर्व प्रधानमंत्रियों की भांति कश्मीर का राग अलापना शुरू कर दिया था ,परंतु जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले के बाद वे इस तरह बौखला गए हैं कि अब उनकी न केवल सोचने समझने की शक्ति बाकी रही है और ना ही वे अपनी वाणी पर नियंत्रण कर पा रहे है।
पाकिस्तान को इस बात के लिए भी कोई शर्मिदगी नही है कि पाकिस्तान की एकमात्र पहचान दुनिया भर में आतंकवाद का पोषण व संरक्षण करने वाले देश के रूप में बनती जा रही है।ऐसा ना होता तो हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुख्यात आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद के लिए रहम की गुहार नहीं लगा रहे होते, जिसे सुरक्षा परिषद में कुछ माह पूर्व ही वैश्विक आतंकवादी घोषित कर उस पर प्रतिबंध लगा दिए थे।
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इन प्रतिबंधों के तहत उसके बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था और उनमें से निकासी औऱ जमा पर रोक लगा दी थी। भारत की पहल पर किए गए सुरक्षा परिषद के फैसले का परिषद के सभी स्थायी सदस्यों ने समर्थन किया था ।
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हाफिज को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव का समर्थन पाकिस्तान के सबसे बड़े मित्र चीन को भी करना पड़ा। हाफिज सईद पर कार्यवाही पर सबसे अधिक पीड़ा पाकिस्तान को ही हुई है, जिसने अपने देश के अंदर न जाने कितने आतंकी संगठनों को पनाह दे रखी है, बल्कि उन्हें अपनी आतंकी गतिविधियों को संचालित करने की भी पूरी छूट दे रखी है।
यह बात जगजाहिर है कि इन आतंकी संगठनों का एक ही मकसद है भारत में आतंकी हमलों की साजिश को अंजाम देना। जिस आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में ढील देने की पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद में गुहार लगाई थी, उसने ही मुम्बई में हुए भयावह हमले की साजिश रची थी, जिसका हाफिज सईद मास्टरमाइंड था।
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भारत सरकार ने देश के अंदर हुए आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकी संगठनों से जुड़े होने के पुख्ता सबूत भी पाकिस्तान की सरकारों को सौंपने कोई देरी नहीं की ,परंतु उसने इन सबूतों को कभी स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान की सरकारों एवं वहां की सेना ने हमेशा ही वहां के आतंकी संगठनों की पीठ थपथपाई है, जिसके निरंतर सबूत भी मिलते रहे है।
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इसका सबसे ताजा सबूत यह है कि हाफिज सईद पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों में ढील देने के लिए इमरान सरकार ने सुरक्षा परिषद में गिरगिड़ाने से भी परहेज नहीं किया। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस सुरक्षा परिषद में हाफिज सईद को सर्वसम्मति से वैश्विक आतंकवादी घोषित किया था , उसने उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों में ढील की अनुमति देने में एक पल भी देर नही की। परिषद ने यह नहीं सोचा कि हाफिज सईद इस ढील का दुरुपयोग आतंकी जाल को फैलाने में भी कर सकता है।
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दरअसल पाकिस्तान सरकार को हाफिज सईद के प्रति हमदर्दी जताने के लिए किसी बहाने की तलाश थी जिसमे सुरक्षा परिषद में उसे परोक्ष सहयोग भी दे दिया। अब यह अनुमान लगाना गलत नही होगा कि हाफिज सईद की मदद हेतु पाकिस्तान की सरकार आगे चलकर और नए हथकंडे इस्तेमाल कर सकती है।
दरअसल पिछले कुछ महीनों से हाफिज सईद सरकार पर यह दबाव बनाने में जुटा हुआ था कि वह उसे अपने फ्रिज किए गए खाते से हर महीने कुछ रकम निकालने की अनुमति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से दिलवाए ,ताकि वह अपनी रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके।
पाकिस्तान सरकार तो मानो उसकी मदद का कोई बहाना पहले ही खोज रही थी ,इसलिए उसने हाफिज सईद को खुश करने के लिए तत्काल सुरक्षा परिषद में गुहार लगा दी। सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान सरकार के जरिए अपने आवेदन मे अनुरोध किया कि वह अपने बच्चों की फीस ,खुद के इलाज और अन्य पारिवारिक खर्चों की पूर्ति के लिए हर महीने उसके फ्रिज खाते से एक निश्चित रकम निकालने की अनुमति दी जाए।
इस पत्र की प्राप्ति के पश्चात सुरक्षा परिषद में इस पर नियमानुसार आपत्तियां आमंत्रित की। परिषद के अध्यक्ष ने बताया कि अंतिम समय सीमा तक कोई आपत्ति पेश नही किए जाने के कारण हाफिज सईद की वह अर्जी मंजूर कर ली ,जो उसने इमरान सरकार के माध्यम से भेजी थी। इस अर्जी को मंजूर करते हुए सुरक्षा परिषद ने उसे हर महीने डेढ़ लाख रुपए पाकिस्तानी रुपए के बराबर राशि बैंक खाते से निकालने की अनुमति दे दी।
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पाकिस्तान सरकार ने हाफिज सईद को यह अनुमति दिला कर उसे जिस तरह उपकृत किया है, उसके बदले में पाकिस्तान सरकार उससे क्या यह नहीं चाहेगी कि वह अपने संगठन के माध्यम से भारत में और आतंकी वारदातों को अंजाम देने की साजिश रहते रहे। यह समझना कठिन नहीं है कि अपने इलाज एवं पारिवारिक खर्चों की पूर्ति हेतु हाफिज सईद हर महीने बैंक से जो राशि निकालेगा, उसका उपयोग पारिवारिक खर्चों की पूर्ति के लिए कम और आतंकी गतिविधियों के विस्तार हेतु अधिक होगा।
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा वैश्विक आतंकी करार दिए गए हाफिज सईद के प्रति इमरान सरकार द्वारा प्रदर्शित की जा रही हमदर्दी ने साबित कर दिया है कि उनका देश आतंकी संगठनों के सरगनाओं की मदद हेतु कितना लालायित रहता है। इमरान सरकार ने क्या कभी इस बारे में सोचा है कि हाफिज सईद ने अपने संगठन के द्वारा भारत में आतंकी हमलों की साजिश की, उसमें कितने निर्दोष परिवार उजड़ गए हैं।
इमरान खान इस बारे में सोच भी कैसे सकते हैं, क्योंकि उनका मकसद तो पड़ोसी देश में अशांति फैलाना है। इसलिए वह हाफिज सईद जैसे आतंकी संगठनों के सरगनाओं की पीठ थपथपाने से बाज नही आ रहे है।
यहां यह भी विशेष गौर करने लायक बात है कि जिस हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया है उसे पाकिस्तान सरकार की ओर से हर माह पचास हजार रुपये की पेंशन दी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र में भारतीय मिशन की प्रधान सचिव विदिशा मेहता जब महासभा की बैठक में इमरान खान के द्वारा दिए गए भाषण का जवाब दे रही थी ,तब उन्होंने दो टूक लहजे में कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिबंधित आतंकियों को पेंशन देने वाला पाकिस्तान दुनिया में ऐसा एकलौता देश है।
विदिशा मित्रा ने पाकिस्तान में कोई आतंकी संगठन नही है के इमरान खान के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित 130 आतंकी और 25 आतंकी संगठन पाकिस्तान में शरण नहीं लिए हैं और क्या पाकिस्तान सरकार उन्हें संरक्षण नहीं प्रदान कर रही है।
विदिशा ने इमरान खान को याद दिलाया की क्या न्युयार्क में पाकिस्तान के प्रतिष्ठित हबीब बैंक पर टेरर फंडिंग के आरोप में लाखों डॉलर का जुर्माना नही लगाया गया था और बाद में इस बैंक को बंद करना पड़ा। भारतीय मिशन की प्रधान सचिव विदिशा ने कहा कि इमरान खान विदेशी पर्यवेक्षकों को अपने देश में यह देखने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं कि पाकिस्तान में कोई आतंकी संगठन नहीं है, परंतु वह कैसे भूल गए कि ओसामा बिन लादेन का ठिकाना भी पाकिस्तान में ही मिला था जिसका वह खुलकर बचाव करता रहा।
विदिशा ने पाकिस्तान के दावों की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को 27 में से 20 मापदंडों के उल्लंघन का आरोपी मानते हुए उसे नोटिस दिया है। विदिशा मैत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र एक वैश्विक मंच है, जहां कूटनीतिक शब्दावली का प्रयोग किया जाता है ,परंतु पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने वैश्विक मंच की गरिमा का ध्यान न रखते हुए, जिस तरह का भाषण दिया, उससे उनकी मध्ययुगीन सोच उजागर हो गई।
भारतीय प्रधान सचिव ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि पाकिस्तान में 1947 में 23 फ़ीसदी अल्पसंख्यक जो अब घटकर 3 फीसदी रह गए है।
इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र सभा के मंच से भारत के खिलाफ जितना भी जहर उगला, वह केवल यही साबित कर रहा था कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की बागडोर इस समय ऐसे व्यक्ति के हाथों में है ,जिसका अपनी भाषा पर कोई नियंत्रण नहीं है, जिसे राजनयिक की गरिमा का दूर-दूर तक कोई अहसास नहीं है।
उनके विचारों से केवल खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे की कहावत चरितार्थ होती हुई दिख रही है। इसलिए जब इमरान अमेरिका पहुंचे तो उन्हें एक राष्ट्राध्यक्ष को प्राप्त होने वाला सम्मान भी नसीब नहीं हुआ।’
संयुक्त राष्ट्र में जहर करने के बाद वे बेआबरू होकर अपने देश लौट कर गए। इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भारत लौटे तो उनके चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी और उधर इमरान खान जब वापस पहुंचे तो उनके चेहरे के भाव इस बात की गवाही दे रहे थे कि वे संयुक्त राष्ट्र के दरवाजे से बेआबरू होकर लौटे हैं। लेकिन उनसे यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि उन्हें इसका कोई मलाल है। सारी दुनिया में अपमानित होना जिसकी फितरत बन चुका हो उसके लिए प्रतिष्ठा शब्द का कोई महत्व नहीं रह जाता है।.
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)