राजशेखर त्रिपाठी
राजदीप सरदेसाई मोदी युग का अल बिरूनी है। यूं तो अल बिरूनी अपने दौर का लियोनॉर्दो दा विंची था – ज्योमेट्री से ज्योतिष तक में हाथ आजमा रहा जीनियस। मगर महमूद गजनी ने उसे भारत में सिर्फ तारीख़ साज़ बना कर छोड़ दिया। बिरूनी को जिस ‘किताब अल हिंद’ की वजह से जाना जाता है, उसमें गजनी के दौर का रायजुल वक्त दर्ज है। रायजुल वक्त – यानि शासन-प्रशासन और जनता का अनुशासन।
राजदीप भी जीनियस है उसे सिनेमा का संगीत भी पता है। क्रिकेट विरासत में मिला है। फुटबॉल में रुचि शायद योरप में वक्त गुजारने की वजह से है। बतौर पत्रकार राजदीप की तारीख़ी पहचान मेरी नज़र में फिलहाल – ‘अ जर्नो चेजिंग द मोदी’ है। राजदीप ने मोदी के तीसरे चुनाव पर तीसरी किताब भी लिख डाली है। 2014 और 2019 के बाद अब 2024।
ये किताबें कहती हैं – राजदीप से मोदी का रिश्ता पहले सिर्फ ‘लव-लव’ वाला था। अब वो ‘लव-हेट’ वाला है। मगर ये रिश्ता आज भी धड़कता हुआ रिश्ता है। पहले राजदीप मोदी को एक क़ॉल पर NDTV के दफ्तर बुला सकते थे। लाइव के लिए विजय चौक पर इंतजार करा सकते थे। अब वो मोदी का इंटरव्यू तक नहीं कर सकते…मगर जब चाहे फोन पर बात कर सकते हैं। ये राजदीप की किताबों से ही आपको पता लगता है। 2014 के चुनाव तक मोदी राजदीप से हर रात प्रचार से लौटकर पूरे दिन का हाल जानते थे, इंटरव्यू देने का वादा करते थे। इंटरव्यू मोदी ने दिया भी मगर दिलीप सरदेसाई के बेटे को नहीं, दिनेश गोस्वामी के भतीजे अर्णब गोस्वामी को। दिनेश गोस्वामी पूर्व केंद्रीय मंत्री थे।
राजदीप के पिता दिलीप सरदेसाई महान क्रिकेटर थे। लेकिन उन्हें खुद अपनी महानता का दंभ नहीं था। बॉम्बे के ब्रेबर्न क्लब की धूप में लंच के बाद ऊंघते रहते थे। राजदीप को भी खानदानी तलब है। दोपहर की नैप। बंगाली इसे ब्यूटी स्लीप कहते हैं। राजदीप ने बंगाली ब्यूटी से इश्क किया। दोनो टाइम्स में थे। अब ये संयोग ही होगा कि सागरिका के पिता दूरदर्शन के डायरेक्टर थे (भाष्कर घोष)। उसी दौर में राजदीप एनडीटीवी के साथ बड़े पत्रकार बनने की ओर बढ़े। मैं जब राजदीप से मिला तो वो हमारे बॉस थे। जो बेटा अब डॉक्टर है कभी-कभी उसे सामान्य पिता की तरह डांटते हुए गैलरी में एंट्री लेते थे। मैं और प्रभात भाई शुंगलू वाले एक दिन फंस गए …This bugger don’t even know the…xxx। राजदीप लाउड बहुत हैं और इस ‘बुढ्ढे’ का लाउड होना न्यूजरूम के लिए गजब होता है….Yes tiger how’s going…take the phono of that f**….
राजदीप गौड़ सारस्वत कोंकण ब्राह्मण है। हमारा कैंटीन चलाने वाला गुलाटी कहता था “सिरफ दो लोग के लिए नानवेज मंगाते हैं एक जो तुम्हारे लिए एक जे ढिल्ला पैंट” .राजदीप के ढिल्ला पैंट का उसके चरित्र से कोई सबंध नही है।? इतना मनुष्य है कि मूतते हूए पैंट संभालना भूल सकता है…इस अभद्रता के लिए मुझे माफ करिएगा। लेकिन मेरा बेटा कहता है – ‘Real jurno…In between a big political happening he may ask you…..स्कोर क्या है टाइगर ?’
खैर अब चलिए गोधरा….गोधरा ने नरेंद्र मोदी के भीतर बहुत कुछ बदल दिया। मोदी-मोदी नहीं रह गए। गोधरा ने मोदी को बहुत कुछ दिया होगा – मगर क्या मोदी इसे इसी तरह चाहते थे ? शायद यही वजह है कि मोदी गोधरा के सवाल पर कसैले हो जाते हैं। प्रवीण तोगड़िया याद हैं आपको ! कैंसर – जी कैंसर के डॉक्टर बताए जाते हैं वो। कहते हैं मोदी नए-नए प्रशासक थे और पुलिस कंट्रोल रूम पर तोगड़िया का कब्जा होता था। जो हुआ सबने देखा – गुनाह किसी के माफ़ नहीं किए जाएंगे। किसी ने कम भी नहीं किए। मगर कर्कश तोगड़िया आज अगर अंधकारमय जीवन जी रहे हैं तो उसके पीछे गुजरात दंगों के बाद मोदी और उनके बीच पैदा हुआ फासला भी है।
दंगों के बाद या तत्काल बाद का चुनाव जीतने के बाद, राजदीप सरदेसाई नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू कर रहे थे। दंगों का स्टीरियोटाइप सवाल फिर उठा। मोदी के माथे की शिकन और चेहरे का तनाव बढ़ा। राजदीप भांप गए, बोले-
मोदी जी आप तो कविता भी लिखते हैं। फिर कवि मोदी कविता पढ़ने लगे। वातावरण काव्यात्मक हो गया।
राजदीप और मोदी के रिश्तों की नयी बुनियाद यहीं रख दी गयी।
मोदी और राजदीप का दूसरा सामना 2007 की हिंदुस्तान टाइम्स समिट में हुआ। राजदीप सरदेसाई मॉडरेटर और सवाल फिर गुजरात दंगे !
तब तक मैं राजदीप सरदेसाई की कंपनी में छोटा मुलाजिम था।
मोदी बोले – “शोभना भरतिया जी तय कर लें किसका एजेंडा चलेगा।“ शोभना फोन पर कोई मैसेज करती दिखीं। राजदीप वहीं थम गए- मोदी ने फिर अपना गुजरात विजन सामने रखा। लटियन दिल्ली का एलीट तालियां बजाने को मजबूर था। हम सब न्यूजरूम में ये सब देख रहे थे – और सच कहूं तो न्यूजरूम में उसी दिन विचार की एक धारा का रूख बदल गया।
एक ग़लत धारणा है कि मोदी को राजदीप फूटी आंख नहीं सुहाते। कुछ सफेद कैनवास इसलिए रखे जाते हैं कि काला/गाढ़ा रंग उन पर खिल कर आ सके। स्वर्गीय अरूण जेटली ने अपने सायंकालीन ‘खबर पादारोपण’ मीडिया दरबार में NDTV के एक पत्रकार का बचाव ये कहकर किया। ‘अरे यार वो हमें गलत बताता है तो हमारा ही काम करता है….’ अब इस बात का मतलब खुद समझ लीजिए तो बेहतर है।
खैर जब रिलायंस ने NETWORK 18 में इनवेस्ट किया तो हवा का रुख बदलने लगा। खर्चे घटाने के नाम पर हिंदी और अंग्रेजी का इंटीग्रेशन हुआ – छंटनी हुई – जाने कौन-कौन लोग बच गए, क्यों बच गए ? जो बच गए उनमें हम भी एक थे। इस घटना के बाद स्क्रीन पर फर्क ये आया कि सीधे मोदी पर अटैक से बचा जाने लगा।
राजदीप सरदेसाई को बतौर जूनियर कलीग (लेकिन मैं हिंदी – वो इंगलिश) मैने मोदी से रूबरू तब देखा जब NETWORK 18 ने मोदी के इंडिया विजन के लिए एक सुचिंतित शो किया। इस शो के अकेले मेहमान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी थे, मॉडरेटर राजदीप नहीं चेयरमैन राघव बहल थे। मोदी ने पूछा
“अच्छा राजदीप आया है! सागरिका कहां है ? ओह वो ट्वीट कर रही होगी”
जिन्हें इस डायलॉग में दुश्मनी दिखे – उन्हें दिखे। मुझे तो पारिवारिक ठिठोली ज्यादा दिखी।
बहरहाल खांटी पत्रकार वो है जो बिना पास तमाशा घुस के देखे। राजदीप का मामला भी ऐसा ही है। अजीत अंजुम कहते हैं अगर राजदीप की तरह बस के पायदान पर मोदी का इंटरव्यू करना होता मैं नहीं करता। छोड़ कर चला आता। इससे क्या होता – इतिहास एक चित्र से वंचित रह जाता। जिस पत्रकार राजदीप को मोदी ने उसकी औकात दिखायी वो मोदी के साथ इतिहास में चला गया है। तस्वीरें मरती नहीं हैं. बहुत कुछ कहती हैं, बार-बार दिखती और दिखायी जाती हैं।
राजदीप को मोदी ने गढ़ा है। मोदी ने राजदीप को गढ़ा है। दोनों में एक अंर्तसंबंध तो है। राजदीप ने अजीत अंजुम से बातचीत में ऐलान कर दिया है कि ‘अरे भाई ! मोदी 2029 में भी कहीं नहीं जा रहे।‘ मेरा दावा है कि राजदीप से बेहतर मीडिया में मोदी को कोई नहीं जानता।
राजदीप की तीसरी किताब में भी कई चौंकाने वाली चीजें हैं। 2019 से 2024 तक का देश का सियासी सफर है। किताब खरीदिए पढ़िए और अगर अंग्रेजी नहीं जानते तो हिंदी का इंतज़ार करिए। मगर समझिए आंदोलन अखबार खड़े करता है और अखबार आंदोलन खड़े करता है। ‘जन’सत्ता और ‘जन’संघ का अंतर्संबंध समझिए….कमल मोरारका…’चौथी दुनिया’ और विश्वनाथ प्रताप सिंह का संबंध समझिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)