स्पेशल डेस्क
लखनऊ। अखिलेश यादव ने जब सपा की कमान अपने हाथों में ली है तब से उनका प्रदर्शन राजनीतिक के क्षेत्र में कमजोर होता दिख रहा है। आलम तो यह है कि अखिलेश यादव दोबारा सीएम बनते-बनते रह गए है। यूपी की सत्ता उनके हाथ से निकल गई और योगी राज के बाद से वह लगातार राजनीतिक स्तर पर संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।
सपा को दोबारा खड़ा करने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं लेकिन उनके फैसले उनके करियर को आगे बढ़ाने के बजाये नुकसान पहुंचा रहे हैं।
उन्होंने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए मायावती की पार्टी बसपा के साथ गठबंधन किया लेकिन यहां भी निराशा तब हाथ लगी जब मोदी लहर में सपा उड़ गई। हालांकि सपा के साथ बसपा को फायदा हुआ। इस हार के बाद से अखिलेश यादव जो भी कदम उठा रहे हैं उसमें वो समझदारी का परिचय देेते नजर आ रहे हैं।
अब तक अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा को तीन चुनाव में सपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा है। माना जा रहा है कि तीन चुनाव में हार का सबसे बड़ा कारण रहा है चाचा शिवपाल के साथ उनका मदभेद। ऐसे में वह एक बार फिर चाचा शिवपाल यादव को अपनी पार्टी में बुलाना चाहते हैं।
इस वजह से वह लगातार उनके प्रति नरम रूख अपना रहे हैं। दोनों के पास अपना अलग वोट बैंक है। ऐसे में शिवपाल यादव के परम्परागत पर भी सपा की कड़ी नजर है। इसी को ध्यान में रखकर विधानसभा से सदस्यता निरस्त करने के लिए प्रार्थना पत्र को अभी फिलहाल रोक दिया गया है।
उधर भले ही शिवपाल यादव अपने पुराने घर में लौटना नहीं चाहते हो लेकिन अखिलेश अब भी अपने चाचा को दोबारा पार्टी में लौटने का लुभावना ऑफर देते नजर आये है।
अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव का नाम लिए बगैर उनकी वापसी की उम्मीद लगा रखी है। ऐसे में अखिलेश ने साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी में अब भी उनके चाचा की जगह बन सकती है लेकिन अब केवल शिवपाल यादव को तय करना है कि वह आखिर चाहते क्या हैं।
अगर शिवपाल यादव अलग होकर चुनाव लड़ते हैं तो भी अखिलेश के लिए थोड़ी राहत होगी क्योंकि उन्होंने अपने चाचा को वापस बुलाने के लिए हर तरह का कदम उठाया है। जानकारों की माने तो ऐसे में चुनाव बाद चाचा और भतीजे में सुलह हो सकती है।