न्यूज़ डेस्क
लोकसभा चुनाव में अपनी समाजवादी पार्टी जमीन खो चुकी है। ऐसे में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी खो चुकी ज़मीन को वापस पाने लग गयी है इसके लिए सपा ने अपने बिखरे हुए मूल वोट बैंक को सहेजना शुरु कर दिया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आगामी विधान सभा चुनाव के लिए अपना लक्ष्य बना लिया है।
इसी के चलते उन्होंने अपने मूल वोट बैंक यादव की एक जुटता को बनाना शुरू कर दिया है।रूठे हुए यादव नेताओं को मनाने की शुरुआत सपा अध्यक्ष ने पूर्वांचल से की है। उन्होंने आजमगढ़ के पूर्व सांसद रमाकांत यादव को पार्टी में शामिल कराके यादव वोट बैंक को पूर्वांचल में साधने का बड़ा प्रयास किया है।
एक तरफ अखिलेश यादव नेताओं को मनाने में लगे हुए है। तो दूसरी तरफ उनके घर का एक कुनबा तेजी से परिवार में एकता की कोशिशों में लगा हुआ है। लेकिन ये कितना कामयाब साबित होगा ये तो समय ही बताएगा। क्योंकि अखिलेश भी जानते है कि परिवार में एकता ही उनका वापस कुर्सी पर बैठा सकती है।
हाल ही झांसी में हुए पुष्पेन्द्र यादव मुठभेड़ कांड के बाद अखिलेश ने झांसी का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने प्रदेश सरकार को घेरने के साथ ही वोट बैंक को भी साधने में लगे रहे।
लेकिन इसी बीच शिवपाल यादव के नेतृत्व वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के पैंतरे ने सपाइयों की रणनीति में खलबली मचा दी है। अखिलेश के झांसी दौरे से एक दिन पहले ही शिवपाल के पुत्र आदित्य यादव, पत्नी व अन्य नेताओं के साथ पुष्पेन्द्र के घर का दौरा किया था।
M-Y समीकरण साधने में लगी पार्टी
इस दौरान उन्होंने पीड़ित परिजनों से मुलाकात कर और उनकी हर संभव मदद करने की बात भी कही थी। ऐसे में शिवपाल को साधना और उनके सहारे यादव वोट बैंक को संजोना अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती है।
हालांकि, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पार्टी मुस्लिम और यादव के गणित को मजबूत करना चाहती है। यादवों में एकता रहेगी तो MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण का रंग और गाढ़ा हो सकेगा।
बिखरे वोट बैंक को अपने पाले में लाना अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती
जबकि कई वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ‘लोकसभा चुनाव में जिस तरह से सपा यादव पट्टी की सीटें हार गयी जोकि सपा का गढ़ माना जाता था।इनमें फिरोजाबाद, इटावा, बदायूं, बलिया, जैसी कई अहम सीटें शामिल है। यहां से चुनाव हारना सपा के लिए काफी नुकसानदेह रहा है।
इसमें सपा का मूल वोट बैंक अलग थलग पड़ गया। इसके साथ ही सपा सरंक्षक मुलायम सिंह का राजनीति में निष्क्रिय होना और शिवपाल का अलग पार्टी बना लेना भी काफी हद तक हार का कारण रहा।
दलित कोर वोट जाटव न खिसकने से मायावती निश्चिंत
एक अन्य विश्लेषक ने बताया कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा को करीब 50 से 51 प्रतिशत का वोट शेयर मिला है। इन वोटों में सभी जातियों का वोट समाहित है। लेकिन दलित कोर वोट जाटव के न खिसकने की वजह से मायावती निश्चिंत हैं।
इसके अलावा भाजपा ने सभी जातियों के वोट बैंक में सेंध लगा दी है। ऐसे में अखिलेश के लिए छिटके वोट को अपने पाले में लाना बड़ी चुनौती है।
मुलायम सिंह को अभिभावक जैसा मानते है यादव वोटर
मुलायम सिंह और शिवपाल को जमीनी नेता माना जाता है। इन्हें यादव वोटर अपने अभिभावक जैसा मानते थे। और मानते भी क्यों न क्योंकि हर जगह ये लोग चाहे वो योजनाएं बनाना हो या फिर कोई अन्य जगह पर इनका ख्याल रखा जाता था। इसीलिए दोनों नेता कार्यकर्ताओं के बीच काफी प्रिय रहे हैं। वह अपने वोटरों की चिंता करते थे।
इसीलिए ये दोनों जमीनी नेता माने जाते हैं। जबकि इस मामले में अखिलेश काफी पीछे है। उन्हें जमीनी राजनीति की समझ नहीं है। इसीलिए उन्हें दिक्कत हो रही है। उन्हें युवाओं के साथ पुराने समाजवादियों को भी अपने पाले में लाना होगा।