कुमार भवेश चंद्र
बसपा को कमजोर होते देख कांशीराम की विरासत पर कब्जा करने की होड़ राजनीतिक दलों में साफ तौर पर देखी जा सकती है। समाजवादी पार्टी के मुख्यालय में कांशीराम की जयंती पर उनके साथ सियासी कदमताल करने वाले बलिहारी बाबू ने जय भीम.. जय भारत..जय समाजवाद के उदघोष के साथ अखिलेश यादव की अगुवाई में काम करने का ऐलान किया।
2022 के चुनाव से पहले इसे सपा अध्यक्ष का बहुत बड़ा दांव माना जा रहा है। बड़े बड़े सियासी पंडित पिछड़े और दलित वोटों के साथ अल्पसंख्यक वोटों को जोड़कर प्रदेश में नया सियासी मुहावरा गढ़ने की अखिलेश की कोशिश को ‘डि कोड’ करने की कोशिश में जुटे हैं।
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बलिहारी वह शख्सियत हैं जो 1993 में बसपा और सपा के बीच चुनावी समझौता करने के लिए कांशीराम और मुलायम के हुई बातचीत में शामिल रहे हैं। यूपी की सियासत में यह गठबंधन बहुत ही प्रभावशाली माना गया था।
राम मंदिर पर सियासत अपने चरम पर थी लेकिन दोनों नेताओं के बीच सियासी समझौते के बाद एक नारा बहुत ही असरकारी साबित हुआ था, मिले मुलायम कांशीराम… हवा में उड़ गए जय श्रीराम।
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इस मौके पर बलिहारी ने उस दौर के नारे को दोहराया लेकिन मिले मुलायम कांशीराम..से.आगे कुछ कहने से इनकार कर दिया। बलिहारी का इशारा साफ तौर पर मंदिर मसले पर बीजेपी के सियासी लाभ लेने की कोशिश की ओर था।
2022 चुनाव की तैयारियों के सिलसिले में समाजवादी पार्टी की ये कोशिश अभी तक का सबसे बड़ा कदम कहा जा सकता है। बलिहारी जमीनी आंदोलन से उपजे नेता हैं। कांशीराम ने उन्हें बामसेफ की प्रमुख जिम्मेदारी दी थी।
आजमगढ़ निवासी बलिहारी दलितों के बीच गहरा प्रभाव रखन वाले बामसेफ और बीएसफोर जैसे संगठनों से जुड़े रहे हैं।
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बलिहारी ने समाजवादी पार्टी के मंच से ऐलान किया कि प्रतिक्रियावादी ताकतों ने हमेशा दलित-पिछड़ों के बीच में खाई पैदा करने की कोशिश की है। हमें इस खाई को मिल जुल कर पाटना होगा।
उन्होंने ये कहने में संकोच नहीं किया कि 2019 में सपा अध्यक्ष ने बहुत ही झुककर बहुजन समाज की उसी भावना का ख्याल रखते हुए सपा और बसपा के बीच में गठबंधन करने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन झूठे आरोपों के आधार पर इस गठबंधन को तोड़ दिया गया। इससे बहुजन समाज को बहुत बड़ा आघात लगा है और इस सियासी साजिश को समझने के लिए विवेक का इस्तेमाल करना होगा।
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समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अगले ही दिन पार्टी अध्यक्ष की अगुवाई में बलिहारी समेत बसपा के दूसरे प्रमुख नेताओं तिलक चंद अहिरवार, फेरन अहिरवार, अनिल अहिरवार सरीखे जमीनी नेताओं ने अखिलेश यादव के नेतृत्व में भरोसा जताते हुए सपा की सदस्यता ले ली। अपने-अपने इलाके में मजबूत माने जा रहे इन नेताओं के आने से गदगद अखिलेश ने कहा कि इनकी वजह से सपा को ताकत मिलेगी।
2022 विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर मंथन से गुजर रहे सपा अध्यक्ष का नजरिया बिल्कुल साफ है कि वे पिछड़ी जाति और दलितों के गठजोड़ के साथ प्रदेश में एक बार फिर करिश्मा कर सकते हैं।
वे अपने इसी मिशन को आगे बढ़ाने के लिए बहुत ही सधे कदम उठा रहे हैं। इससे पहले जनवरी में भी उन्होंने बस्ती मंडल के दमदार नेता पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी और बसपा के कई कद्दावर नेताओं को सपा ज्वायन कराई थी।
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अखिलेश के साथ ही कांशीराम की विरासत पर भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद की भी पैनी नजर है। चंद्रशेखर ने कांशीराम जयंती के मौके पर ही आजाद समाज पार्टी का ऐलान किया। चंद्रशेखर की नजर बसपा से निराश नेताओं पर है। उन्होंने नई पार्टी के ऐलान के साथ ही बसपा से जुड़े रहे दर्जन भर से अधिक नेताओं को आजाद समाज पार्टी की सदस्यता दिलाकर अपनी नई सियासी पारी का ऐलान कर दिया है।