जुबिली न्यूज डेस्क
राजस्थान की ऐतिहासिक अजमेर दरगाह को लेकर नया विवाद हाईकोर्ट की चौखट तक पहुंच गया है। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में मंदिर होने के दावे को लेकर दायर याचिका की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है। यह मामला गुरुवार (17 अप्रैल) को राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की बेंच में सुनवाई के लिए पहुंचा।
खादिमों की संस्था ने मांगी सुनवाई पर रोक
दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान की ओर से दाखिल याचिका में कहा गया है कि इस मामले पर निचली अदालत में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के विरुद्ध है, इसलिए इस पर तुरंत रोक लगाई जानी चाहिए। याचिका में अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह और वागीश कुमार सिंह ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने “प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991” से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई पर पहले ही रोक लगा रखी है।
केंद्र सरकार ने जताया विरोध
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आर.डी. रस्तोगी ने अंजुमन की याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अंजुमन कमेटी इस वाद में पक्षकार नहीं है, इसलिए उसे इस स्तर पर याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है। उनके अनुसार, यह याचिका चलने योग्य नहीं है।
अब इस मामले में हाईकोर्ट एक सप्ताह बाद फिर से सुनवाई करेगा।
क्या है हिंदू पक्ष का दावा?
दरगाह परिसर में मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका में कहा गया है कि परिसर में मौजूद तीन छतरियां, जो मुख्य गेट के पास स्थित हैं, हिंदू धार्मिक प्रतीकों और स्थापत्य कला से मेल खाती हैं।
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इसके अलावा, याचिकाकर्ता का दावा है कि जिस तहखाने में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अवशेष माने जाते हैं, वहां कभी महादेव की मूर्ति विराजमान थी। याचिका में कहा गया है कि इस छवि पर एक ब्राह्मण परिवार चंदन अभिषेक किया करता था — जो अब भी जारी है, लेकिन दरगाह के इस्लामिक रीति-रिवाज के रूप में पेश किया जाता है।