पॉलिटिकल डेस्क
इतिहास खुद को दोहराता है। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर इतिहास ने खुद को दोहराया है। जिस तरह अजित पवार ने अपने चाचा एनसीपी प्रमुख शरद पवार को गच्चा देकर उपमुख्यमंत्री की कुर्सी संभाला है, वैसे ही कभी शरद पवार ने गच्चा देकर महाराष्ट्र के युवा मुख्यमंत्री बनकर अपना राजनीतिक कद ऊंचा किया था।
महाराष्ट्र की सियासत में शनिवार की सुबह एक ऐसा भूचाल आया जिसे आने वाले कई दशकों तक याद रखा जाएगा। सुबह अखबार के पन्नों की लीड खबर फेक न्यूज बन गई। सुबह की लीड खबर थी कि आज शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ सरकार बनायेगी लेकिन समाचार चैनलों पर सुबह की सबसे बड़ी खबर थी कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। फिलहाल फडणवीस पद की शपथ लेते ही सूबे में चल रहे राजनीतिक गतिरोध का अंत तो हो गया,लेकिन इस घटना ने लगभग 41 साल पहले का एक मंजर याद दिला दिया।
अबसे लगभग 41 साल पहले साल 1978 में कुछ-कुछ इसी तरह की परिस्थिति में एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे।
गौरतलब है कि इमर्जेंसी के ठीक बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की बुरी हार हुई थी। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ, जिसके बाद तत्कालीन सीएम शंकरराव चव्हाण ने इस्तीफा दे दिया और वसंददादा पाटिल मुख्यमंत्री बने।
उसी साल कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई जिसमें से एक धड़े कांग्रेस (यू) में शरद पवार के राजनीतिक गुरु शंकरराव चव्हाण शामिल हुए, जबकि इंदिरा के नेतृत्व वाले धड़े कांग्रेस (आई) ने अलग राह अपना ली।
महाराष्ट्र में 1978 की शुरुआत में जब विधानसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस के दोनों ही धड़ों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, लेकिन किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं आया। इस चुनाव में कांग्रेस की प्रतिद्वंदी जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई, लेकिन उसके पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं थीं। ऐसे में जनता पार्टी को रोकने के लिए कांग्रेस के दोनों धड़े एक बार फिर साथ आ गए और वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी।
37 साल के पवार बन गए सीएम
साल 1978 अभी बीता भी नहीं था कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा सियासी भूचाल आया। जुलाई 1978 में शरद पवार ने कांग्रेस (यू) पार्टी को तोड़ दिया और जनता पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बना ली। इस तरह लगभग 37 साल और 7 महीने की उम्र में वह महाराष्ट्र के सबसे युवा मुख्यमंत्री बन गए।
हालांकि शरद पवार कुर्सी पर बहुत ज्यादा समय नहीं टिक पाए और सत्ता में वापसी करते ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पवार की सरकार को बर्खास्त कर दिया। वह पहली बार 18 जुलाई 1978 से लेकर 17 फरवरी 1980 तक (एक साल 214 दिन) ही मुख्यमंत्री रह पाए।
अब भतीजे ने दोहराया इतिहास
आज 4 दशक बाद शरद पवार की राह पर चलते हुए उनके भतीजे अजित पवार ने उनसे अलग राह पकड़कर उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कहा जा रहा था कि अजित के इस कदम को शरद का समर्थन प्राप्त है, लेकिन बाद में खुद एनसीपी प्रमुख ने इसका खंडन कर दिया।
शरप पवार ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘अजित पवार का बीजेपी को सरकार बनाने के लिए समर्थन देने का फैसला उनका निजी फैसला है, नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी का इससे कोई संबंध नहीं है। हम आधिकारिक रूप से यह कहना चाहते हैं कि हम उनके इस फैसले का न तो समर्थन करते हैं और न ही सहमति देते हैं।’
Ajit Pawar's decision to support the BJP to form the Maharashtra Government is his personal decision and not that of the Nationalist Congress Party (NCP).
We place on record that we do not support or endorse this decision of his.— Sharad Pawar (@PawarSpeaks) November 23, 2019
राजनीति में कब, कौन, किसे गच्चा दे दे, कहा नहीं जा सकता। इतिहास अपने आपको दोहराता है और महाराष्ट्र में ऐसा ही हुआ है।
कुछ इसी तरह का इतिहास उत्तर प्रदेश में दोहराया गया था, जब पुत्र अखिलेश ने पिता मुलायम सिंह को दरकिनार करते हुए खुद समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था।
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