लखनऊ में नाश्ते में जलेबी के बाद जो सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है वह है खस्ता। खस्ता वही पसंद किया जाता है जो मुलायम हो और उसके साथ के आलू या मटर स्वादिष्ट हों। इसी बात का पूरा ख्याल रखते हुए 1904 में श्री गयादीन गुप्ता ने अपने घर के पास हुसैनगंज चौराहे के निकट एक तख्त और एक कढ़ाई लगाकर छोटी सी शुरूआत की थी। वो खुद एक एक खस्ता बेलते, भरते और सेंकते। गर्मागर्म ही सर्व करते। जब उनके सुपुत्र मुन्नालाल गुप्ता जी साथ आये तो फुट फॉल बढ़ने लगा। उन्होंने पूरी मेहनत और लगन से इस काम को आगे बढ़ाया। फिर अजय गुप्ता उनके भाई ने इसे आगे ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एक दिन दोनों में बंटवारा हो गया। दूसरे भाई होटल खोल लिया और खस्ते की दुकान अजय जी के हिस्से में आयी।
सही मायनों में 2013 में अजय खस्ते की एक नयी पहचान बनने लगी। अनुभव व परम्परागत मसालों की बदौलत देखते ही देखते अजय खस्ते ब्रांड बन गया। अजय जी बताते हैं कि मेरे पिता मुन्नालाल जी क्रांग्रेसी नेता थे।
तो वे कार्यकर्ता लेकिन पार्टी के बड़े से बड़ा नेता उनकी दुकान पर सुबह का नाश्ता यहीं करके आगे कदम बढ़ाता था। शीला कौल, दीपा कौल, प्रेमवती तिवारी, विद्या बाजपेयी, कृष्णा रावत, जूही जी के अलावा लगभग सभी विधायक हमारे यहां के खस्ते चख चुके हैं।
यह पूछे जाने पर देशी घी और रिफाइंड के खस्तों में क्या अंतर होता है उनका कहना था कि देशी घी का तो नाम होता है। ज्यादातर इसमें अस्सी प्रतिशत रिफाइंड होता है। हमारे यहां स्टैंडर्ड का रिफाइंड तेल इस्तेमाल होता है।
हम आज भी शुद्ध और असली मसालों का ही इस्तेमाल करते हैं। अपने सामने लाते हैं। साफ कराते हैं और भुनवाकर पिसवाते हैं। एक राज की बात बताते हैं कि हम जो भी मसाला इस्तेमाल करते हैं उसको हमारी माताजी आशा गुप्ता जी ने तैयार किया था। इस सीक्रेट कॉम्बीनेशन को हमारे रक्त संबंधी ही जानते हैं।
आपकी आखिरी इच्छा क्या है जो आप जीते जी पूरी होते देखना चाहते हैं? इस पर वह बोले, ‘2013 में गुटखा अधिक सेवन करने से मुझे मुंह का कैंसर हो गया था। मुम्बई में ऑपरेशन हुआ और अब मैं पहले काफी बेहतर महसूस करता हूं।
जहां तक इच्छा का सवाल है तो भगवान की दया से मेरी सभी इच्छाएं पूरी हो गयी हैं। मैंने अपना पूरा बिजनेस बेटे को सौंप दिया है अब उसे कामयाबी की नयी ऊंचाइयों को छूते देखना चाहता हूं। अजय गुप्ता जी के इकलौते बेटे यानी चौथी पीढ़ी के ऋषभ गुप्ता जो एमबीए हैं और पिता के अस्वस्थ हो जाने के चलते वही दुकान सम्भालते हैं, भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हैं कि अभी तो समय सही नहीं चल रहा है लेकिन हम जल्दी अपने खस्तों को शहर के अन्य डेस्टीनेशन में भी ले जाएंगे। लेकिन फ्रेंचाइजी नहीं देंगे।
हमारे खस्ते इतने मुलायम होते हैं कि बुजुर्ग और बच्चे बिना ताकत लगाये तोड़कर खा सकते हैं। पच्चीस रुपये के दो खस्तों के साथ हम मसालेदार आलू, हलके रसेदार मटर, प्याज, अचार भी देते हैं।
खस्ते के अलावा हम पूड़ी सब्जी, दही जलेबी, छोला भटूरे, मीठे समोसे, रसगुल्ले भी बनाते हैं जिसमें मीठे समोसे की डिमांड ज्यादा रहती है। अभी तो हम कुुछ नया इंट्रोड्यूज नहीं करने जा रहे हैं मगर हां, जब कोई नया आउटलेट खुलेगा तो उस जगह की डिमांड के मुताबिक आइटम्स बढ़ाये जा सकते हैं।
इस सवाल पर आज ज्यादातर चाट वाले और पूड़ी खस्ता वालों के बच्चे इस काम से दूर भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें यह काम छोटा लगता है। इस पर ऋषभ एक लम्बी सांस खींचते हैं और गम्भीरता से जवाब देते हैं, ‘देखिए सर, मेरी नजर में कोई काम छोटा नहीं होता है।
छोटी हमारी सोच होती है। देखिए आज पाव भाजी, मिठाइयां, दालमोठ, अचार, पराठे कितने फूड आइटम्स हैं जो ब्रांड बन कर दुनिया में छा गये हैं।
जब इन लोगों ने इसे शुरू किया होगा तो ये भी एक दिन छोटे स्तर के रहे होंगे। अब मुझे विरासत में फेमस ब्रांड मिला है तो मैं फैमिली सपोर्ट से इसे और आगे लेकर जाने की प्लानिंग रखता हूं।”