कृष्णमोहन झा
देश के विभिन्न राजनीतिक दलों को कुछ समय से यह चिंता सता रही थी कि पुलवामा में हुए आतंकी हमले से उपजी परिस्थितियों का बहाना बनाकर मोदी सरकार आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों को आगे बढ़ा सकती है, परंतु अब उनकी सभी आशंकाओं पर विराम लग चुका है।
चुनाव आयोग ने 11 अप्रैल से लोकसभा चुनाव होने की घोषणा कर दी है। यह चुनाव सात चरणों में पूरा होकर जो 19 मई तक चलेगा। 23 मई को परिणामों की घोषणा के साथ ही 3 जून तक नई सरकार पदभार ग्रहण करेगी।
मोदी का विपक्षी नेताओं से आगे
गत लोकसभा चुनाव के बाद 26 मई को नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार का गठन हुआ था। इस दौरान मोदी सरकार ने अबाध गति से अपना कार्यकाल पूरा किया है। यद्यपि इस दौरान हुए कुछ लोकसभा उपचुनाव में 282 सीटें अर्जित करने वाली भाजपा को हार का सामना करना पड़ा ओर सदन में उसकी संख्या घटकर 274 तक पहुंच गई, लेकिन इस दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ देश के अन्य विपक्षी नेताओं से आगे ही रहा।
विपक्षी दलों की चिंता
अब लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही विपक्षी दलों के नेताओं को अब यह चिंता सता रही है कि पुलवामा में आतंकी कार्यवाही रचने वाले आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के अड्डों को ध्वस्त करने के लिए भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में जाकर जो दहशत पैदा की थी, उससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्राफ पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ऊंचा न हो जाए।
दिल्ली की गद्दी के सपने
इन दलों विशेषकर कांग्रेस को अब यही भय है कि अगर ऐसा होता है तो गत वर्ष तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता में वापसी के बाद दिल्ली की गद्दी के सपने देख रहे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए यह दूर की कौड़ी हो सकती है।
प्रियंका की राजनीतिक बुद्धिमत्ता
पार्टी के लिए असहज स्थिति यह भी हो गई है कि गांधी परिवार की अहम् सदस्य प्रियंका गांधी वाड्रा के पार्टी की महासचिव के रूप में उत्तरप्रदेश की बागडौर सँभालने के कुछ दिनों बाद ही भारतीय वायु सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर की गई कार्यवाही ने हवा का रुख ही बदल कर रख दिया। हालांकि, प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजनीतिक बुद्धिमत्ता दिखाते हुए ऐसा कोई भी बयान देने से परहेज किया जिससे यह न लगे क़ी वे वायु सेना की कार्यवाही पर शक कर रही है।
गौरतलब है कि अधिकांश विपक्षी नेताओं ने वायुसेना की कार्यवाही में 300 आतंकियों के मारे जाने को लेकर सरकार के दावें पर अविश्वास व्यक्त किया है। इनमे ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, दिग्विजय सिंह अरविन्द केजरीवाल आदि नेता शामिल है।
बड़बोले नवजोत सिंह सिद्धू
आश्चर्य की बात यह है कि बड़बोले नवजोत सिंह सिद्धू ने तो यह तक कह दिया कि वायुसेना की कार्यवाही में मात्र कुछ पेड़ ही गिरे, लेकिन कोई भी आतंकी नहीं मारा गया। विपक्षी नेताओं के ऐसे बयान भले ही भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ लेने से रोकना है ,लेकिन देश की जनता इस कार्यवाही से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा शक्ति भारतीय वायुसेना के अदम्य शौर्य के साथ सरकार को मिले अपूर्व अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से इस तरह गदगद है कि विपक्षी दलों को इससे भय होना स्वाभाविक है। इस कारण ही विपक्षी दलों की और से इसे नकारने की पूरी कोशिश हो रही है।
राष्ट्रवाद का मुद्दा सर्वोपरि
इधर भाजपा ने यह तय कर लिया है कि वह लोकसभा चुनाव जिन मुद्दों पर लड़ेगी उसमे राष्ट्रवाद का मुद्दा सर्वोपरि होगा। अगर भाजपा ऐसा करने में सफल हो जाती है और इस मुद्दे के आगे सभी मुद्दे गौण हो जाते है, तो इसे भाजपा की राजनीतिक चतुराई ही माना जाएगा।
इधर राहुल गांधी के जो बयान आ रहे है ,उससे यह संदेश निकालना मुश्किल नहीं होगा कि चुनावों के दौरान वे राफेल के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की रणनीति से पीछे नहीं हटेंगे। हालांकि पीएम मोदी ने वायुसेना के लिए राफेल की अपरिहार्यता को साबित करते हुए जो नई बात कह दी है कि अगर वायुसेना को राफेल विमान मिल गए होते तो हम अपने ही देश में बैठे बैठे पाक स्थित आतंकी संगठनों को नष्ट कर सकते थे। इससे गांधी के वार को कुंद करने की पूरी कोशिश की है।
राफेल और मोदी सरकार
राफेल सौदे को लेकर मोदी सरकार और राहुल गांधी के बीच आरोप प्रत्यारोप का जो दौर चलता रहा है, उसमे राहुल गांधी की उपलब्धि मात्र इतनी रही है कि वे इसमें एक भ्रम का कुआसा भर निर्मित कर पाए है। इससे वे आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार के लिए कोई बड़ी चुनौती पेश करने में कामयाब होंगे, इसमें संदेह है।
राहुल गांधी के लिए सबसे असुविधाजनक स्थिति यह भी कि यदि विपक्षी दलों का कोई गठबंधन आकार भी ले लेगा तो भी उसका नेतृत्व राहुल गांधी को सौंपने को कोई दल तैयार नहीं होगा। इसलिए चुनावों में एनडीए को कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन कोई चुनौती पेश कर पाएगा, इसकी दूर दूर तक संभावना नहीं है।
विपक्षी एकता परवान नहीं चढ़ी
इधर, उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में भी विपक्षी एकता परवान नहीं चढ़ी है। प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी एवं समाजवादी पार्टी ने भले ही गठबंधन कर लिया हो ,लेकिन कांग्रेस को दूर रखकर बनाया गया यह गठबंधन भाजपा को चुनौती देने के मंसूबे में तब ही सफल जब वे इसमें कांग्रेस को भी शामिल कर ले। यदि कांग्रेस अपने दम पर उत्तरप्रदेश में चुनाव लड़ती है तो भाजपा का हर्षित होना स्वभाविक है।
NDA गठबंधन मजबूत
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले कुछ माह में अपने रूठे हुए सहयोगियों की मान मनोव्वल कर एनडीए गठबंधन को पूरी तरह मजबूत कर लिया है। ऐसे में मजबूत नेता एवं गठबंधन के बाद पाकिस्तान पर की गई कार्यवाही का लाभ आगामी चुनाव में एनडीए को मिलने की संभावना ही ज्यादा नजर आ रही है।
(लेखक डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक हैं, ये उनके निजी विचार हैं )